Skip to main content

संजू दादा को मिली जमानत


फिल्म अभिनेता संजय दत्त की जमानत आज मिल गई गई हैं। इससे पहले 10 अगस्त को उच्चतम न्यायालय में सुनवाई की तारीख 20 अगस्त तक के लिए टाल दी गई थी। इस बार संजय के पक्ष में यह बात भी है कि सीबीआई ने उनपर टाडा लगाने की याचिका दायर न करने का फैसला किया है जिसके चलते संजय दत्त को जमानत मिल गई है।


पहले सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की तारीख 28 अगस्त तक टाल दी थी लेकिन संजय के वकील फली एस नरीमन ने तर्क दिया था कि उनके पक्षकार के मूलभूत अधिकारों का हनन हो रहा है। उन्हें फैसले की प्रति दिए बिना ही जेल भेज दिया गया है और जमानत याचिका पर सुनवाई में भी देर हो रही है। इस पर सुनवाई की ‍तिथि को 20 अगस्त तय कर दिया गया। इससे पहले वरिष्ठ अधिवक्ता फली एस नरीमन ने प्रधान न्यायाधीश के। जी. बालकृष्णन की अध्यक्षता वाली खंडपीठ के समक्ष यह मामला प्रस्तुत किया था जिसने संजय की जमानत याचिका पर 10 अगस्त को सुनवाई करने पर सहमति जताई थी। नरीमन ने कहा था कि अभिनेता को फैसले की प्रति दिए बिना ही जेल भेज दिया गया। संजय को 1993 के श्रंखलाबद्ध बम विस्फोट कांड के संबंध में हथियार अधिनियम के तहत दोषी पाया गया है और छह साल की कैद की सजा सुनाई गई है।संजय ने उच्चतम न्यायालय में एक याचिका दायर की थी जिसमें उन्होंने टाडा अदालत में अपनी दोषसिद्धि को यह कहते हुए चुनौती दी है कि उसे एक कमजोर साक्ष्य के आधार पर दोषी करार दिया गया है।


Comments

Popular posts from this blog

मुंबई का कड़वा सच

मुंबई या‍नि मायानगरी। मुंबई का नाम लेते ही हमारे जेहन में एक उस शहर की तस्‍वीर सामने आती हैं जहां हर रोज लाखों लोग अपने सपनों के संग आते हैं और फिर जी जान से जुट जाते हैं उन सपनों को साकार करने के लिए। मुंबई जानी जाती है कि हमेशा एक जागते हुए शहर में। वो शहर जो कभी नहीं सोता है, मुंबई सिर्फ जगमगाता ही है। लेकिन मुंबई में ही एक और भी दुनिया है जो कि हमें नहीं दिखती है। जी हां मैं बात कर रहा हूं बोरिवली के आसपास के जंगलों में रहने वाले उन आदिवासियों की जो कि पिछले दिनों राष्‍ट्रीय खबर में छाए रहे अपनी गरीबी और तंगहाली को लेकर। आप सोच रहे होंगे कि कंक्रीट के जंगलों में असली जंगल और आदिवासी। दिमाग पर अधिक जोर लगाने का प्रयास करना बेकार है। मुंबई के बोरिवली जहां राजीव गांधी के नाम पर एक राष्ट्रीय पार्क है। इस पार्क में कुछ आदिवासियों के गांव हैं, जो कि सैकड़ो सालों से इन जंगलों में हैं। आज पर्याप्‍त कमाई नहीं हो पाने के कारण इनके बच्‍चे कुपो‍षित हैं, महिलाओं की स्थिति भी कोई खास नहीं है। पार्क में आने वाले जो अपना झूठा खाना फेंक देते हैं, बच्‍चे उन्‍हें खा कर गुजारा कर लेते हैं। आदिवासी आदम...

प्यार, मोहब्बत और वो

आप यकिन कीजिए मुझे प्यार हो गया है. दिक्कत बस इतनी सी है कि उनकी उमर मुझसे थोडी सी ज्यादा है. मैं २५ बरस का हूँ और उन्होंने ४५ वा बसंत पार किया है. पेशे से वो डाक्टर हैं. इसी शहर में रहती हैं. सोचता हूँ अपनी मोहब्बत का इज़हार कर ही दूँ. लेकिन डर भी सता रहा है. यदि उन्होंने ना कर दिया तो. खैर यह उनका विशेषाधिकार भी है. उनसे पहली मुलाकात एक स्टोरी के चक्कर में हुई थी. शहर में किसी डाक्टर का कमेन्ट चाहिए था. सामने एक अस्पताल दिखा और धुस गया मैं अन्दर. बस वहीं उनसे पहली बार मुलाकात हुई. इसके बाद आए दिन मुलाकातें बढती गई. यकीं मानिये उनका साथ उनकी बातें मुझे शानदार लगती हैं. मैं उनसे मिलने का कोई बहाना नहीं छोड़ता हूँ. अब आप ही बताएं मैं क्या करूँ..

बेनामी जी आपके लिए

गुजरात में अगले महीने चुनाव है और इसी के साथ भगवा नेकर पहनकर कई सारे लोग बेनामी नाम से ब्लॉग की दुनिया में हंगामा बरपा रहे हैं. एक ऐसे ही बेनामी से मेरा भी पाला पड़ गया. मैं पूरा प्रयास करता हूँ कि जहाँ तक हो इन डरपोक और कायर लोगों से बचा जाए. सुनील ने मोदी और करण थापर को लेकर एक पोस्ट डाल दी और मैं उस पर अपनी राय, बस फिर क्या था. कूद पड़े एक साहेब भगवा नेकर पहन कर बेनामी नाम से. भाई साहब में इतना सा साहस नहीं कि अपने नाम से कुछ लिख सकें. और मुझे ही एक टुच्चे टाईप पत्रकार कह दिया. मन में था कि जवाब नहीं देना है लेकिन साथियों ने कहा कि ऐसे लोगों का जवाब देना जरूरी है. वरना ये लोग फिर बेनामी नाम से उल्टा सुलटा कहेंगे. सबसे पहले बेनामी वाले भाई साहब कि राय.... अपने चैनल के नंगेपन की बात नहीं करेंगे? गाँव के एक लड़के के अन्दर अमेरिकन वैज्ञानिक की आत्मा की कहानी....भूल गए?....चार साल की एक बच्ची के अन्दर कल्पना चावला की आत्मा...भूल गए?...उमा खुराना...भूल गए?....भूत-प्रेत की कहानियाँ...भूल गए?... सीएनएन आपका चैनल है!....आशीष का नाम नहीं सुना भाई हमने कभी...टीवी १८ के बोर्ड में हैं आप?...कौन सा...