Skip to main content

मैं, मच्‍छर और सेक्‍स अपील

आज मैं खुश हूं। पहली बार इस बात पर खुश हूं कि मुझे मच्‍छर खूब सताते हैं। खुशी की वजह पेरिस और फिनलैंड के शोधकर्ताओं की दो अलग-अलग समूह की वो रिपोर्ट भी है, जिसमें कहा गया है कि मच्छर उनकी तरफ ज्यादा आकर्षित होते हैं, जिनकी सेक्स अपील अच्छी होती है और जो सुंदर होते हैं। यह रिपोर्ट एक जर्मन पत्रिका में प्रकाशित हुई है।

फिनलैंड के यूनिवर्सिटी ऑफ टुरकू के प्रोफेसर पावो टिकनेन ने कुछ विवाहित जोड़ों व कुछ अकेले लोगों को मच्छरों से भरी प्रयोगशाला में कुछ समय बिताने के लिए कहा। उन पर किए गए तकरीबन सात परीक्षणों के बाद वे इस नतीजे पर पहुंचे कि मच्छर उनकी तरफ ज्यादा आकर्षित होते हैं, जिनके शरीर से फेरामोंस नामक मादक हार्मोन का रिसाव होता है। यहां एक बात और बताना चाहूंगा कि यह पहले से भी प्रमाणित है कि जिन व्यक्तियों के पसीने से ज्यादा मादक गंध आती है, उन्हें मच्छर काफी परेशान करते हैं। अब आगें मैं क्‍या कहूं। मैं खुश हूं। बस आपसे इतना निवेदन है कि अर्थ का अनर्थ मत निकालिएगा। लेकिन कमेंट देकर अपनी राय जरुर देकर मेरा उत्‍साहवर्धन कर सकते हैं।

Comments

Anita kumar said…
मतलब अब मच्छर मनुष्य के आकर्षण का प्रमाण बनेगें, आशिष जी मच्छर से पूछने के बदले किसी कन्या से पूछ लेना था न मतलब मानस नारी से, मच्छर नारी से नहीं…।:)
मेने तो सुना हे एक मच्छर आदमी कॊ ही.... बना देता हे, शायाद इसी लिये मच्छर उसे अपना निशाना बनाता हे,ऎसे मच्छर चीन या पकिस्तान ने तो नही छोडे,वेसे अमेरिका भी तो हो सकता हे,धन्यवाद सचेत करने का
यानी जिस चीज से नारी आकर्षित होती है, उसी से मच्छरनी भी होती है? क्या समानता है! :D
Confused SouL's said…
Do you really think its true!!!!!!!!!!!!well i dnt..........because a mosquito comes or bites or takes blood for his/her patepuja.... not for the person's sex appeal....
mamta said…
आशीष हम तो अनिता जी की बात ही दोहराएँगे। :)
अच्छा तो ये मामला भी है आशीष
Udan Tashtari said…
चलो मैं ही सर्टीफाई कर देता हूँ इसकी सत्यता...क्योंकि मुझे भी मच्छर बहुत काटते हैं. :) अनुभव के आधार पर कहे देता हूँ कि शोध के परिणाम सत्य हैं. (कुछ समय में कमेंट अलग कर देना कहीं घर पर दिख गया तो....मच्छरों के साथ ही नजर आऊंगा) :)
ईश्‍वर करे आपके चारों और मच्‍छर ही मच्‍छर उडते रहें।

:)

