Skip to main content

पाश की कविताएं

सभी कविताएं मशहूर कवि पाश की हैं। उनका जन्म 9 सितंबर 1950 को पंजाब के तलवंडी सलेम, तहसील नकोदर, जिला जालंधर में हुआ था। 23 मार्च 1988 को अमेरिका लौटने से दो दिन पहले तलवंडी सलेम में अभिन्न मित्र हंसराज के साथ खालिस्तानी आतंकवादियों की गोलियों के शिकार होकर शहीद हुए।

1-
बस कुछ पल और
तेरे चेहरे की याद में
बाकी तो सारी उम्र
अपने ही नक्श खोजने से फुरसत न मिलेगी

बस कुछ पल और
यह सितारों का गीत
फिर तो आसमान की चुप
सबकुछ निगल जाएगी....।

देख, कुछ पल और
चांद की चांदनी में चमकती
यह तीतरपंखी बदली
शायद मरुस्थल ही बन जाए
ये सोए हुए मकान
शायद अचानक उठकर
जंगल की ओर ही चल पड़ें....



2-
उनकी आदत है सागर से मोती चुग लाने की
उनका रोज का काम है, सितारों का दिल पढ़ना।


3-
हजारों लोग हैं
जिनके पास रोटी है
चांदनी रातें हैं, लड़कियां हैं
और 'अक्ल' है
हजारों लोग हैं, जिनकी जेब में
हर वक्त कलम रहती है
और हम हैं
कि कविता लिखते हैं...


4-
मेरे पास चेहरा
संबोधक कोई नहीं
धरती का पागल इश्क शायद मेरा है
और तभी जान पड़ता है
मैं हर चीज पर हवा की तरह सरसराता हुआ गुजर जाऊंगा
सज्जनों, मेरे चले जाने के बाद भी
मेरी चिंता की बांह पकड़े रहना


5-
प्यार आदमी को दुनिया में
विचरने लायक बनाता है या नहीं
इतना जरूर है कि
हम प्यार के बहाने (सहारे)
दुनिया में विचर ही लेते हैं


6-
आदमी के खत्म होने का फैसला
वक्त नहीं करता
हालात नहीं करते
वह खुद करता है
हमला और बचाव
दोनों आदमी खुद करता है।


7-
समय ओ भाई समय
कुछ तो कह दो
हम तुम्हारे संग हो क्या कुछ करें?
हमारा समय है गुनाहों भरा
कैसे पार जाएं हम इस भवजल से?


8-
तुम्हारे बगैर मैं बहुत खचाखच रहता हूं
यह दुनिया सारी धक्कमपेल सहित
बे-घर पाश की दहलीजें लांघकर आती-जाती है
तुम्हारे बगैर मैं पूरे का पूरा तूफान होता हूं
ज्वारभाटा और भूकंप होता हूं

तुम्हारे बगैर धरती का गुरुत्व
भुगत रही दुनिया की तकदीर होती है
या मेरे जिस्म को खरोंचकर गुजरते अ-हादसे
मेरा भविष्य होते हैं
लेकिन किंदर! जलता जीवन माथे लगता है
तुम्हारे बगैर मैं होता ही नहीं।


9-
आदमी का भी कोई जीना है
अपनी उम्र कव्वे या सांप को बख्शीश में दे दो


10-
जीने का एक और ढंग होता है
भरी ट्रैफिक में चौपाल लेट जाना
और स्लिप कर देना
वक्त का बोझिल पहिया।

मरने का एक और भी ढंग होता है
मौत के चेहरे से उलट देना नकाब
और ज़िंदगी की चार सौ बीस को
सरेआम बेपर्द कर देना।


