अन्य कहानियो की तरह इसमें भी एक प्रेमी है और एक प्रेमिका है। कहानी की शुरुआत यह है कि एक लड़के को एक लड़की से प्यार हो जाता है. एक तरफा प्यार...दोनों एक ही कालेज में एक साथ पांच सालों का सफर तय करते हैं. लेकिन कभी भी लड़के ने लड़की से कहा कि वो लड़की से कितना प्यार करता है. दोनों में गहरी दोस्ती थी. जैसे दो जिस्म एक जान हों.
दोनो ही छोटे छोटे कस्बे से आए थे। दोनों के अपने अपने सपने थे. और दोनों किसी भी किम्मत पर अपने अपने सपने को पाने में लगे हुए थे. उस लड़की के प्यार में पड़कर वो लड़का पहले अपने सच्चे दोस्तों को खोता है और फिर अपने कैरियर को भी दांव पर लगा देता है. वो उस लड़की का कहा कभी भी नहीं टालता था. घर के काम से लेकर नोट बनाने तक के मामले में वो एक ही पाँव पर खड़ा दिखता था. कहते हैं ना प्यार अँधा होता है. यहाँ सिर्फ अँधा ही नहीं बहरा और लंगडा दोनों ही था.
देखते देखते कई साल बीत गए। धीरे धीरे उस लड़की ने लड़के से मिलना छोड़ दिया और एक दिन लड़के के घर पर शादी का कार्ड आया. यह उसी लड़की की शादी का कार्ड था. उसकी आँखों में अब गंगा जमुना बह रही थी. उसने तुरंत उस लड़की को फोन किया॥
और बस इतना कहा कि तुम ऐसा कदम कैसे उठा सकती हो ?
लड़की ने पूछा कैसा कदम ?
उसने कहा शादी का॥
इस बार फिर लड़की ने कुछ ना कहा।
लड़के ने कहा रोते हुए मैं तुमसे प्यार करता हूँ..और यह पूरा शहर जानता है.
मैंने तो कभी नहीं कहा कि मैं भी तुमसे प्यार करती हूँ॥ लड़की से बेरुखी से कहा।
लड़के ने बस इतना कह कर फोन रख दिया कि काश यह बात उसने कई सालों पहले कह दी होती तो आज वो भी इन्सान होता॥जिसके पास एक बेहतर भविष्य होता...
इसके बाद काफी देर तक वो रोता रहा...और इस तरह के और प्रेम कथा का अंत हो जाता है और इसी के साथ एक जिंदगी भी।
(यह एक छोटी लेकिन सच्ची कहानी है. जो बार बार दोहराई जाती है. इस कहानी के नायक और नायिका से कई बार आपका सामना होता होगा. और यह कहानी मेरे एक खास दोस्त ने मुझे आज से कई साल पहले भोपाल में सुनाई थी.)
दोनो ही छोटे छोटे कस्बे से आए थे। दोनों के अपने अपने सपने थे. और दोनों किसी भी किम्मत पर अपने अपने सपने को पाने में लगे हुए थे. उस लड़की के प्यार में पड़कर वो लड़का पहले अपने सच्चे दोस्तों को खोता है और फिर अपने कैरियर को भी दांव पर लगा देता है. वो उस लड़की का कहा कभी भी नहीं टालता था. घर के काम से लेकर नोट बनाने तक के मामले में वो एक ही पाँव पर खड़ा दिखता था. कहते हैं ना प्यार अँधा होता है. यहाँ सिर्फ अँधा ही नहीं बहरा और लंगडा दोनों ही था.
देखते देखते कई साल बीत गए। धीरे धीरे उस लड़की ने लड़के से मिलना छोड़ दिया और एक दिन लड़के के घर पर शादी का कार्ड आया. यह उसी लड़की की शादी का कार्ड था. उसकी आँखों में अब गंगा जमुना बह रही थी. उसने तुरंत उस लड़की को फोन किया॥
और बस इतना कहा कि तुम ऐसा कदम कैसे उठा सकती हो ?
लड़की ने पूछा कैसा कदम ?
उसने कहा शादी का॥
इस बार फिर लड़की ने कुछ ना कहा।
लड़के ने कहा रोते हुए मैं तुमसे प्यार करता हूँ..और यह पूरा शहर जानता है.
मैंने तो कभी नहीं कहा कि मैं भी तुमसे प्यार करती हूँ॥ लड़की से बेरुखी से कहा।
लड़के ने बस इतना कह कर फोन रख दिया कि काश यह बात उसने कई सालों पहले कह दी होती तो आज वो भी इन्सान होता॥जिसके पास एक बेहतर भविष्य होता...
इसके बाद काफी देर तक वो रोता रहा...और इस तरह के और प्रेम कथा का अंत हो जाता है और इसी के साथ एक जिंदगी भी।
(यह एक छोटी लेकिन सच्ची कहानी है. जो बार बार दोहराई जाती है. इस कहानी के नायक और नायिका से कई बार आपका सामना होता होगा. और यह कहानी मेरे एक खास दोस्त ने मुझे आज से कई साल पहले भोपाल में सुनाई थी.)
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दीपक भारतदीप
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