कल से हिंदी ब्लॉग पर मारामारी मची हुई है। जिसे देखो वही कमर के नीचे वार कर रहा है। सब मिलाकर नंगई चरम पर है। कई महीनों पहले कहीं यह कविता पढ़ी थी, शायद ऐसे माहौल में यह कविता हिंदी ब्लॉग के महारथियों को कोई दिशा दे पाए। और जनाब ब्लॉग के आगे भी जहां है। बस यह कविता गुनगुनाएं और खुदा से दुआ करें कि देश में, मोहल्ले में, यहां तक की अपनी भड़ास में भी हम किसी का दिल न दुखाएं।
परिवर्तन में ही है नींव
क्रांति की,
पर क्रांति अलसायी सी नहीं आती,
उसके प्रवाह में स्थापित मूल्यों के घरौंदे ढह जाते हैं,
उन्मूलन तो हो जाता है खंडहरों की परंपरा का
पर, यदि नव निर्माण न हो तो,
क्रांति का च्रकवात नूतनता की रेत
उछालता रह जाता है
परिवर्तन की उस मरीचिका में,
क्रांति को परिवर्तन के पड़ाव के लिए चाहिए
किसी युग पुरुष का समर्थन
और जन जन की कोटि कोटि
भुजाओं का पौरुष
परिवर्तन में ही है नींव
क्रांति की,
पर क्रांति अलसायी सी नहीं आती,
उसके प्रवाह में स्थापित मूल्यों के घरौंदे ढह जाते हैं,
उन्मूलन तो हो जाता है खंडहरों की परंपरा का
पर, यदि नव निर्माण न हो तो,
क्रांति का च्रकवात नूतनता की रेत
उछालता रह जाता है
परिवर्तन की उस मरीचिका में,
क्रांति को परिवर्तन के पड़ाव के लिए चाहिए
किसी युग पुरुष का समर्थन
और जन जन की कोटि कोटि
भुजाओं का पौरुष
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