Comments

Popular posts from this blog

बेनामी जी आपके लिए

गुजरात में अगले महीने चुनाव है और इसी के साथ भगवा नेकर पहनकर कई सारे लोग बेनामी नाम से ब्लॉग की दुनिया में हंगामा बरपा रहे हैं. एक ऐसे ही बेनामी से मेरा भी पाला पड़ गया. मैं पूरा प्रयास करता हूँ कि जहाँ तक हो इन डरपोक और कायर लोगों से बचा जाए. सुनील ने मोदी और करण थापर को लेकर एक पोस्ट डाल दी और मैं उस पर अपनी राय, बस फिर क्या था. कूद पड़े एक साहेब भगवा नेकर पहन कर बेनामी नाम से. भाई साहब में इतना सा साहस नहीं कि अपने नाम से कुछ लिख सकें. और मुझे ही एक टुच्चे टाईप पत्रकार कह दिया. मन में था कि जवाब नहीं देना है लेकिन साथियों ने कहा कि ऐसे लोगों का जवाब देना जरूरी है. वरना ये लोग फिर बेनामी नाम से उल्टा सुलटा कहेंगे. सबसे पहले बेनामी वाले भाई साहब कि राय.... अपने चैनल के नंगेपन की बात नहीं करेंगे? गाँव के एक लड़के के अन्दर अमेरिकन वैज्ञानिक की आत्मा की कहानी....भूल गए?....चार साल की एक बच्ची के अन्दर कल्पना चावला की आत्मा...भूल गए?...उमा खुराना...भूल गए?....भूत-प्रेत की कहानियाँ...भूल गए?... सीएनएन आपका चैनल है!....आशीष का नाम नहीं सुना भाई हमने कभी...टीवी १८ के बोर्ड में हैं आप?...कौन सा...

मुंबई का कड़वा सच

मुंबई या‍नि मायानगरी। मुंबई का नाम लेते ही हमारे जेहन में एक उस शहर की तस्‍वीर सामने आती हैं जहां हर रोज लाखों लोग अपने सपनों के संग आते हैं और फिर जी जान से जुट जाते हैं उन सपनों को साकार करने के लिए। मुंबई जानी जाती है कि हमेशा एक जागते हुए शहर में। वो शहर जो कभी नहीं सोता है, मुंबई सिर्फ जगमगाता ही है। लेकिन मुंबई में ही एक और भी दुनिया है जो कि हमें नहीं दिखती है। जी हां मैं बात कर रहा हूं बोरिवली के आसपास के जंगलों में रहने वाले उन आदिवासियों की जो कि पिछले दिनों राष्‍ट्रीय खबर में छाए रहे अपनी गरीबी और तंगहाली को लेकर। आप सोच रहे होंगे कि कंक्रीट के जंगलों में असली जंगल और आदिवासी। दिमाग पर अधिक जोर लगाने का प्रयास करना बेकार है। मुंबई के बोरिवली जहां राजीव गांधी के नाम पर एक राष्ट्रीय पार्क है। इस पार्क में कुछ आदिवासियों के गांव हैं, जो कि सैकड़ो सालों से इन जंगलों में हैं। आज पर्याप्‍त कमाई नहीं हो पाने के कारण इनके बच्‍चे कुपो‍षित हैं, महिलाओं की स्थिति भी कोई खास नहीं है। पार्क में आने वाले जो अपना झूठा खाना फेंक देते हैं, बच्‍चे उन्‍हें खा कर गुजारा कर लेते हैं। आदिवासी आदम...

मै जरुर वापस आऊंगा

समझ में नहीं आ रहा कि शुरुआत क्‍हां से और कैसे करुं। लेकिन शुरुआत तो करनी होगी। मुंबई में दो साल हो गए हैं और अब इस श‍हर को छोड़कर जाना पड़ रहा है। यह मेरी सबसे बड़ी कमजोरी है कि मैं जहां भी रहता हूं उसके मोह में बंध जाता हूं। बनारस से राजस्‍थान आते भी ऐसा ही कुछ महसूस हुआ था। फिर जयपुर से भोपाल जाते हुए दिल को तकलीफ हुई थी। इसके बाद भोपाल से मुंबई आते हुए भोपाल और दोस्‍तों को छोड़ते हुए डर लग रहा था। और आज मुंबई छोड़ते हुए अच्‍छा नहीं लग रहा है। मैं बार बार लिखता रहा हूं कि मुंबई मेरा दूसरा प्‍यार है। और किसी भी प्‍यार को छोडते हुए विरह की अग्नि में जलना बड़ा कष्‍टदायक होता है। इस शहर ने मुझे बहुत कुछ दिया। इस शहर से मुझे एक अस्तिव मिला। कुछ वक्‍त उसके साथ गुजारने का मौका मिला, जिसके साथ मैने सोचा भी नहीं था। मुंबई पर कई लेख लिखते वक्‍त इस शहरों को पूरी तरह मैने जिया है। लेकिन अब छोड़कर जाना पड़ रहा है। बचपन से लेकर अब तक कई शहरों में जिंदगी बसर करने का मौका मिला। लेकिन बनारस और मुंबई ही दो ऐसे शहर हैं जो मेरे मिजाज से मेल खाते हैं। बाकी शहरों में थोड़ी सी बोरियत होती है लेकिन यहां ऐसा ...