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हम लड़ेंगे साथी, उदास मौसम के लिए--पाश की एक और कविता

हम लड़ेंगे साथी, उदास मौसम के लिए
हम लड़ेंगे साथी, गुलाम इच्‍छाओं के लिए
हम चुनेंगे साथी, जिंदगी के टुकड़े
हथौड़ा अब भी चलता है, उदास निहाई पर
हल अब भी चलता हैं चीखती धरती पर
य‍ह काम हमारा नहीं बनता है, प्रश्‍न नाचता है
प्रश्‍न के कंधों पर चढ़कर
हम लड़ेंगे साथी

कत्‍ल हुए जज्‍बों की कसम खाकर
बुझी हुई नजरों की कसम खाकर
हाथों पर पड़े घटटों की कसम खाकर
हम लड़ेंगे साथी
हम लड़ेंगे तब तक
जब तक वीरू बकरिहा
बकरियों का मूत पीता है
खिले हुए सरसों के फूल को
जब तक बोने वाले खुद नहीं सूंघते
कि सूजी आंखों वाली
गांव की अध्‍यापिका का पति जब तक
युद्व से लौट नहीं आता
जब तक पुलिस के सिपाही
अपने भाईयों का गला घोटने को मजबूर हैं
कि दफतरों के बाबू
जब तक लिखते हैं लहू से अक्षर
हम लड़ेंगे जब तक
दुनिया में लड़ने की जरुरत बाकी है

जब तक बंदूक न हुई, तक तक तलवार होगी
जब तलवार न हुई लड़ने की लगन होगी
लड़ने का ढंग न हुआ, लड़ने की जरूरत होगी
और हम लड़ेंगे साथी
हम लड़ेंगे
कि लड़े बगैर कुछ नहीं मिलता
हम लड़ेंगे
कि अब तक लड़े क्‍यों नहीं
हम लड़ेंगे
अपनी सजा कबूलने के लिए
लड़ते हुए जो मर गए
उनकी याद जिंदा रखने के लिए
हम लड़ेंगे

पाश

Comments

Keerti Vaidya said…
kai baar padha apko..but kabhi comment nahi likha

apki yeh kavita bhut achi hai
पाश, आप के आह्वान में मैं भी शामिल हूं। खूबसूरत दुनिया बनाने के लिए अगर लड़ना भी पड़े तो क्या बुरा है।

आशीष, एक बेहतरीन परोसने कविता के लिए आपको भी धन्यवाद!
सुमित सिंह
bharat bhushan said…
complete paash poetry is at my blog at http://paash.wordpress.com

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