Skip to main content

वाह रे बम्बई

आज मुम्बई की यात्रा में आपको ऐसे दो भिखारियों से मिलाता हूँ जो की लखपति हैं..क्या हुआ ? आप तो चोंक गएँ. जी चोंकिये मत..मुम्बई भी बड़ा अजीब शहर है. कौन क्या होता है और कब किस्मत बदल जाए कुछ भी नहीं कहा जा सकता है. वाकई मुम्बई मायानगरी ही है. मस्सू और सांभा जी दो ऐसे ही भिखारी हैं.जो कि रोजाना इतना कमाते हैं कि मुझे अपनी सेलेरी बताते हुए शर्म आ सकती है.

पिछले दिनों लोखंडवाला में जब मैं अपने एक खास दोस्त के साथ मटरगस्ती कर रहा था तो एक बड़ा अजीब सा नज़ारा देखने को मिला. पहले तो विश्वास नहीं हुआ लेकिन फिर याद आया कि इस बारें में बहुत दिन पहले टाइम्स आफ इंडिया में मैंने पढ़ा था. मेरे सामने मस्सू खड़ा था. मस्सू इस इलाके का एक भिखारी है. लेकिन वो कोई मामूली भिखारी नहीं है जनाब. बल्कि इस मायानगरी का लखपति भिखारी है. जिसपर पहले ही बहुत कुछ लिखा जा चुका है. मस्सू अपने काम में लगा हुआ था. गंदे कपडे पहने इस भिखारी मैंने पहली ही नज़र में पहचान लिया. मन किया.मन हुआ कि मस्सू से थोडी बातचीत की जाए. तो बस पहुँच गया मस्सू के पास. मस्सू ने कई मजेदार बात बताई. उसने बताया कि वो कई टीवी और अखबारों को जानता है, जब मैंने पूछा भइया तुम कैसे जानते हो पत्रकारों को? उसने कहाँ कि कई पत्रकार उसका इंटरव्यू ले चुके है. मस्सू की इस लिस्ट में अब मेरा नाम भी शमील हो चुका है.

जानिए मस्सू के बारे में और कुछ
मस्सू शाम से भीख मांगना शुरू देता है. उसका मुख्य निशाना लोखंडवाला के आसपास के बार, रेस्तरां और शॉपिंग मॉल में आने वे लोग होते है. उन्हें देखते ही मस्सू उनकी जेब से पैसे निकलवाने के लिए दयनीय आवाज में भीख मांगने लगता है. मस्सू की माने तो वो रोजाना एक हज़ार से अधिक रुपए कमा लेता है. वाह मस्सू महाराज. मस्सू से जब हमने पूछा कि वह रात को ही क्यों भीख मांगता तो मस्सू कहता है कि रात में ज्यादातर लोग खाना पीने, मस्ती और अच्छे मूड में आते हैं. जिसका फायदा उसे होता है. क्या दर्शन की बात की है मस्सू ने. आज़ादी से पहले का जनम है मस्सू का. सुनिए अब उसके पास क्या क्या है. अंधेरी में एक एलआईजी फ्लैट के अलावा मस्सू का अंधेरी ईस्ट में भी एक फ्लैट है। मुम्बई में करीब एक लाख भिखारी हैं.

एक और लखपति भिखारी
मुम्बई में ही मस्सू को टक्कर देता एक और लखपति भिखारी है और वो है सांभा जी काले. सांभा जी काले और उसका परिवार रोजाना का करीब एक हज़ार रूपये भीख मांगकर कमा लेता है, एक अनुमान के अनुसार काले की प्रति माह की आय चालीस हज़ार से कम नहीं है. काले ने बड़े पैमाने पर जमीन, घर और अन्य जगह भी निवेश किया हुआ है.

Comments

ऐसे भिखारी दुनिया के हर कोने मे मिलेगे.. रियद और जद्दा मे ऐसे ऐसे भिखारी है जो मरसडीज़ कार मे आते है भीख माँगने लेकिन कही दूर खड़ी करके...भीख माँगने का शौक पूरा करते हैं.
Udan Tashtari said…
रोचक जानकारी.

अभी कुछ दिन पहले चंड़ीगढ़ के एक भिखारी को भी इसी तरह टीवी पर दिखा रहे थे.
दुनिया में कोई भी काम ख़राब नही होता. काम को काम की तरह करना चाहिए... ऐसा हमारे बुजुर्ग कह गए हैं. भीख माँगना कोई आसन कम थोड़े न होता है. पुरा दिन सड़क पर खड़े खड़े.. चिल्लाते आवाज लगाते बीतता है. मुझे ऐसी कमरे में बैठ कर ब्लॉग लिखने से आर्थिक रूप से कुछ नही हासिल होता, लेकिन कर्म में रत ऐसे योगी को देखिये... अगर मेहनत करता है टू उसका पूरा पैसा वसूल. क्या बुरा है...

