कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं जो हमें सबसे प्रिय होते हैं। उन रिश्तों के आगे और पीछे हमें कुछ भी नहीं सूझता है और खास तौर पर ये रिश्तों उस दौर में बनते हैं जब आप या तो स्कूल में होते हैं या कॉलेज में। यानि उस उम्र में जब आप धीरे धीरे दुनिया को समझने लगते हैं। ऐसा सबके साथ होता है। लेकिन एक वक्त ऐसा भी आता है कि आप अपना साया आपका साथ छोड़ने लगता है, दूसरों से क्या गिला की जाए। कॉलेज के शुरुआती दौर में की वह उसकी तरफ खींचा चला जा रहा था। कुछ था उस लड़की में। शायद वह उससे प्यार करने लगा था। शायद इसलिए क्योंकि वह एकतरफा प्यार था। और फिल्मों की तरह यहां भी एक तरफा प्यार सफल हो नहीं सकता। लेकिन कई सालों की दोस्ती में उनके बीच एक ऐसा संबंध बन गया था कि उसे विश्वास था कि वह उसे कभी छोड़कर नहीं जाएगा। एक दोस्त के रुप में वह हमेशा उसके साथ रहेगी। लेकिन नहीं ऐसा नहीं हुआ। मुंबई में एक साल साथ रहने के बाद वह चली गई। स्टेशन पर दोनों रोए भी लेकिन वहां जाने के बाद न जाने ऐसा क्या हुआ कि वह उससे बात ही करना छोड़ दी। आखिर ऐसा क्यूं किया उसने। आज भी वह बस एक ही प्रश्न उससे करना चाहता है। लेकिन वह तैयार नहीं है बात करने के लिए। ऐसे में बस गुलजार साहब की वह लाइनें याद आती हैं कि
हाथ छूटे भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते
वक़्त की शाख़ से लम्हें नहीं तोड़ा करते
जिस की आवाज़ में सिलवट हो निगाहों में शिकन
ऐसी तस्वीर के टुकड़े नहीं जोड़ा करते
शहद जीने का मिला करता है थोड़ा थोड़ा
जाने वालों के लिये दिल नहीं थोड़ा करते
तूने आवाज़ नहीं दी कभी मुड़कर वरना
हम कई सदियाँ तुझे घूम के देखा करते
लग के साहिल से जो बहता है उसे बहने दो
ऐसी दरिया का कभी रुख़ नहीं मोड़ा करते
लेकिन उसे कोई फर्क नहीं पड़ता है। वह वहां बहुत खुश है लेकिन जिसको छोड़कर वह गई थी उसका क्या। वह आज भी मुंबई की हवाओं में उसे महसूस कर सकता है। वह आज भी उसे यहां की गलियों में, सड़कों पर खोजता है लेकिन वह यहां नहीं है। वह हर बार उस मोड़ पर जा जाकर उसका इंतजार करता है जिस मोड़ पर वह उसे छोड़कर गई थी। कितने मौसम बीत गए, और बीत गईं कई सदिया लेकिन वह क्या उसका साया भी नहीं आया। फिर गुलजार साहब याद आ रहे हैं।
क़दम उसी मोड़ पर जमे हैं
नज़र समेटे हुए खड़ा हूँ
जुनूँ ये मजबूर कर रहा है पलट के देखूँ
ख़ुदी ये कहती है मोड़ मुड़ जा
अगरचे एहसास कह रहा है
खुले दरीचे के पीछे दो आँखें झाँकती हैं
अभी मेरे इंतज़ार में वो भी जागती है
कहीं तो उस के गोशा-ए-दिल में दर्द होगा
उसे ये ज़िद है कि मैं पुकारूँ
मुझे तक़ाज़ा है वो बुला ले
क़दम उसी मोड़ पर जमे हैं
नज़र समेते हुए खड़ा हूँ
