Skip to main content

तीसरे बिहारी को मुंबई भेज दो

हम दो, हमारे दो, तीसरा हो तो मुंबई भेज दो। हां यही मैसेज बिहारी नेता लालू यादव ने अपने राज्‍य की जनता को दिया है। सुबह जब अपना ई मेल चेक कर रहा था तो यह मेल देख कर थोड़ा सोच में पड़ गया। क्‍या इस मैसेज पर रोया जाए या फिर बस हल्‍का सा मुस्‍कुराने से काम चल जाएगा। ऐसा भी हो सकता है कि किसी ने लालू का बदनाम करने के लिए लालू के नाम से यह मैसेज फैलाया है। खैर बात जो भी, आप तो बस यह बताएं कि इस मेल पर आपकी क्‍या प्रतिक्रिया है। आपकी प्रतिक्रिया को हम लालू यादव, बाल ठाकरे व राज ठाकरे तक पहुंचाने का प्रयास करेंगें।

Comments

निश्चय ही इसके पीछे किसी "कलाकार" का हाथ है।
Anonymous said…
ये साले बिहारी जहां गए हैं उस स्‍थान को गंदा ही किया है। दिल्‍ली को नरक बनाने में इनका और इनकी औलादों का बहुत बड़ा हाथ है।
जो भी है तुकबंदी अच्‍छी की है
Ek ziddi dhun said…
हाँ, ठीक है ये स्लोगन..लालू की तरफ़ से भी है, नीतीश, शत्रुघ्न, शरद, रामविलास और बिहार के तमाम ठाकुर, बहमन, भूमिहार, बनिया आदि टोलों की तरफ़ से भी....ये जो हल्ला मचा रहे हैं, ठाकरे की करतूत पर, ये ख़ुद भी ठाकरे हैं...बिहार का ताकतवर तबका अगर जीने दे गरीबों को, फिर वे क्या सिर्फ़ रिक्शा चलने, मजदूरी करने गहर छोड़ कर जायें..ये बिहार से खदेडे हुए लोग होते हैं, जिन्हें दूसरी जगहों पर भी सताया जाता है...ये सब प्रदेशों के गरीबों की बात है.....ab ye jo benami sahab hai, ye apni baaton se gandgi failate ghoomte hain

Popular posts from this blog

मै जरुर वापस आऊंगा

समझ में नहीं आ रहा कि शुरुआत क्‍हां से और कैसे करुं। लेकिन शुरुआत तो करनी होगी। मुंबई में दो साल हो गए हैं और अब इस श‍हर को छोड़कर जाना पड़ रहा है। यह मेरी सबसे बड़ी कमजोरी है कि मैं जहां भी रहता हूं उसके मोह में बंध जाता हूं। बनारस से राजस्‍थान आते भी ऐसा ही कुछ महसूस हुआ था। फिर जयपुर से भोपाल जाते हुए दिल को तकलीफ हुई थी। इसके बाद भोपाल से मुंबई आते हुए भोपाल और दोस्‍तों को छोड़ते हुए डर लग रहा था। और आज मुंबई छोड़ते हुए अच्‍छा नहीं लग रहा है। मैं बार बार लिखता रहा हूं कि मुंबई मेरा दूसरा प्‍यार है। और किसी भी प्‍यार को छोडते हुए विरह की अग्नि में जलना बड़ा कष्‍टदायक होता है। इस शहर ने मुझे बहुत कुछ दिया। इस शहर से मुझे एक अस्तिव मिला। कुछ वक्‍त उसके साथ गुजारने का मौका मिला, जिसके साथ मैने सोचा भी नहीं था। मुंबई पर कई लेख लिखते वक्‍त इस शहरों को पूरी तरह मैने जिया है। लेकिन अब छोड़कर जाना पड़ रहा है। बचपन से लेकर अब तक कई शहरों में जिंदगी बसर करने का मौका मिला। लेकिन बनारस और मुंबई ही दो ऐसे शहर हैं जो मेरे मिजाज से मेल खाते हैं। बाकी शहरों में थोड़ी सी बोरियत होती है लेकिन यहां ऐसा

मुंबई का कड़वा सच

मुंबई या‍नि मायानगरी। मुंबई का नाम लेते ही हमारे जेहन में एक उस शहर की तस्‍वीर सामने आती हैं जहां हर रोज लाखों लोग अपने सपनों के संग आते हैं और फिर जी जान से जुट जाते हैं उन सपनों को साकार करने के लिए। मुंबई जानी जाती है कि हमेशा एक जागते हुए शहर में। वो शहर जो कभी नहीं सोता है, मुंबई सिर्फ जगमगाता ही है। लेकिन मुंबई में ही एक और भी दुनिया है जो कि हमें नहीं दिखती है। जी हां मैं बात कर रहा हूं बोरिवली के आसपास के जंगलों में रहने वाले उन आदिवासियों की जो कि पिछले दिनों राष्‍ट्रीय खबर में छाए रहे अपनी गरीबी और तंगहाली को लेकर। आप सोच रहे होंगे कि कंक्रीट के जंगलों में असली जंगल और आदिवासी। दिमाग पर अधिक जोर लगाने का प्रयास करना बेकार है। मुंबई के बोरिवली जहां राजीव गांधी के नाम पर एक राष्ट्रीय पार्क है। इस पार्क में कुछ आदिवासियों के गांव हैं, जो कि सैकड़ो सालों से इन जंगलों में हैं। आज पर्याप्‍त कमाई नहीं हो पाने के कारण इनके बच्‍चे कुपो‍षित हैं, महिलाओं की स्थिति भी कोई खास नहीं है। पार्क में आने वाले जो अपना झूठा खाना फेंक देते हैं, बच्‍चे उन्‍हें खा कर गुजारा कर लेते हैं। आदिवासी आदम

बस में तुम्‍हारा इंतजार

हर रोज की तरह मुझे आज भी पकड़नी थी बेस्‍ट की बस। हर रोज की तरह मैंने किया आज भी तुम्‍हारा इंतजार अंधेरी के उसी बस स्‍टॉप पर जहां कभी हम साथ मिला करते थे अक्‍सर बसों को मैं बस इसलिए छोड़ देता था ताकि तुम्‍हारा साथ पा सकूं ऑफिस के रास्‍ते में कई बार हम साथ साथ गए थे ऑफिस लेकिन अब वो बाते हो गई हैं यादें आज भी मैं बेस्‍ट की बस में तुम्‍हारा इंतजार करता हूं और मुंबई की खाक छानता हूं अंतर बस इतना है अब बस में तन्‍हा हूं फिर भी तुम्‍हारा इंतजार करता हूं