अमित ने सोचा था कि उसके जाने के बाद उसकी यादें भूली बिसरी यादों की तरह किसी कोने में दम तोड़ देगी। उसकी यादें भी उस नई नवेली दुल्हन की पहली सुबह की उसके माथे की बिदिंया की तरह होगी, जो कि बेतरकीब ढंग से माथे पर फिसलती रहती है। और वह काफी हद तक सही था। वो उसे लगातार भूलता जा रहा था, लेकिन दिन न जाने बेमौसम बारिश की तरह उसकी यादें उसे सताती लगती है और वो भीगता रहता है। शायद भीगना चाहता भी है । आज उसे लग रहा था कि उसे उसकी याद नहीं आ रही है। क्योंकि यादें तो उनकी आती हैं जिन्हें हम भुला देते हैं और उसे तो उसने कभी नहीं भुलाया था। आज वह बस यही सोच रहा था कि जब भी वो उससे पहली बार मिलेगा तो उसकी मांग में सुर्ख लाल सिंदूर की हल्की लकीर होगी जो कि उसे बार बार इस बात का अहसास कराएगी कि वो अब शादीशुदा है। किसी की बहू तो किसी की पत्नी है। ऐसे में उससे मिलना सही होगा। शायद नहीं। यह सोचते सोचते न जाने कब अमित की आंख लग गई। पता ही नहीं चला। सुबह जब नींद टूटी तो घड़ी सुबह के नौ बजने का इशारा कर रही थी। वो आज फिर ऑफिस जाने के लिए लेट हो गया। उसे याद है कि जब से वो उसे छोडकर इस शहर से गई है तब से वो कभी भी समय पर ऑफिस नहीं पहुंचा। उसकी सेहत भी दिनों दिन गिरती जा रही है। आंखों के आसपास काले धब्बे और गहरा रहे हैं।
ऑफिस पहुंचने के बाद सीधे वो अपने केबिन में चला जाता है और अपना कम्प्यूटर ऑन कर कुछ लिखने बैठ जाता है ।
प्रिय कामिनी
कई दिनों की उधेड़बुन के बाद तुम्हें यह पत्र लिखने की हिम्मत कर पा रहा हूं। मुझे नहीं पता कि यह पत्र तुम्हें लिखना चाहिए या नहीं। लेकिन बस लिख रहा हूं। तुम्हारी जगह यदि मेरा और कोई दोस्त होता तो शायद यह मैं नहीं लिखता लेकिन तुम्हें यह लिख रहा हूं। कई दिन से सोच रहा था कि तुमसे फोन पर बात की जाए लेकिन यह सोचकर बात नहीं की कि तुम मुझसे शायद बात नहीं करो। यह तुम्हारा अधिकार है कि तुम किससे बात करों और किससे नहीं। लेकिन तुम्हारे साथ बिताते गए कई पल अब मेरे लिए केवल एक सुनहरी याद हैं जो कि अक्सर मुझे इस बात का अहसास कराते हैं कि तुम जितने भी दिन मेरे साथ रही, एक अच्छी दोस्त बनकर रही। बस स्टॉप से लेकर हर उस गली व सड़क पर तुम्हारा इंतजार करता था, जहां से तुम गुजरती थी। आज भी करता हूं। वाकई बड़े खूबसूरत दिन थे वह। लेकिन पुराने दिन याद ही आते हैं और आंखों को नम कर देते हैं। मुझे आज तक इस बात का पता नहीं चला कि आखिर यहां से जाने के बाद ऐसा क्या हुआ कि तुमने मुझसे बात करना ही छोड़ दिया। वो शहर तो ऐसा नहीं है। वहां की आबोहवा काफी अच्छी है। मैं सोच रहा हूं कि जिंदगी के किसी मोड़ पर जब हम टकराए तो क्या हम नजर मिला पाएंगे। आखिर कोई तो बात होगी कि तुमने मुझसे बात करना छोड़ दिया। यदि तुम्हें लगता है कि इस लेटर से तुम्हें तकलीफ हुई तो जवाब मत देना। हां तुम्हारा सिर दर्द भी कैसा है। अपनी सेहत का ध्यान रखना।
अमित
इतना लिखने बाद अमित की आंखे डबडबा जाती है और वो बाथरुम की ओर रुख कर लेता है।
ऑफिस पहुंचने के बाद सीधे वो अपने केबिन में चला जाता है और अपना कम्प्यूटर ऑन कर कुछ लिखने बैठ जाता है ।
प्रिय कामिनी
कई दिनों की उधेड़बुन के बाद तुम्हें यह पत्र लिखने की हिम्मत कर पा रहा हूं। मुझे नहीं पता कि यह पत्र तुम्हें लिखना चाहिए या नहीं। लेकिन बस लिख रहा हूं। तुम्हारी जगह यदि मेरा और कोई दोस्त होता तो शायद यह मैं नहीं लिखता लेकिन तुम्हें यह लिख रहा हूं। कई दिन से सोच रहा था कि तुमसे फोन पर बात की जाए लेकिन यह सोचकर बात नहीं की कि तुम मुझसे शायद बात नहीं करो। यह तुम्हारा अधिकार है कि तुम किससे बात करों और किससे नहीं। लेकिन तुम्हारे साथ बिताते गए कई पल अब मेरे लिए केवल एक सुनहरी याद हैं जो कि अक्सर मुझे इस बात का अहसास कराते हैं कि तुम जितने भी दिन मेरे साथ रही, एक अच्छी दोस्त बनकर रही। बस स्टॉप से लेकर हर उस गली व सड़क पर तुम्हारा इंतजार करता था, जहां से तुम गुजरती थी। आज भी करता हूं। वाकई बड़े खूबसूरत दिन थे वह। लेकिन पुराने दिन याद ही आते हैं और आंखों को नम कर देते हैं। मुझे आज तक इस बात का पता नहीं चला कि आखिर यहां से जाने के बाद ऐसा क्या हुआ कि तुमने मुझसे बात करना ही छोड़ दिया। वो शहर तो ऐसा नहीं है। वहां की आबोहवा काफी अच्छी है। मैं सोच रहा हूं कि जिंदगी के किसी मोड़ पर जब हम टकराए तो क्या हम नजर मिला पाएंगे। आखिर कोई तो बात होगी कि तुमने मुझसे बात करना छोड़ दिया। यदि तुम्हें लगता है कि इस लेटर से तुम्हें तकलीफ हुई तो जवाब मत देना। हां तुम्हारा सिर दर्द भी कैसा है। अपनी सेहत का ध्यान रखना।
अमित
इतना लिखने बाद अमित की आंखे डबडबा जाती है और वो बाथरुम की ओर रुख कर लेता है।
Comments
kahaani achchhi thi..
ye amit hara jagah hai.. magar kahin chhupa hua.. isa bhid me kahin gum sa..
बॉस, ये दिखते शब्द सिर्फ़ शब्द नही दिख रहे मुझे, भाव दिल से निकले हैं तब ही यह शब्द बने हैं।
वैसे आप मुझे जानते नहीं पर मेरा नाम मयंक सक्सेना है
माखनलाल से ही हूँ आपका जूनियर एम् ऐ बी जे कर रहा हू
लखनऊ का बाशिंदा हूँ और बोल .... का नियमित पाठक
वैसे आपने आज ही भड़ास पर मुझे पढा अच्छा लगा कि जिसे मैं पढता रहा वो मुझे पढ़ रहा है