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अरे मुंबई तूने यह क्‍या कर डाला

मैं आज शर्मिंदा हूं। और इस शर्मिंदगी की वजह उस शहर के लोग हैं जिस शहर को मैं अपना दूसरा प्‍यार मानता हूं लेकिन नए वर्ष की शुरुआत पर मुंबई में जो दो महिलाओं के साथ हुआ है, उसके बाद मुझे एक बार सोचना पड़ेगा कि क्‍या वाकई मुंबई मेरा दूसरा प्‍यार है या नहीं। महिलाओं के लिए सुरक्षित समझे जाने वाले इस शहर में नए साल के पहले ही दिन करीब 70 से 80 पुरूषों ने दो युवतियों को घेरकर उनके कपड़े फाड़कर वह सब कुछ किया जो कि हमारे जैसे हर उस शख्‍स के लिए शर्म से डूब जाने की बात है जो कि सभ्‍य समाज में रहने का दावा करता है। मुंबई के अति व्यस्त जुहू इलाके में 70 से 80 पुरूषों ने इन महिलाओं के साथ छेड़छाड़ की और उनका शारीरिक उत्पीड़न किया। करीब 15 मिनटों तक चली यह शर्मनाक हरकत चलती रही ।खबरों के अनुसार एक जनवरी को सुबह के पौने दो बजे महिलाएं अपने दो पुरूष मित्रों के साथ जे.डब्ल्यू. मैरियट होटल से जूहू बीच की ओर सैर करने आई थीं, तभी लगभग 70 से 80 लोगों की भीड़ ने उन्हें छेड़ना शुरू कर दिया।

यह फोटो हिंदुस्‍तान टाइम्‍स के कैमरामेन ने ली है

Comments

भाई शहर सुरक्षित हो या असुरक्षित....रात में पौने दो बजे तो किसी के भी घूमने के लिए ठीक नहीं है। इन महिलाओं के साथ जो अभद्रता हुई वह शर्मनाक है और छेड़ने वालों को खोजकर कानूनी कारईवाई होनी चाहिए। लेकिन इन महिलाओं और इनके पुरुष मित्रों को भी यह सोचना चाहिए था कि यह किसी भी देश और शहर में घूमने का समय नहीं है। नव वर्ष की मस्‍ती में आजकल होता क्‍या है दारु और सेक्‍स।
bhai mai to ispar yahi kahunga ki in hinduvadi sangathan ke log ab kahan mar gaye....ab inhe mahilaon aur sanskriti ki yaad nahi ayi...aur bade-bade daave karne walee sarkar kya behosh ho gayi thi us waqt.
घटना शर्मनाक है। इस प्रकार की घटनाएं महानगरो में पनप रही अपसंस्‍कृति के कारण हैं। सावाधन रहना होगा। साथ ही कहूंगा- लापरवाही आपकी गाली चोरों को? ... क्‍यों?
घटना शर्मनाक है। इस प्रकार की घटनाएं महानगरो में पनप रही अपसंस्‍कृति के कारण हैं। सावाधन रहना होगा। साथ ही कहूंगा- लापरवाही आपकी गाली चोरों को? ... क्‍यों?
क्या कहा जाए इस पर!!

यदि अपने आप को इस घटना में रखूं तो सोचता हूं कि क्या मै रात को दो बजे अपनी किसी महिला मित्र या घर की ही महिला के साथ इकत्तीस दिसंबर की रात ऐसे माहौल मे सड़क पर घूमने निकलूंगा? अगर निकलता हूं तो मेरी गलती पहले है, बदसलूकी करने वालों की तो गलती खैर है ही।

दूसरी तरफ इस घटना के बारे मे पढ़कर या सुनकर यह भी लगता है कि क्या हमारे शहरों में कानून या प्रशासन नाम की कोई चीज या उसका भय ही नही है ऐसे लोगों में जो ऐसी बदसलूकी करने के मौके तलाशते रहते हैं। क्या हम अपने ही शहर में बेखौफ हो कर नही घूम सकते? क्या महिलाएं नए साल का जश्न हम जैसे ही घूमते हुए नही मना सकती?

दोनो ही नज़रिए महत्वपूर्ण हैं!!
खामियां दोनो तरफ हैं। पर प्रशासन का दायित्व है कि वह नागरिकों को बेखौफ़ जीने का माहौल दे।

इसके अलावा शर्म हमें, हमारे समाज को भी आनी चाहिए।
हम क्या बना रहे हैं अपने आप को या समाज को, जहां नारी अकेले दिखी वह सिर्फ़ भोग की वस्तु हो जाती है। क्यों है आखिर ऐसी मानसिकता। इसके लिए तो प्रशासन जिम्मेदार नही।

