आशीष महर्षि सतपुड़ा से लेकर रणथंभौर के जंगलों से बुरी खबर आ रही है। आखिर जिस बात का डर था, वही हुआ। इतिहास में पहली बार मानसून में भी बाघों के घरों में इंसान टूरिस्ट के रुप में दखल देंगे। ये सब सिर्फ ज्यादा से ज्यादा पैसे कमाने के लिए सरकारें कर रही हैं। मप्र से लेकर राजस्थान तक की भाजपा सरकार जंगलों से ज्यादा से ज्यादा कमाई करना चाहती है। इन्हें न तो जंगलों की चिंता है और न ही बाघ की। खबर है कि रणथंभौर के नेशनल पार्क को अब साल भर के लिए खोल दिया जाएगा। इसी तरह सतपुड़ा के जंगलों में स्थित मड़ई में मानसून में भी बफर जोन में टूरिस्ट जा सकेंगे। जब राजस्थान के ही सरिस्का से बाघों के पूरी तरह गायब होने की खबर आई थी तो तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सरिस्का पहुंच गए थे। लेकिन क्या आपको याद है कि देश के वजीरेआजम मोदी या राजस्थान की मुखिया वसुंधरा या फिर मप्र के सीएम शिवराज ने कभी भी बाघों के लिए दो शब्द भी बोला हो? लेकिन उनकी सरकारें लगातार एक के बाद एक ऐसे फैसले करती जा रही हैं, जिससे बाघों के अस्तिव के सामने खतरा मंडरा रहा है। चूंकि सरकारें आंकड़ों की बाजीगरी में उ...
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खूब लिखते हो गुरु, लगे रहो
1999 में हम आठ दस दोस्त, बनारस मे एक मित्र के यहां विवाह के सिलसिले मे आठ दस दिन रहे। मजा आ गया था। सुबह से उठ कर गंगा स्नान और फ़िर सारा दिन पैदल ही शहर भटकना। शाम में शिव जी के प्रसाद से गला तर करना और फ़िर बनारसी पान मे भी प्रसाद मिलाकर लेना और फ़िर घर आकर ठूंस ठूंस के खाना।
वहां के हाथरिक्शे की सवारी जिस पे दो लोग मुश्किल से बैठें उसमें पांच लोग हम जाते थे कई बार।
लोहटिया से लेकर नाटी इमली, गदौलिया, लंका।
सब याद दिला दिया आपने।
अल्टीमेट शहर!!
अभी कुछ दिन पहले टीवी चैनल 'ईटीवी उर्दू' पर बनारस के बेनिया बाग में सम्पन्न एक मुशाइरा के मुख्य अंश देखे थे. एक शायरा ने पढा :
कोइ बताये इस ख्वाब की ताबीर है क्या
क्यों मुझे ख्वाब में आते हैं बनारस वाले ?
बाद में जब शायर डा. राहत इन्दोरी की बारी आई तो उन्होने इसी ज़मीन पर पूरी गज़ल ही सुना दी:
अपना किर्दार बनाने में जुटे रहते हैं
यूं तो साडी भी बना ते है बनारस वाले.
बाग की सैर तो बहाना है
तितलियां देखने जाते हैं बनारस वाले
दिन में कहते हैं सुधर जाओ मियां
रात में आके पिलाते हैं बनारस वाले
आसमां नाचता है और ज़मीं झूमती है
ऐसी शहनाई बजाते हैं बनारस वाले.
लेख अच्छा है. लिखते रहिये. शुभकामनायें.
http://bhaarateeyam.blogspot.com
जब तक बनारस मी रहा 'घर की मुर्गी' ..... वाली स्थिति रही .......अब जब भी बनारस का ज़िक्र आता है या कही देखने सुनने को मिलता है होम सिकनेस से जकड जाता हूँ.
छोटी सी ज़िंदगी का अनुभव यही कहता है की जीवन के हर आयाम से बनारस जैसा शहर और कोई नही हो सकता.
साधुवाद
लिखते रहिये
मुझे तो अस्सी घाट पर घूमना याद आ गया और अपने BHU के दिन
पर आशीष आपने कही भी BHU की चर्चा नही की
शायद करनी चाहिए
खैर बहुत अच्छा लगा