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खोया खोया चाँद को तलाश है दर्शकों की

इसे किसकी बद किस्मती कहें कि अच्छी फिल्मों को दर्शक नहीं मिल पाते हैं. सांवरिया के बाद खोया खोया चाँद के साथ भी ऐसा ही कुछ हो रहा है जो कि अच्छे फ़िल्म निर्माताओं को निराश करने के लिए काफी है. सुधीर मिश्रा एक ऐसे फ़िल्म मेकर हैं जिन्हें किसी पहचान की जरुरत नही हैं. खोया खोया चाँद भी उन्हीं के द्वारा बनाईं गई एक अच्छी फ़िल्म है. लेकिन इसे दर्शक नहीं मिल पा रहे हैं.

मैं जिस हाल में यह फ़िल्म देखने जाता हूँ, वहां मुझे केवल १२ दर्शक ही दिखते हैं. अब आप इस फ़िल्म का अंदाजा लगा सकते हैं. इस फ़िल्म में कई दृश्य आपको मधुबाला और मीना कुमारी की याद दिला सकते हैं. साठ-सत्तर के दशक को परदे पर उतारने के लिए इस फ़िल्म में काफी मेहनत की गई है. लेकिन फ़िल्म में कभी कभी कुछ भटकाव नजर आता है. यह समझना थोड़ा मुश्किल है कि निर्माता इस फ़िल्म में कहना क्या चाहता है.

कहानी कहीं कहीं थोडी बोझिल हो जाती है लेकिन इसके बावजूद कम से कम एक बार इसे जरुर देखा जा सकता है. शाहनी आहूजा और सोहा अली खान मुख्य भूमिका में है. लेकिन आप रजत कपूर, सोनिया, सौरभ शुक्ला और विनय पाठक को नजर अंदाज नहीं कर सकते हैं.

निखत (सोहा अली) को कैसे एक छोटे कलाकार से सुपरस्टार बनने के क्या क्या किम्मत चुकानी पड़ी? यह दिखाने का शायद इसमे प्रयास किया गया है. १४ साल की उम्र में ही निखत को पहली बार एक निर्माता की हवश का शिकार होना पड़ता है. उसकी अति महात्वाकांक्षी माँ, निदेशक और निर्माता उसका खूब फायदा उठाते हैं। जो की कभी थमता नहीं है. इसमें फिल्मी दुनिया का सच है.

Comments

आपकी बात से पूरी तरह इतिफाक रखती हूँ मैं, मेरा भी कुछ ऐसा ही अनुभव था जब मैं खोया खोया चाँद देखने गई जब पहूँची तो बगल की सीट पर जो सज्जन बैथे थे, इण्टरवल में वो भी नदारद मिले। मुझे ज़फर की निर्देशित गिल्म का सीन वही पर सही होता नज़र आने लगा।
फिल्म में सोहा अली बहुत बार बिना बोले ही बहुत कुछ बोलजाती हैं जो शायद उन्होने अपनी माँ से हि लिया है। फिलहाल मुझे तो कोई प्यारा सा उपन्यास पढ़ने जैसी अनुभूति हुई, फिल्म देख कर।
हूं
तो आप फिल्‍म देखकर आए हैं।
हां यार लगता है दर्शकों के दिन खराब हैं, एक भी अच्‍छी फिल्‍म नहीं आ रही। बहुत दिनों से।
अच्‍छी समीक्षा है, सुना है सोहा अली निखत के रूप में पूरी फिल्‍म में छाई रही। उनके प्रशंसकों को तो खासी पसंद आई होगी फिल्‍म।
फिल्म देखूंगा या नही ये तो पता नई, पर फिलहाल तो इसके टाईटल सॉंग पर फ़िदा हो गया हूं। क्या लिखा और गाया है। शानदार!
लगता है कि चाँद के साथ साथ इस फ़िल्म के दर्शक भी कही खो गये है
agar film ko darshak nahi miley to shartiyaa ye picture hamarey taste ki hogi...ab dekhni padegii...shukriyaa aashish ji

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