Skip to main content

एक प्रेम कथा --वह खूबसूरत शाम उसके जीवन की सबसे भयावह शाम में बदल चुकी थी

उम्र बढ़ने के साथ कुछ पुराने रिश्‍तें कमजोर पड़ते जाते हैं और इसके साथ नए रिश्‍तों की नींव पड़ती जाती है। उसके साथ भी कुछ ऐसा ही हो रहा था। वह जीवन के उस पड़ाव पर खड़ा था जहां से वह अपनी खुद की नजरों से दुनिया देखना चाहता था। अब वह जवान हो रहा था। या कहें हो चुका था। इन्‍हीं नए रिश्‍तों में उसका पहला रिश्‍ता पाखी से बना और शायद यह अंतिम भी था। दोनों एक ही मीडिया संस्‍थान में काम करते थे। घर से दूर। दोनों के अरमान एक थे बस रास्‍ते जुदा। वह समय के साथ चलना चाहता था और पाखी समय से आगे। लेकिन मंजिल एक थी। शहर की सबसे खूबसूरत शाम थी वह लेकिन उसे नहीं मालूम था कि वह आज के बाद कभी भी उससे नहीं मिलने वाली थी।

पाखी-अमित मैं यह शहर छोड़कर जा रही हूं।
लेकिन क्‍यूं और यह अचानक कैसे ?
बस मुझे जाना पड़ रहा है। और प्‍लीज कुछ पूछना मत। यह अंतिम लाईने थी पाखी थी।

और वह खूबसूरत शाम उसके जीवन की सबसे भयावह शाम में बदल चुकी थी। लेकिन कहते हैं ना कि समय का मरहम बड़े से बड़े रोग को मिटा देता है। उसके साथ भी ऐसा ही हुआ। वह पाखी को भूल चुका था। समय बीतता गया और पुराने घाव खत्‍म होते गए।

अचानक एक दिन उसे एक कॉन्‍फ्रेस के चक्‍कर में आस्‍ट्रेलिया जाना पड़ा। होटल से बाहर निकलते वक्‍त वह अपने सामने उसी पाखी को पाता है जो कि करीब 22 साल पहले उसे अकेला छोड़कर कहीं चली गई थी। लेकिन बाईस साल पहले छोड़कर गई पाखी की उम्र कैसे बीस बाईस साल की हो सकती है। उसके साथ करीब बाईस साल की पाखी खड़ी थी।

उसे लेने के लिए वहां के आयोजक आ चुके थे। और वह न चाहते हुए भी गाड़ी में बैठ गया। लेकिन दिमाग में एक ही बात गूंज रही थी कि यह पाखी कैसे हो सकती है। पाखी की उम्र तो कम से कम अब 40 साल की होनी चाहिए। गाड़ी की स्‍पीड के साथ उसके दिल की धड़कन भी बढ़ती जा रही थी। उस दिल का दौरा पड़ चुका था। डॉक्‍टर चाहकर भी उसे बचा नहीं पाए।

Comments

mamta said…
अच्छी कहानी । पर अंत कुछ अजीब सा लग रहा है।
Anita kumar said…
ये कहानी तो हमें 'लम्हे' पिक्चर की याद दिलाती है

