उसने एक बार फिर से कोशिश की कि वह आपस आ जाए। उसने अपना लैपटॉप ऑन किया और कुछ लिखने लगा। वह क्या लिख रहा है, उसे भी नहीं पता। शुरूआत कुछ यूं की..
प्रिय गीत,
तुम जा चुकी थी। तुम चली गई आखिरकार। कितनी कोशिश की थी तुम्हें रोकने की मैंने। सबकुछ बेकार रहा। तुम नहीं रूकी। तुमने तय कर लिया कि अब जो भी हो जाए, मेरे जैसे शख्स के साथ कोई संबंध नहीं रखोगी। तुम लगातार मुझसे दूर होती जा रही थी। और मैं सिर्फ देखता ही रह गया। जिस शहर में हम पहली बार मिले थे, उसी शहर में हम जुदा भी हुए। शुरूआत के कुछ महीने तुम कितना दुखी थी। ऑफिस हो, मुंबई हो या फिर खुद का घर, हर जगह तुम्हारे जाने के बाद की उदासी छाई हुई थी। तुम जा चुकी थी। मैं तो बहुत पहले ही जा चुका था। बाद में लौटकर भी आया मैं। लेकिन तुम नहीं लौट पाई।
नहीं चाहते हुए भी मुझे एक फैसला लेना पड़ा। हर बार कि तरह इस बार भी मैंने ही फैसला लिया। इस बार तो तुम्हें इसके बारे में बताया भी नहीं। लेकिन मेरी जिंदगी में आने का और मुझे अपनी जिंदगी में लेना का फैसला तुमने ही किया था। मैं तुम्हारा पहला प्यार था। ऐसा तुमने बताया था लेकिन फिर भी तुम वापस नहीं आ पाई। तुम्हें कई बार एसएसएस किया। फोन किया। ईमेल किया। रास्ते में रोक कर बात करने की कोशिश की। लेकिन तुमने मुझे एक अंतिम मौका भी नहीं दिया। हर बार तुमने मुझे दुत्कार दिया। दुत्कारा भी ऐसे कि जैसे लगा कि कभी कोई रिश्ता ही नहीं रहा। लेकिन संबंध टूटने से रिश्ते नहीं टूट जाते हैं। वक्त कितना भी बीत जाए, एक रिश्ता कहीं न कहीं जुड़ा ही रहता है। आज तुम मुझसे नफरत करती हो शायद। लेकिन मैं क्या ऐसा सोच सकता हूं तुम्हारे बारे में नहीं? नहीं। हां इसका जवाब नहीं में ही है। जब भी तुम्हारे बारे में सोचता हूं तो तुम्हारे साथ बिताए गए जिंदगी के सबसे बेहतरीन दिन याद आ जाते हैं। हर बार सोचता हूं तुम्हारी यादों को अपने से जुदा कर दूं लेकिन नहीं कर पाता हूं।
तुम्हें रोकने के लिए मैंने न जाने किस-किस की मदद ली। यहां तक जिसे कभी माना ही नहीं, उसके दर भी गया। मंदिर, दरगाह, गिरजाघर हर जगह मत्था टेका। बस इस आस के साथ कि कोई तो तुम्हें वापस लौटा दे। जिन्हें अपना समझा, उनसे पूछा-क्या करूं मैं? लेकिन सबकुछ बेकार चला गया। तुम जा चुकी थी। क्या तुम्हें याद है जब तुमने पहली बार अपने प्यार का इजहार किया था। तुम्हारी आंखों में कुछ था जो मुझे कब तुम्हारी ओर ले गया, पता ही नहीं चला। आंखों से होते हुए कब तुम मेरे इतने करीब आ गई कि हम दोनों कभी एक-दूजे से अलग होने की सोच भी नहीं सकते थे। लेकिन वक्त, किस्मत, परिस्थितियों के साथ मेरी भूल हमारी कहानी में खलनायक का रोल निभाने लगी। मैं जितना गलतियों को सुधारने की कोशिश करता, तुम उतना ही मुझसे दूर जाती गई। कई बार मुझे लगा कि तुम वापस आओगी। यह मेरे प्यार का विश्वास था। लेकिन मैं गलत साबित हुआ। मेरा प्यार गलत साबित हुआ। तुम नहीं आई। जिन हाथों को कभी मैंने थामा था, आज वह किसी और की अमानत है। जिस दिल में कभी मैं धड़कता था, आज वहां किसी और का कब्जा है। जिन तिरछी निगाहों से कभी तुम मुझे ताका करती थी, आज किसी और को ताकती है। क्या यही प्यार है। तुमने क्यों मुझे रोका नहीं। यदि मैंने एक बार तुमसे संबंध तोड़ लिया था तो तुम मुझसे लड़ी क्यों नहीं? आखिर इतनी आसानी से तुमने मुझे जाने क्यों दिया। क्यों नहीं तुम मेरे सीने पर अपने मुक्कों की बरसात की। क्यों नहीं तुमने मुझे अपने नर्म हाथों से थप्पड़ मारा। क्यों नहीं तुमने मेरे बालों को नोंचा। क्यों नहीं तुमने मुझे सरेआम कहा कि तुम मेरे बिना नहीं जी सकती? आखिर क्यों?
तुम्हें अपनी जिंदगी से बेदखल कर महीनों तक मैं खुश था। लेकिन एक सुबह जब उठा तो सबकुछ बदल चुका था। मेरे अंदर का इंसान जाग चुका था। आखिर मैंने तुम्हें कैसे धोखा दिया। तुम्हें.उस लड़की को, जो मेरे लिए अपने पूरे परिवार से लड़ने के लिए तैयार थी। जो मेरे लिए पूरी दुनिया से लड़ना चाहती थी। और मैं कायर निकला। उस सुबह मुझे पहली बार अपनी गलती का अहसास हुआ। मैं तुरंत लौट के तुम्हारे पास आया। लेकिन तुमने मेरी ओर देखा तक नहीं। सबकुछ खत्म। क्या तुम्हें याद है जब तुमने पहली बार मुझसे बात की थी। नहीं याद होगा। मुझे याद है.जब तुम आई ही थी तब मैंने कहा था..
अब तो मैं खुद को तुम्हारा भी नहीं कह सकता हूं।
अमित
लेटर टाइप करने के बाद अमित ने इसे अपने जीमेल एकाउंट से गीत को भेजने ही जा रहा था कि न जाने क्यों उसने उसे भेजा नहीं। इनबॉक्स में फाइल अटैच हो चुकी थी। टू में गीतएटजीमेलडॉटकॉम भी टाइप कर चुका था लेकिन उसने अचानक लैपटॉप को बंद कर बाहर बालकनी में झांकने लगा। बाहर एकदम खामोशी थी। लेकिन उसके अंदर बहुत कुछ चल रहा था। मन हुआ कि वह यहां से छलांग लगा ले लेकिन वह ऐसा भी नहीं कर सकता था।
Comments
इस अधूरे प्रेमपत्र में जाने कितने लोगों ने अपने अधूरेपन में झांक लिया होगा...
हर लफ्ज़ सच लग रहा है, ज़ज्बातों में लिपटा हुआ.. हर लफ्ज... (शायद सच ही हो)
लिखा मैं भी करती हूं इसलिए समझती हूं लेखक की मनोस्थिति जब वह इस तरह की चीज़े लिखता है... खैर...मै बेहद भावुक हो गई पढ़कर..