एक नज़र से देखें तो अनिल पाण्डेय जी की बात से भी सहमत। आमची मुंबई तो शिवसेना की मुंबई है, जहां सरकार से ज्यादा शिवसेना का राज चलता है। क्या शिवसेना के राज में ऐसा अधर्म ही होगा। या उनकी नज़र में यह अधर्म ना होकर "युवावस्था का धर्म" ही है?
बड़ी शर्मनाक घटना है इसकी जितनी निंदा की जावे कम है .पश्चात्य सभ्यता की खाल पहिनने वालो को इस तरह का ख़ामियाज़ा तो भुगतने पड़ेगे .
मेरी अमूमन समझ रही है कि भीड मे सुरक्षा होती है, पर आसम और अब मुम्बई की इस घट्ना के बाद से ये भरोसा भी खत्म हो रहा है. अब हिन्दुस्तानी समाज एक सामूहिक उन्माद और समूहिक रूप से अपराधी प्रवरिती क होता जा रहा है.
अगर रात के दो बज़े, 70-80 पुरुश सड्क पर घूम कर नये साल के उन्माद मे थे, तो सिर्फ महिलओ को भी ये हक है कि वो भी सडक पर निकल सके, बिना भय्भीत हुये. अगर किसी को बन्द ही होना चहिये तो इन राक्षसो को बन्द करके कही पाताल मे धेकेल्ना चहिये.
Unknown said…
वाह रे भारतीय समाज ! हमें कितना गर्व है ना अपने समाज पर , अपनी परम्पराओं पर । जहाँ नारी पूजी जाती हैं आदि आदि । फिर अपने भारतीय परिधान पर । कोई स्त्रियों के वस्त्रों पर उंगली उठाता है कोई रात के उस समय पर जब वे बाहर निकली । कोई कहता है माल नहीं स्भालकर रखते तो चोरों को क्यों दोष देते हो । कोई कहता है पश्चात्य सभ्यता की खाल पहिनने वालो को इस तरह का ख़ामियाज़ा तो भुगतने पड़ेगे . कोई कहता है किसी भी एक को पूरा दोष नही दे सकते.वो लड़कियां जो अधनंगी सी इन स्थानों पर इस तरह जाती हैं ,
सच तो यह है कि हमसे बड़े पाखंडी संसार में कहीं नहीं पाए जाते । स्त्रियों को पूजते हैं और फिर जब मन में आए उसे मूर्ति की तरह तोड़ देते हैं फिर खंडित मूर्ति की तरह उसे फेंक देते हैं ।
मुझे आश्चर्य है कि अब तक ऐसे सोच वालों ने ऐसे कानून क्यों न बनवा डाले कि अमुक वस्त्र पहनने या न पहनने वाली स्त्रियों लड़कियों का बलात्कार करना मैन्डेटरी है । वैसे शायद वे यह नहीं जानते कि जो वस्त्र हम बड़े गर्व से हमारी संस्कृति का हिस्सा मान पहनते हैं, उसमें जो पेट पीठ दिखता है वह बहुत से समाजों में नग्नता ही माना जाता है । क्यों न हमारे साथ भी वही किया जाए जो इन स्त्रियों के साथ किया गया ?
घुघूती बासूती
Unknown said…
वाह रे भारतीय समाज ! हमें कितना गर्व है ना अपने समाज पर , अपनी परम्पराओं पर । जहाँ नारी पूजी जाती हैं आदि आदि । फिर अपने भारतीय परिधान पर । कोई स्त्रियों के वस्त्रों पर उंगली उठाता है कोई रात के उस समय पर जब वे बाहर निकली । कोई कहता है माल नहीं स्भालकर रखते तो चोरों को क्यों दोष देते हो । कोई कहता है पश्चात्य सभ्यता की खाल पहिनने वालो को इस तरह का ख़ामियाज़ा तो भुगतने पड़ेगे . कोई कहता है किसी भी एक को पूरा दोष नही दे सकते.वो लड़कियां जो अधनंगी सी इन स्थानों पर इस तरह जाती हैं ,
सच तो यह है कि हमसे बड़े पाखंडी संसार में कहीं नहीं पाए जाते । स्त्रियों को पूजते हैं और फिर जब मन में आए उसे मूर्ति की तरह तोड़ देते हैं फिर खंडित मूर्ति की तरह उसे फेंक देते हैं ।
मुझे आश्चर्य है कि अब तक ऐसे सोच वालों ने ऐसे कानून क्यों न बनवा डाले कि अमुक वस्त्र पहनने या न पहनने वाली स्त्रियों लड़कियों का बलात्कार करना मैन्डेटरी है । वैसे शायद वे यह नहीं जानते कि जो वस्त्र हम बड़े गर्व से हमारी संस्कृति का हिस्सा मान पहनते हैं, उसमें जो पेट पीठ दिखता है वह बहुत से समाजों में नग्नता ही माना जाता है । क्यों न हमारे साथ भी वही किया जाए जो इन स्त्रियों के साथ किया गया ?
घुघूती बासूती

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