कालेज अब पुराना हो गया हैं लेकिन फिर भी उसकी याद पुरानी नहीं हुई हैं। जेसे कल ही कि तो बात हैं जब मैं कालेज मे था। वो भोपाल का हमारा छोटा लेकिन प्यारा केम्पस और आसपास का अपना सा माहौल। लेकिन अब इन बातों को करीब सवा साल होने को आये हैं। भोपाल के सात नंबर बस स्टाप पर हमारा कालेज हुआ करता था। क्या याद करूं और क्या भूलूं कुछ भी समझ मे नही आ रहा हैं। कालेज के दिनों मे एक जूनून था लेकिन जब मीडिया के फिल्ड मे अन्दर धुसे तो जूनून थोडा कम हो गया हैं लेकिन अभी ख़त्म नही हुआ हैं। सोचा था कुछ करके दिखाएँगे लेकिन अब लगता कि नौकरी कर रहे हैं सिर्फ। बार बार दिमाग मे एक ही सवाल आता हैं कि क्या पत्रकारिता संभव नही रही आज के बाजारवाद के दौर मे। जिसे देखो वहीँ अधिक से अधिक मुनाफा कमाना चाह रहा हैं। ऐसे मे पत्रकारिता कहॉ गुम हो गई।
गुजरात में अगले महीने चुनाव है और इसी के साथ भगवा नेकर पहनकर कई सारे लोग बेनामी नाम से ब्लॉग की दुनिया में हंगामा बरपा रहे हैं. एक ऐसे ही बेनामी से मेरा भी पाला पड़ गया. मैं पूरा प्रयास करता हूँ कि जहाँ तक हो इन डरपोक और कायर लोगों से बचा जाए. सुनील ने मोदी और करण थापर को लेकर एक पोस्ट डाल दी और मैं उस पर अपनी राय, बस फिर क्या था. कूद पड़े एक साहेब भगवा नेकर पहन कर बेनामी नाम से. भाई साहब में इतना सा साहस नहीं कि अपने नाम से कुछ लिख सकें. और मुझे ही एक टुच्चे टाईप पत्रकार कह दिया. मन में था कि जवाब नहीं देना है लेकिन साथियों ने कहा कि ऐसे लोगों का जवाब देना जरूरी है. वरना ये लोग फिर बेनामी नाम से उल्टा सुलटा कहेंगे. सबसे पहले बेनामी वाले भाई साहब कि राय.... अपने चैनल के नंगेपन की बात नहीं करेंगे? गाँव के एक लड़के के अन्दर अमेरिकन वैज्ञानिक की आत्मा की कहानी....भूल गए?....चार साल की एक बच्ची के अन्दर कल्पना चावला की आत्मा...भूल गए?...उमा खुराना...भूल गए?....भूत-प्रेत की कहानियाँ...भूल गए?... सीएनएन आपका चैनल है!....आशीष का नाम नहीं सुना भाई हमने कभी...टीवी १८ के बोर्ड में हैं आप?...कौन सा...
Comments
jab insan ki ikshashakti dagmagane lage to use dune junoon se kaam karna chahiye.
bazarwad agar patrakarita par hawi hone lage to bazarwad me ghus kar patrakarita ko us par sawari karni chahiye, kyoki sona to aag me tapkar hi khara hota hai aur aaj ki patrakarita me to sadhan & sansadhan dono hi maujood hain.