Skip to main content

युवा पत्रकार नीरज जी के परिजनों की मदद की मुहिम


दोस्तों हमारी जमात के एक साथी नीरज जी हमें छोड़कर चले गएँ हैं। उनका अचानक यूं चला जाना पत्रकारिता जगत के लिये एक भारी सदमा हैं। भड़ास में अंकित जी ने बताया कि सहारनपुर में कार्यरत IBN -7 के युवा पत्रकार नीरज चौधरी का देर रात एक सड़क दुर्घटना में देहावसान हो गया। नीरज सहारनपुर की पत्रकारिता में अपने अच्छे स्वभाव एव उत्कृष्ट काम के लिये जाने जाते थे। नीरज अपने परिवार में अपनी धर्म पत्नी एवं चार वर्षीय पुत्र पीछे छोड़ गये हैं।

एक सामाजिक प्राणी होने के नाते हम सब अपने अपने स्तर पर नीरज जी के परिवार की कुछ न कुछ मदद कर सकते हैं. यदि आप कुछ मदद करना चाहे तो यशवंत जी से 99993-30099 पर या मुझसे 98675-75176 पर बात कर सकते हैं. नीरज जी के परिजनों से बात करने के बाद आपको उनका एकाउंट नंबर बता दिया जाएगा, जिसमें आप रकम ट्रांसफर कर देंगे. अधिक जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें.हम उम्मीद करते हैं कि आप अपने स्तर पर जरुर कुछ न कुछ मदद कर सकते हैं.

आशीष महर्षि, मुंबई यशवंत सिंह, नई दिल्ली

अब तक मदद करने वालों में ये लोग प्रमुख हैं।

यशवंत सिंह, अजय ब्रह्मात्मज, मुंबई, अंकित माथुर, नई दिल्ली, रियाज हाशमी, सहारनपुर, विनोद सिंह, नई दिल्ली, राकेश राय, मेरठ, संजय त्रिपाठी, आशीष महर्षि, मुंबई, दिलीप मंडल, नई दिल्ली, अनिल सिन्हा, कानपुर, सचिन श्रीवास्तव, लुधियाना, आलोक सिंह, लुधियाना, पंकज शुक्ल, मुंबई, अरविंद कटियार, कानपुर.

Comments

प्रिय मित्र आशीष जी
पत्रकार नीरज जी की मौत का समाचार अत्यंत दुखद है..और उनके परिवार के साथ मेरी पूरी संवेदना है..लकिन मुझे इस बात की ख़ुशी है.की पीडा के इस दौर मे आप उनके परिवार को सार्थक संबल प्रदान करने मे जुटे है... निश्चित तौर पर आपके इस प्रयास से जहा दुखी परिवार को सहारा मिलेगा वही आज के युवा पत्रकारों को एक नई प्रेरणा मिलेगी...पत्रकार जगत आपके इस सक्रिए प्रयास का हमेशा आभारी रहेगा.

आपका युवा साथी
अपूर्व पंकज
नीरज जी के जाने का जितना दुख हुआ उससे कहीं अधिक दुख और चिंता उनकी पत्नी और बेटे को लेकर है. ईश्वर से प्रार्थना है कि उन्हें शक्ति दे.
भारत जाने पर मैं आपसे उनका पता और फोन लेना चाहूँगी.