लेकिन उसे इन बातों से कोई फर्क्र नहीं पड़ता है। वह तो अपनी जिंदगी भरपूर जी रही है। गंगा में पानी रहे या नहीं रहे, हवाओं में वह सुहावना अहसास हो या नहीं, उसे कोई फर्क नहीं पड़ता है। फिर भी कोई है जो उसका इंतजार कर रहा है और विश्वास है कि वह वापस आएगी। और वह बस इतना ही कहना चाहती है कि मुझ से पहली सी मोहब्बत मेरी महबूब न माँग
हाथ छूटे भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते
वक़्त की शाख़ से लम्हें नहीं तोड़ा करते
जिस की आवाज़ में सिलवट हो निगाहों में शिकन
ऐसी तस्वीर के टुकड़े नहीं जोड़ा करते
शहद जीने का मिला करता है थोड़ा थोड़ा
जाने वालों के लिये दिल नहीं थोड़ा करते
तूने आवाज़ नहीं दी कभी मुड़कर वरना
हम कई सदियाँ तुझे घूम के देखा करते
लग के साहिल से जो बहता है उसे बहने दो
ऐसी दरिया का कभी रुख़ नहीं मोड़ा करते
लेकिन उसे कोई फर्क नहीं पड़ता है। वह वहां बहुत खुश है लेकिन जिसको छोड़कर वह गई थी उसका क्या। वह आज भी मुंबई की हवाओं में उसे महसूस कर सकता है। वह आज भी उसे यहां की गलियों में, सड़कों पर खोजता है लेकिन वह यहां नहीं है। वह हर बार उस मोड़ पर जा जाकर उसका इंतजार करता है जिस मोड़ पर वह उसे छोड़कर गई थी। कितने मौसम बीत गए, और बीत गईं कई सदिया लेकिन वह क्या उसका साया भी नहीं आया। फिर गुलजार साहब याद आ रहे हैं।
क़दम उसी मोड़ पर जमे हैं
नज़र समेटे हुए खड़ा हूँ
जुनूँ ये मजबूर कर रहा है पलट के देखूँ
ख़ुदी ये कहती है मोड़ मुड़ जा
अगरचे एहसास कह रहा है
खुले दरीचे के पीछे दो आँखें झाँकती हैं
अभी मेरे इंतज़ार में वो भी जागती है
कहीं तो उस के गोशा-ए-दिल में दर्द होगा
उसे ये ज़िद है कि मैं पुकारूँ
मुझे तक़ाज़ा है वो बुला ले
क़दम उसी मोड़ पर जमे हैं
नज़र समेते हुए खड़ा हूँ
लेकिन उसे इन बातों से कोई फर्क्र नहीं पड़ता है। वह तो अपनी जिंदगी भरपूर जी रही है। गंगा में पानी रहे या नहीं रहे, हवाओं में वह सुहावना अहसास हो या नहीं, उसे कोई फर्क नहीं पड़ता है। फिर भी कोई है जो उसका इंतजार कर रहा है और विश्वास है कि वह वापस आएगी। और वह बस इतना ही कहना चाहती है कि मुझ से पहली सी मोहब्बत मेरी महबूब न माँग
Comments
क्या हुआ जो किसी अपने को छोड़ कर चली गई वो। आज भी उसकी खुशबू घुली है हवा में आज भी बारिश की नन्ही बूंदो में उसकी छुअन है।
मेरे दोस्त खुदा ने बहुत सारी चीजें बनाई हैं रिश्तों की जानलेवा दरारों को भरने के लिए
आओ किसी अपने के दूर चले जाने के बाद
हम इन्हें ही अपना बना लें।
सुमित सिंह
मैं क्या बताऊ, मेरा कहीं और ध्यान है।
फिसले जो इस जगह तो लुढ़कते चले गए,
हमको पता नहीं था कि इतना ढलान है।
मैं क्या बताऊ, मेरा कहीं और ध्यान है।
फिसले जो इस जगह तो लुढ़कते चले गए,
हमको पता नहीं था कि इतना ढलान है।
मैं क्या बताऊं मेरा कहीं और ध्यान है।
घुघूती बासूती
आशीष
ऐ रहबर, मुझे रास्ते में छोड़ दे, मुझे आप अपनी तलाश है. मै तेरे साथ चलकर करूँगा क्या.
ab isi se samajh lo..