कुछ बातें आज भी मेरी समझ में नहीं आती हैंै। कुछ के लिए अैं आज भी खलनायक हूं। वो मुझसे बेपनाह नफरत करते हैं और मैं चाह रहा हूं कि उनकी इस नफरत को प्यार में बदल दूंगा। लेकिन ऐसा होता नहीं दिख रहा है। मैने अपने कई ऐसे दोस्त इसी कारण खो दिए हैं। कई बार मैं ही जिम्मेदार था लेकिन कभी मैं नहींं था जिम्मेदार। खैर बस ख्ुादा से इतनी ही दुआ करता हूं मुझे मेरे वो सब दोस्त वापस कर दें जिन्हें मैं खो चुका हूं। इसमें मेरे वो सबसे प्यारे दोस्त भी हैं जो मुझे कालेज लाइफ में मिले थे।
मुंबई यानि मायानगरी। मुंबई का नाम लेते ही हमारे जेहन में एक उस शहर की तस्वीर सामने आती हैं जहां हर रोज लाखों लोग अपने सपनों के संग आते हैं और फिर जी जान से जुट जाते हैं उन सपनों को साकार करने के लिए। मुंबई जानी जाती है कि हमेशा एक जागते हुए शहर में। वो शहर जो कभी नहीं सोता है, मुंबई सिर्फ जगमगाता ही है। लेकिन मुंबई में ही एक और भी दुनिया है जो कि हमें नहीं दिखती है। जी हां मैं बात कर रहा हूं बोरिवली के आसपास के जंगलों में रहने वाले उन आदिवासियों की जो कि पिछले दिनों राष्ट्रीय खबर में छाए रहे अपनी गरीबी और तंगहाली को लेकर। आप सोच रहे होंगे कि कंक्रीट के जंगलों में असली जंगल और आदिवासी। दिमाग पर अधिक जोर लगाने का प्रयास करना बेकार है। मुंबई के बोरिवली जहां राजीव गांधी के नाम पर एक राष्ट्रीय पार्क है। इस पार्क में कुछ आदिवासियों के गांव हैं, जो कि सैकड़ो सालों से इन जंगलों में हैं। आज पर्याप्त कमाई नहीं हो पाने के कारण इनके बच्चे कुपोषित हैं, महिलाओं की स्थिति भी कोई खास नहीं है। पार्क में आने वाले जो अपना झूठा खाना फेंक देते हैं, बच्चे उन्हें खा कर गुजारा कर लेते हैं। आदिवासी आदम
Comments
आशीष एक ही बात कहना चाहूंगा कि जो कुछ हम पीछे छोड़ आते हैं वो पीछे ही रह जाता है उसको आगे जाकर तलाश करने के चक्कर में हम अपने आज के साथ बड़ा अन्याय करते हैं सो जो बीत गई सो बात गई के सिद्धांत पर चलो । जिंदगी में दोस्ती और दुश्मनी तो मिलती ही रहती है । और हां एक बात तुम्हारे पोस्ट को देखकर लग रहा है कि तुम लापरवाह व्यक्ति हो, इतनी सारी ग़लतियां । लापरवाही ही तो वो एक मात्र कारण्ा है जो अंतत: हमारी पीड़ाओं के मूल में होती है ।