Popular posts from this blog

मुंबई का कड़वा सच

मुंबई या‍नि मायानगरी। मुंबई का नाम लेते ही हमारे जेहन में एक उस शहर की तस्‍वीर सामने आती हैं जहां हर रोज लाखों लोग अपने सपनों के संग आते हैं और फिर जी जान से जुट जाते हैं उन सपनों को साकार करने के लिए। मुंबई जानी जाती है कि हमेशा एक जागते हुए शहर में। वो शहर जो कभी नहीं सोता है, मुंबई सिर्फ जगमगाता ही है। लेकिन मुंबई में ही एक और भी दुनिया है जो कि हमें नहीं दिखती है। जी हां मैं बात कर रहा हूं बोरिवली के आसपास के जंगलों में रहने वाले उन आदिवासियों की जो कि पिछले दिनों राष्‍ट्रीय खबर में छाए रहे अपनी गरीबी और तंगहाली को लेकर। आप सोच रहे होंगे कि कंक्रीट के जंगलों में असली जंगल और आदिवासी। दिमाग पर अधिक जोर लगाने का प्रयास करना बेकार है। मुंबई के बोरिवली जहां राजीव गांधी के नाम पर एक राष्ट्रीय पार्क है। इस पार्क में कुछ आदिवासियों के गांव हैं, जो कि सैकड़ो सालों से इन जंगलों में हैं। आज पर्याप्‍त कमाई नहीं हो पाने के कारण इनके बच्‍चे कुपो‍षित हैं, महिलाओं की स्थिति भी कोई खास नहीं है। पार्क में आने वाले जो अपना झूठा खाना फेंक देते हैं, बच्‍चे उन्‍हें खा कर गुजारा कर लेते हैं। आदिवासी आदम

प्यार, मोहब्बत और वो

आप यकिन कीजिए मुझे प्यार हो गया है. दिक्कत बस इतनी सी है कि उनकी उमर मुझसे थोडी सी ज्यादा है. मैं २५ बरस का हूँ और उन्होंने ४५ वा बसंत पार किया है. पेशे से वो डाक्टर हैं. इसी शहर में रहती हैं. सोचता हूँ अपनी मोहब्बत का इज़हार कर ही दूँ. लेकिन डर भी सता रहा है. यदि उन्होंने ना कर दिया तो. खैर यह उनका विशेषाधिकार भी है. उनसे पहली मुलाकात एक स्टोरी के चक्कर में हुई थी. शहर में किसी डाक्टर का कमेन्ट चाहिए था. सामने एक अस्पताल दिखा और धुस गया मैं अन्दर. बस वहीं उनसे पहली बार मुलाकात हुई. इसके बाद आए दिन मुलाकातें बढती गई. यकीं मानिये उनका साथ उनकी बातें मुझे शानदार लगती हैं. मैं उनसे मिलने का कोई बहाना नहीं छोड़ता हूँ. अब आप ही बताएं मैं क्या करूँ..

बेनामी जी आपके लिए

गुजरात में अगले महीने चुनाव है और इसी के साथ भगवा नेकर पहनकर कई सारे लोग बेनामी नाम से ब्लॉग की दुनिया में हंगामा बरपा रहे हैं. एक ऐसे ही बेनामी से मेरा भी पाला पड़ गया. मैं पूरा प्रयास करता हूँ कि जहाँ तक हो इन डरपोक और कायर लोगों से बचा जाए. सुनील ने मोदी और करण थापर को लेकर एक पोस्ट डाल दी और मैं उस पर अपनी राय, बस फिर क्या था. कूद पड़े एक साहेब भगवा नेकर पहन कर बेनामी नाम से. भाई साहब में इतना सा साहस नहीं कि अपने नाम से कुछ लिख सकें. और मुझे ही एक टुच्चे टाईप पत्रकार कह दिया. मन में था कि जवाब नहीं देना है लेकिन साथियों ने कहा कि ऐसे लोगों का जवाब देना जरूरी है. वरना ये लोग फिर बेनामी नाम से उल्टा सुलटा कहेंगे. सबसे पहले बेनामी वाले भाई साहब कि राय.... अपने चैनल के नंगेपन की बात नहीं करेंगे? गाँव के एक लड़के के अन्दर अमेरिकन वैज्ञानिक की आत्मा की कहानी....भूल गए?....चार साल की एक बच्ची के अन्दर कल्पना चावला की आत्मा...भूल गए?...उमा खुराना...भूल गए?....भूत-प्रेत की कहानियाँ...भूल गए?... सीएनएन आपका चैनल है!....आशीष का नाम नहीं सुना भाई हमने कभी...टीवी १८ के बोर्ड में हैं आप?...कौन सा