देश के जाने माने पत्रकार पी साईनाथ को मैग्ससे पुरस्कार मिलना यह साबित करता है कि देश में आज भी अच्छे पत्रकारों की जरुरत है। वरना वैश्विककरण और बाजारु पत्रकारिता में अच्छी आवाज की कमी काफी खलती है। लेकिन साईनाथ जी को पुरस्कार मिलना एक सार्थक कदम है। देश में कई सालों बाद किसी पत्रकार को यह पुरस्कार मिला है।
साईनाथ जी से मेरे पहली मुलाकात उस वक्त हुई थी जब मैं जयपुर में रह कर अपनी पढ़ाई कर रहा था। पढ़ाई के अलावा मैं वहां के कई जनआंदोलन से भी जुड़ा था। पी साईनाथ्ा जी भी उसी दौरान जयपुर आए हुए थे। कई दिनों तक हम लोग साथ थे। उस दौरान काफी कुछ सीखने को मिला था उनसे।
मुझे याद है कि मै और मेरे एक दोस्त ने साईनाथ जी को राजधानी के युवा पत्रकारों से मिलाने के लिए प्रेस क्लब में एक बैठक करना चाह रहे थे। लेकिन इसे जयपुर का दुभाग्य ही कहेंगे कि वहां के पत्रकारों की आपसी राजनीति के कारण हमें प्रेस क्लब नहीं मिला। लेकिन हम सबने बैठक की। प्रेस क्लब के पास ही एक सेंट्रल पार्क है जहां हम लोग काफी देर तक देश विदेश के मुददों से लेकर पत्रकारिता के भविष्य तक पर बतियाते रहे। उस समय साईनाथ किसी समाचारपत्र में नहीं थे बल्कि अकाल और भूखमरी पर काम कर रहे थे। यह वही समय था जब मैं पत्रकारिता में घुसने वाला था। मुझे याद है कि मेरे लिए प्रेस का मतलब पावर, मनी और पालिटिक्स था। आप यकीन नहीं मानेगें कि उस समय तक मेरे लिए प्रेस का कार्ड काफी मायने रखता था लेकिन मैने साईनाथ जी से ही यह सीखा कि पहचान आपकी अपनी होती है ऐसे में यदि आपको कार्ड दिखाकर अपनी पहचान बतानी पड़े तो यह पहचान किस काम की। ऐसे ही कुछ कहना था मेरे मामा जी का, जो कि राजस्थान के एक अच्छे पत्रकारों में से एक थे। लेकिन अब वो हमारे बीच नहीं है। खैर बात हो रही थी साईनाथ जी से सीखने की तो मैं बस यही कहूंगा कि मेरे जैसे लोगों के वो किसी पाठशाला से कम नहीं है जहां बहुत कुछ सीखने को है। जयपुर में रहते हुए मैं मुंबई के हमारा महानगर के लिए काम किया लेकिन कभी भी उस प्रेस कार्ड का प्रयोग नहीं किया जिससे हमारी नहीं हमारे संस्थान की पहचान होती है।
Comments
journalism ki field me kadam rakhne wale har patrakaar ki ye mansha hoti hai ki wo ish tejaswi field me apni sampurantaa de..lekin durbhagya se kuchh log iska durupyog karne lagte hai..fin na we patrakaar rah pate hain na ek achche nagrik..un par dalali, chaplusi ya bewaraa (drinker) ka leble lag jata hai. aur aise me patrakarita shabd ek gali ban jata hai..mere khyal se kisi bhi patrakaar ko journalist banane se pahle ek achcha insan bananaa jyada zaruri hai, tabhi wo sainaath ji jaisa ban pata hai.
यार सही कहा है पूरे देश के प्रेस क्लबों में सिवाए राजनीति के कुछ नहीं होता। प्रेस् क्लब को मठाधीशों ने राजनीति और सस्ती शराब वाली बार और देर राततक पार्टी का अडडा बना दिया है। मुझे नहीं लगता कि देश में कही भी प्रेस क्लब के जरिए उदयीमान पत्रकारों को कोई शिक्षा दीक्षा की व्यवस्था की जाती है। आप उम्मीद कर सकते हैं जो प्रेस क्लब पी साईंनाथ जैसे पत्रकार के साथ इंटरेक्शन के लिए जगह उपलब्ध नहीं करा सकता वह किस काम का?
गलती से मैं भी उसी प्रेस क्लब का मैंबर हूं शायद उस वक्त नहीं रहा हूं जब की आप बात कर रहे हैं।
अपने दिल की बात बेबाक तरीके से रखने के लिए बधाई
राजीव जैन
mr.rajeevjain@gmail.com