Popular posts from this blog

मै जरुर वापस आऊंगा

समझ में नहीं आ रहा कि शुरुआत क्‍हां से और कैसे करुं। लेकिन शुरुआत तो करनी होगी। मुंबई में दो साल हो गए हैं और अब इस श‍हर को छोड़कर जाना पड़ रहा है। यह मेरी सबसे बड़ी कमजोरी है कि मैं जहां भी रहता हूं उसके मोह में बंध जाता हूं। बनारस से राजस्‍थान आते भी ऐसा ही कुछ महसूस हुआ था। फिर जयपुर से भोपाल जाते हुए दिल को तकलीफ हुई थी। इसके बाद भोपाल से मुंबई आते हुए भोपाल और दोस्‍तों को छोड़ते हुए डर लग रहा था। और आज मुंबई छोड़ते हुए अच्‍छा नहीं लग रहा है। मैं बार बार लिखता रहा हूं कि मुंबई मेरा दूसरा प्‍यार है। और किसी भी प्‍यार को छोडते हुए विरह की अग्नि में जलना बड़ा कष्‍टदायक होता है। इस शहर ने मुझे बहुत कुछ दिया। इस शहर से मुझे एक अस्तिव मिला। कुछ वक्‍त उसके साथ गुजारने का मौका मिला, जिसके साथ मैने सोचा भी नहीं था। मुंबई पर कई लेख लिखते वक्‍त इस शहरों को पूरी तरह मैने जिया है। लेकिन अब छोड़कर जाना पड़ रहा है। बचपन से लेकर अब तक कई शहरों में जिंदगी बसर करने का मौका मिला। लेकिन बनारस और मुंबई ही दो ऐसे शहर हैं जो मेरे मिजाज से मेल खाते हैं। बाकी शहरों में थोड़ी सी बोरियत होती है लेकिन यहां ऐसा

मुंबई का कड़वा सच

मुंबई या‍नि मायानगरी। मुंबई का नाम लेते ही हमारे जेहन में एक उस शहर की तस्‍वीर सामने आती हैं जहां हर रोज लाखों लोग अपने सपनों के संग आते हैं और फिर जी जान से जुट जाते हैं उन सपनों को साकार करने के लिए। मुंबई जानी जाती है कि हमेशा एक जागते हुए शहर में। वो शहर जो कभी नहीं सोता है, मुंबई सिर्फ जगमगाता ही है। लेकिन मुंबई में ही एक और भी दुनिया है जो कि हमें नहीं दिखती है। जी हां मैं बात कर रहा हूं बोरिवली के आसपास के जंगलों में रहने वाले उन आदिवासियों की जो कि पिछले दिनों राष्‍ट्रीय खबर में छाए रहे अपनी गरीबी और तंगहाली को लेकर। आप सोच रहे होंगे कि कंक्रीट के जंगलों में असली जंगल और आदिवासी। दिमाग पर अधिक जोर लगाने का प्रयास करना बेकार है। मुंबई के बोरिवली जहां राजीव गांधी के नाम पर एक राष्ट्रीय पार्क है। इस पार्क में कुछ आदिवासियों के गांव हैं, जो कि सैकड़ो सालों से इन जंगलों में हैं। आज पर्याप्‍त कमाई नहीं हो पाने के कारण इनके बच्‍चे कुपो‍षित हैं, महिलाओं की स्थिति भी कोई खास नहीं है। पार्क में आने वाले जो अपना झूठा खाना फेंक देते हैं, बच्‍चे उन्‍हें खा कर गुजारा कर लेते हैं। आदिवासी आदम

बस में तुम्‍हारा इंतजार

हर रोज की तरह मुझे आज भी पकड़नी थी बेस्‍ट की बस। हर रोज की तरह मैंने किया आज भी तुम्‍हारा इंतजार अंधेरी के उसी बस स्‍टॉप पर जहां कभी हम साथ मिला करते थे अक्‍सर बसों को मैं बस इसलिए छोड़ देता था ताकि तुम्‍हारा साथ पा सकूं ऑफिस के रास्‍ते में कई बार हम साथ साथ गए थे ऑफिस लेकिन अब वो बाते हो गई हैं यादें आज भी मैं बेस्‍ट की बस में तुम्‍हारा इंतजार करता हूं और मुंबई की खाक छानता हूं अंतर बस इतना है अब बस में तन्‍हा हूं फिर भी तुम्‍हारा इंतजार करता हूं