Popular posts from this blog

मुंबई का कड़वा सच

मुंबई या‍नि मायानगरी। मुंबई का नाम लेते ही हमारे जेहन में एक उस शहर की तस्‍वीर सामने आती हैं जहां हर रोज लाखों लोग अपने सपनों के संग आते हैं और फिर जी जान से जुट जाते हैं उन सपनों को साकार करने के लिए। मुंबई जानी जाती है कि हमेशा एक जागते हुए शहर में। वो शहर जो कभी नहीं सोता है, मुंबई सिर्फ जगमगाता ही है। लेकिन मुंबई में ही एक और भी दुनिया है जो कि हमें नहीं दिखती है। जी हां मैं बात कर रहा हूं बोरिवली के आसपास के जंगलों में रहने वाले उन आदिवासियों की जो कि पिछले दिनों राष्‍ट्रीय खबर में छाए रहे अपनी गरीबी और तंगहाली को लेकर। आप सोच रहे होंगे कि कंक्रीट के जंगलों में असली जंगल और आदिवासी। दिमाग पर अधिक जोर लगाने का प्रयास करना बेकार है। मुंबई के बोरिवली जहां राजीव गांधी के नाम पर एक राष्ट्रीय पार्क है। इस पार्क में कुछ आदिवासियों के गांव हैं, जो कि सैकड़ो सालों से इन जंगलों में हैं। आज पर्याप्‍त कमाई नहीं हो पाने के कारण इनके बच्‍चे कुपो‍षित हैं, महिलाओं की स्थिति भी कोई खास नहीं है। पार्क में आने वाले जो अपना झूठा खाना फेंक देते हैं, बच्‍चे उन्‍हें खा कर गुजारा कर लेते हैं। आदिवासी आदम...

बेनामी जी आपके लिए

गुजरात में अगले महीने चुनाव है और इसी के साथ भगवा नेकर पहनकर कई सारे लोग बेनामी नाम से ब्लॉग की दुनिया में हंगामा बरपा रहे हैं. एक ऐसे ही बेनामी से मेरा भी पाला पड़ गया. मैं पूरा प्रयास करता हूँ कि जहाँ तक हो इन डरपोक और कायर लोगों से बचा जाए. सुनील ने मोदी और करण थापर को लेकर एक पोस्ट डाल दी और मैं उस पर अपनी राय, बस फिर क्या था. कूद पड़े एक साहेब भगवा नेकर पहन कर बेनामी नाम से. भाई साहब में इतना सा साहस नहीं कि अपने नाम से कुछ लिख सकें. और मुझे ही एक टुच्चे टाईप पत्रकार कह दिया. मन में था कि जवाब नहीं देना है लेकिन साथियों ने कहा कि ऐसे लोगों का जवाब देना जरूरी है. वरना ये लोग फिर बेनामी नाम से उल्टा सुलटा कहेंगे. सबसे पहले बेनामी वाले भाई साहब कि राय.... अपने चैनल के नंगेपन की बात नहीं करेंगे? गाँव के एक लड़के के अन्दर अमेरिकन वैज्ञानिक की आत्मा की कहानी....भूल गए?....चार साल की एक बच्ची के अन्दर कल्पना चावला की आत्मा...भूल गए?...उमा खुराना...भूल गए?....भूत-प्रेत की कहानियाँ...भूल गए?... सीएनएन आपका चैनल है!....आशीष का नाम नहीं सुना भाई हमने कभी...टीवी १८ के बोर्ड में हैं आप?...कौन सा...

प्यार, मोहब्बत और वो

आप यकिन कीजिए मुझे प्यार हो गया है. दिक्कत बस इतनी सी है कि उनकी उमर मुझसे थोडी सी ज्यादा है. मैं २५ बरस का हूँ और उन्होंने ४५ वा बसंत पार किया है. पेशे से वो डाक्टर हैं. इसी शहर में रहती हैं. सोचता हूँ अपनी मोहब्बत का इज़हार कर ही दूँ. लेकिन डर भी सता रहा है. यदि उन्होंने ना कर दिया तो. खैर यह उनका विशेषाधिकार भी है. उनसे पहली मुलाकात एक स्टोरी के चक्कर में हुई थी. शहर में किसी डाक्टर का कमेन्ट चाहिए था. सामने एक अस्पताल दिखा और धुस गया मैं अन्दर. बस वहीं उनसे पहली बार मुलाकात हुई. इसके बाद आए दिन मुलाकातें बढती गई. यकीं मानिये उनका साथ उनकी बातें मुझे शानदार लगती हैं. मैं उनसे मिलने का कोई बहाना नहीं छोड़ता हूँ. अब आप ही बताएं मैं क्या करूँ..