चारों ओर हैं दीपावली का जोर
फिर भी कुछ लोग मचा रहे हैं शोर
कोई भूखा है तो कोई नंगा
लेकिन हमें क्या
क्यूंकि हम सभ्य है और वो असभ्य
ऐसा ही तो हम कहते हैं
लोग कह रहे हैं दीये जलाओं
मन का अंधकार मिटाओ
अन्दर ही अन्दर लोगों को दूर भगाओ
शहर में चमक रहे हैं माल और दुकानदार
गाँव में फिर भी हैं राशन की लम्बी कतार
होते है जहाँ रोज दंगे
नेता जी हैं नंगे
आम आदमी हैं पस्त
नेता जी हैं मस्त
बस्ती में पानी नहीं
आंखों का पानी भी गायब है
दोस्ती के नाम पर दगा देते हैं
फिर अपने को दोस्त कहते हैं
फिर भी बोलो शुभ दीवाली
फिर भी कुछ लोग मचा रहे हैं शोर
कोई भूखा है तो कोई नंगा
लेकिन हमें क्या
क्यूंकि हम सभ्य है और वो असभ्य
ऐसा ही तो हम कहते हैं
लोग कह रहे हैं दीये जलाओं
मन का अंधकार मिटाओ
अन्दर ही अन्दर लोगों को दूर भगाओ
शहर में चमक रहे हैं माल और दुकानदार
गाँव में फिर भी हैं राशन की लम्बी कतार
होते है जहाँ रोज दंगे
नेता जी हैं नंगे
आम आदमी हैं पस्त
नेता जी हैं मस्त
बस्ती में पानी नहीं
आंखों का पानी भी गायब है
दोस्ती के नाम पर दगा देते हैं
फिर अपने को दोस्त कहते हैं
फिर भी बोलो शुभ दीवाली
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