
यदि आप से पूछा जाए कि दुनिया में सबसे पवित्र और सच्चा रिश्ता कौन सा है तो हो सकता है सबके जवाब अलग अलग हों। लेकिन मेरे लिए सबसे महत्वपूर्ण रिश्ता है माँ और संतान का. यदि विश्वास नहीं होता तो अपने आसपास ऐसे लोगों को तलाश करें जिनकी माँ नहीं है और फिर उनसे इस रिश्ते के बारें में पूछें. मक्सिम ग्रोकी की माँ किताब यदि आपने पढ़ा है तो ग्रोकी की माँ जाने कितनी माँ हमारे आस पास ही मिल जाएँगी. बस महसूस करने की जरुरत है।
यदि मैं अपनी बात करूँ तो मुझे दुनिया में माँ से प्यारी और कोई नहीं लगती है. मेरी माँ दुनिया की सबसे अच्छी, खूबसूरत और संवेदनशील महिला है. और जी हाँ इस बात पर मुझे गर्व है. पिछले दिनों दो सालों बाद जब बनारस जा रहा था तो ना जाने क्यों बचपन के दिन याद आ रहे थे. सबसे अधिक अपनी माँ के साथ और माँ के लिए बिताये गए दिन याद आ रहे थे. एक एक पल. चाहे वो आजमगढ़ के दिन हों या फिर बनारस के पुराने दिन. सब आंखों के सामने घूम रहे थे. माँ का ममत्व भरा स्पर्श हो या बीमारी में जी जान से जुटना. रात भर जागकर केवल इस लिए बिता देना क्यूंकि उनके लाडले की तबियत सही नहीं है.. वाकई माँ तो माँ ही होती है।
लेकिन जब राजस्थान की एक घटना याद आती तो मैं विचलित हो जाता हूँ। कुछ दिनों पहले कि बात है राजस्थान में एक बहू ने अपनी सास को एक पिंजरे में कई महीनों तक बंद रखा लेकिन उसकी मदद के लिए उसका बेटा तक सामने नहीं आया. मीडिया के माध्यम से उस बूढी माँ को वहां से किसी तरह निकाला गया. मुझे आज तक एक बात परेशान करती है कि आख़िर वो कौन से कारण होते हैं कि एक बेटा ही अपनी माँ की जान का दुश्मन बन जाता है. और उसकी बहू जो कि खुद एक महिला होकर अपनी सास के साथ ऐसा करती है? आख़िर कौन से वो कारण हैं? यदि आपके पास जवाब हो तो जरुर बताएं।
आप माँ को कविता में ढाल सकते हैं. कहानियों में भी स्थान दे सकते हैं. लेकिन कभी माँ नहीं बन सकते. माँ के लिए आपका एक स्त्री होना जरुरी है. जब मैं एक स्त्री की बात करता हूँ तो मेरा आशय हर उस स्त्री से होता है जिसका पूरा जीवन ही लड़ते हुए बिता है. कभी अपनों के लिए तो कभी अपने लिए. आप माँ की वो ममता कहाँ से लायेंगे जो उसे विरासत में मिली है. जैसे जैसे हमारी उम्र बढ़ती जाती है इस रिश्ते को लेकर हम सब की भावनाएं भी बदलती जाती है. कुछ लोगों के लिए माँ बोझ बन जाती है. वही माँ जिन्होंने अपनी कोख में ९ महीने रखकर इस जहाँ में लाई. वही माँ जो ख़ुद भूख से लड़ते हुए अपने बच्चों के लिए दो जून की रोटी का जुगाड़ करती है. वो आज भी दो जून की रोटी से महरूम है.
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फिर जब वर्षों बच्चे खुले आकाश में निर्विघ्न उड़ चुके हों और आपके पंख थक चुके हों तब वे स्वयं ही आपके पंख बन जाएँगे । परन्तु यदि उन्हें यह निर्विघ्न उड़ने का अवसर नहीं दिया गया तो उनके मन में एक कसक रह जाएगी ।
आप जो कह रहे हैं कि एक पुरुष माँ नहीं हो सकता वह गलत है । संसार के कई पुरुष इस बात को झूठा साबित करते हैं। जैसे यशोदा भी जन्म दिये बिना कृष्ण की माँ थी वैसे ही कोई भी पुरुष चाहे तो माँ बन सकता है। और विश्वास कीजिये उसका भी अपना ही आनन्द है ।
घुघूती बासूती
मेरी पोस्ट माँ-बाप पढिएगा मेने भी यही कहने का प्रयास किया है.
दिल को छू लिया आपकी पोस्ट के विचारों ने.
" माँ एक प्यार इक चांदनी, शीतल ठंडी छाँव
सुख सारे इस गोद मे, दुःख जाने कित जाय."