कालेज अब पुराना हो गया हैं लेकिन फिर भी उसकी याद पुरानी नहीं हुई हैं। जेसे कल ही कि तो बात हैं जब मैं कालेज मे था। वो भोपाल का हमारा छोटा लेकिन प्यारा केम्पस और आसपास का अपना सा माहौल। लेकिन अब इन बातों को करीब सवा साल होने को आये हैं। भोपाल के सात नंबर बस स्टाप पर हमारा कालेज हुआ करता था। क्या याद करूं और क्या भूलूं कुछ भी समझ मे नही आ रहा हैं। कालेज के दिनों मे एक जूनून था लेकिन जब मीडिया के फिल्ड मे अन्दर धुसे तो जूनून थोडा कम हो गया हैं लेकिन अभी ख़त्म नही हुआ हैं। सोचा था कुछ करके दिखाएँगे लेकिन अब लगता कि नौकरी कर रहे हैं सिर्फ। बार बार दिमाग मे एक ही सवाल आता हैं कि क्या पत्रकारिता संभव नही रही आज के बाजारवाद के दौर मे। जिसे देखो वहीँ अधिक से अधिक मुनाफा कमाना चाह रहा हैं। ऐसे मे पत्रकारिता कहॉ गुम हो गई।
आशीष महर्षि सतपुड़ा से लेकर रणथंभौर के जंगलों से बुरी खबर आ रही है। आखिर जिस बात का डर था, वही हुआ। इतिहास में पहली बार मानसून में भी बाघों के घरों में इंसान टूरिस्ट के रुप में दखल देंगे। ये सब सिर्फ ज्यादा से ज्यादा पैसे कमाने के लिए सरकारें कर रही हैं। मप्र से लेकर राजस्थान तक की भाजपा सरकार जंगलों से ज्यादा से ज्यादा कमाई करना चाहती है। इन्हें न तो जंगलों की चिंता है और न ही बाघ की। खबर है कि रणथंभौर के नेशनल पार्क को अब साल भर के लिए खोल दिया जाएगा। इसी तरह सतपुड़ा के जंगलों में स्थित मड़ई में मानसून में भी बफर जोन में टूरिस्ट जा सकेंगे। जब राजस्थान के ही सरिस्का से बाघों के पूरी तरह गायब होने की खबर आई थी तो तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सरिस्का पहुंच गए थे। लेकिन क्या आपको याद है कि देश के वजीरेआजम मोदी या राजस्थान की मुखिया वसुंधरा या फिर मप्र के सीएम शिवराज ने कभी भी बाघों के लिए दो शब्द भी बोला हो? लेकिन उनकी सरकारें लगातार एक के बाद एक ऐसे फैसले करती जा रही हैं, जिससे बाघों के अस्तिव के सामने खतरा मंडरा रहा है। चूंकि सरकारें आंकड़ों की बाजीगरी में उ...
Comments
jab insan ki ikshashakti dagmagane lage to use dune junoon se kaam karna chahiye.
bazarwad agar patrakarita par hawi hone lage to bazarwad me ghus kar patrakarita ko us par sawari karni chahiye, kyoki sona to aag me tapkar hi khara hota hai aur aaj ki patrakarita me to sadhan & sansadhan dono hi maujood hain.