Skip to main content

क्‍या वाकई दोस्‍ती प्‍यार है

सबसे पहले मैं यह बात दूं कि यह कविता मेरी नहीं है। मेरे एक दोस्‍त ने मुझे भेजी है जिसे मैं बस आप सबके लिए लगा रहा हूं। पढि़ए और बताइए क्‍या वाकई दोस्‍ती ऐसी ही होती है जैसा इस कविता में कहा गया है।

दोस्ती पहली बारिश की बूंदों मैं है..
दोस्ती खिलते फूलों की खुशबू मैं है ..
दोस्ती ढलते सूरज की किरणों मैं है ..
दोस्ती हर नए दिन की उम्मीद है..
दोस्ती ख्वाब है, दोस्ती जीत है..
दोस्ती प्यार है, दोस्ती गीत है..
दोस्ती दो दिलों का संगीत है..
दोस्ती सांग चलती हवाओं मैं है..
दोस्ती इन बरसती घटाओं मैं है..
दोस्ती दोस्तों की वफाओं मैं है..

Comments

बहुत ही खूबसूरत
Anonymous said…
जी हाँ, दोस्ती ऐसी ही होती है. जो लिखा है उसकी सुन्दरता सौ गुनी हो जाए, ठीक ऐसी ही दोस्ती कर के देखो तो .. मीनाक्षी
mamta said…
वाह-वाह !
Anonymous said…
कविता तो सुन्दर है. पर क्या ऐसे दोस्त मिलते है?
ghughutibasuti said…
ऐसी दोस्ती मिलनी कठिन तो है परन्तु बिना यत्न किये क्या कभी कुछ मिला है ?
घुघूती बासूती
vikas pandey said…
सुंदर कविता है
pritima vats said…
बहुत खूब !
दोस्ती पर ये सुन्दर और मन को भाने वाले उद्गार हैं। लेकिन भाई क्या असल में इतने भर को ही दोस्ती में समेटा जाना सही है?
Atul Mongia said…
hi Ashish

Nice to hear from you. They say its the intentions, moral and spiritual conflicts that lead us to our purpose, our self-made destiny... Your tender self has the right beginnings and I wish you all the best in years to come. God bless...

Popular posts from this blog

मुंबई का कड़वा सच

मुंबई या‍नि मायानगरी। मुंबई का नाम लेते ही हमारे जेहन में एक उस शहर की तस्‍वीर सामने आती हैं जहां हर रोज लाखों लोग अपने सपनों के संग आते हैं और फिर जी जान से जुट जाते हैं उन सपनों को साकार करने के लिए। मुंबई जानी जाती है कि हमेशा एक जागते हुए शहर में। वो शहर जो कभी नहीं सोता है, मुंबई सिर्फ जगमगाता ही है। लेकिन मुंबई में ही एक और भी दुनिया है जो कि हमें नहीं दिखती है। जी हां मैं बात कर रहा हूं बोरिवली के आसपास के जंगलों में रहने वाले उन आदिवासियों की जो कि पिछले दिनों राष्‍ट्रीय खबर में छाए रहे अपनी गरीबी और तंगहाली को लेकर। आप सोच रहे होंगे कि कंक्रीट के जंगलों में असली जंगल और आदिवासी। दिमाग पर अधिक जोर लगाने का प्रयास करना बेकार है। मुंबई के बोरिवली जहां राजीव गांधी के नाम पर एक राष्ट्रीय पार्क है। इस पार्क में कुछ आदिवासियों के गांव हैं, जो कि सैकड़ो सालों से इन जंगलों में हैं। आज पर्याप्‍त कमाई नहीं हो पाने के कारण इनके बच्‍चे कुपो‍षित हैं, महिलाओं की स्थिति भी कोई खास नहीं है। पार्क में आने वाले जो अपना झूठा खाना फेंक देते हैं, बच्‍चे उन्‍हें खा कर गुजारा कर लेते हैं। आदिवासी आदम...

बेनामी जी आपके लिए

गुजरात में अगले महीने चुनाव है और इसी के साथ भगवा नेकर पहनकर कई सारे लोग बेनामी नाम से ब्लॉग की दुनिया में हंगामा बरपा रहे हैं. एक ऐसे ही बेनामी से मेरा भी पाला पड़ गया. मैं पूरा प्रयास करता हूँ कि जहाँ तक हो इन डरपोक और कायर लोगों से बचा जाए. सुनील ने मोदी और करण थापर को लेकर एक पोस्ट डाल दी और मैं उस पर अपनी राय, बस फिर क्या था. कूद पड़े एक साहेब भगवा नेकर पहन कर बेनामी नाम से. भाई साहब में इतना सा साहस नहीं कि अपने नाम से कुछ लिख सकें. और मुझे ही एक टुच्चे टाईप पत्रकार कह दिया. मन में था कि जवाब नहीं देना है लेकिन साथियों ने कहा कि ऐसे लोगों का जवाब देना जरूरी है. वरना ये लोग फिर बेनामी नाम से उल्टा सुलटा कहेंगे. सबसे पहले बेनामी वाले भाई साहब कि राय.... अपने चैनल के नंगेपन की बात नहीं करेंगे? गाँव के एक लड़के के अन्दर अमेरिकन वैज्ञानिक की आत्मा की कहानी....भूल गए?....चार साल की एक बच्ची के अन्दर कल्पना चावला की आत्मा...भूल गए?...उमा खुराना...भूल गए?....भूत-प्रेत की कहानियाँ...भूल गए?... सीएनएन आपका चैनल है!....आशीष का नाम नहीं सुना भाई हमने कभी...टीवी १८ के बोर्ड में हैं आप?...कौन सा...

प्यार, मोहब्बत और वो

आप यकिन कीजिए मुझे प्यार हो गया है. दिक्कत बस इतनी सी है कि उनकी उमर मुझसे थोडी सी ज्यादा है. मैं २५ बरस का हूँ और उन्होंने ४५ वा बसंत पार किया है. पेशे से वो डाक्टर हैं. इसी शहर में रहती हैं. सोचता हूँ अपनी मोहब्बत का इज़हार कर ही दूँ. लेकिन डर भी सता रहा है. यदि उन्होंने ना कर दिया तो. खैर यह उनका विशेषाधिकार भी है. उनसे पहली मुलाकात एक स्टोरी के चक्कर में हुई थी. शहर में किसी डाक्टर का कमेन्ट चाहिए था. सामने एक अस्पताल दिखा और धुस गया मैं अन्दर. बस वहीं उनसे पहली बार मुलाकात हुई. इसके बाद आए दिन मुलाकातें बढती गई. यकीं मानिये उनका साथ उनकी बातें मुझे शानदार लगती हैं. मैं उनसे मिलने का कोई बहाना नहीं छोड़ता हूँ. अब आप ही बताएं मैं क्या करूँ..