Popular posts from this blog

मै जरुर वापस आऊंगा

समझ में नहीं आ रहा कि शुरुआत क्‍हां से और कैसे करुं। लेकिन शुरुआत तो करनी होगी। मुंबई में दो साल हो गए हैं और अब इस श‍हर को छोड़कर जाना पड़ रहा है। यह मेरी सबसे बड़ी कमजोरी है कि मैं जहां भी रहता हूं उसके मोह में बंध जाता हूं। बनारस से राजस्‍थान आते भी ऐसा ही कुछ महसूस हुआ था। फिर जयपुर से भोपाल जाते हुए दिल को तकलीफ हुई थी। इसके बाद भोपाल से मुंबई आते हुए भोपाल और दोस्‍तों को छोड़ते हुए डर लग रहा था। और आज मुंबई छोड़ते हुए अच्‍छा नहीं लग रहा है। मैं बार बार लिखता रहा हूं कि मुंबई मेरा दूसरा प्‍यार है। और किसी भी प्‍यार को छोडते हुए विरह की अग्नि में जलना बड़ा कष्‍टदायक होता है। इस शहर ने मुझे बहुत कुछ दिया। इस शहर से मुझे एक अस्तिव मिला। कुछ वक्‍त उसके साथ गुजारने का मौका मिला, जिसके साथ मैने सोचा भी नहीं था। मुंबई पर कई लेख लिखते वक्‍त इस शहरों को पूरी तरह मैने जिया है। लेकिन अब छोड़कर जाना पड़ रहा है। बचपन से लेकर अब तक कई शहरों में जिंदगी बसर करने का मौका मिला। लेकिन बनारस और मुंबई ही दो ऐसे शहर हैं जो मेरे मिजाज से मेल खाते हैं। बाकी शहरों में थोड़ी सी बोरियत होती है लेकिन यहां ऐसा

मुंबई का कड़वा सच

मुंबई या‍नि मायानगरी। मुंबई का नाम लेते ही हमारे जेहन में एक उस शहर की तस्‍वीर सामने आती हैं जहां हर रोज लाखों लोग अपने सपनों के संग आते हैं और फिर जी जान से जुट जाते हैं उन सपनों को साकार करने के लिए। मुंबई जानी जाती है कि हमेशा एक जागते हुए शहर में। वो शहर जो कभी नहीं सोता है, मुंबई सिर्फ जगमगाता ही है। लेकिन मुंबई में ही एक और भी दुनिया है जो कि हमें नहीं दिखती है। जी हां मैं बात कर रहा हूं बोरिवली के आसपास के जंगलों में रहने वाले उन आदिवासियों की जो कि पिछले दिनों राष्‍ट्रीय खबर में छाए रहे अपनी गरीबी और तंगहाली को लेकर। आप सोच रहे होंगे कि कंक्रीट के जंगलों में असली जंगल और आदिवासी। दिमाग पर अधिक जोर लगाने का प्रयास करना बेकार है। मुंबई के बोरिवली जहां राजीव गांधी के नाम पर एक राष्ट्रीय पार्क है। इस पार्क में कुछ आदिवासियों के गांव हैं, जो कि सैकड़ो सालों से इन जंगलों में हैं। आज पर्याप्‍त कमाई नहीं हो पाने के कारण इनके बच्‍चे कुपो‍षित हैं, महिलाओं की स्थिति भी कोई खास नहीं है। पार्क में आने वाले जो अपना झूठा खाना फेंक देते हैं, बच्‍चे उन्‍हें खा कर गुजारा कर लेते हैं। आदिवासी आदम

बस में तुम्‍हारा इंतजार

हर रोज की तरह मुझे आज भी पकड़नी थी बेस्‍ट की बस। हर रोज की तरह मैंने किया आज भी तुम्‍हारा इंतजार अंधेरी के उसी बस स्‍टॉप पर जहां कभी हम साथ मिला करते थे अक्‍सर बसों को मैं बस इसलिए छोड़ देता था ताकि तुम्‍हारा साथ पा सकूं ऑफिस के रास्‍ते में कई बार हम साथ साथ गए थे ऑफिस लेकिन अब वो बाते हो गई हैं यादें आज भी मैं बेस्‍ट की बस में तुम्‍हारा इंतजार करता हूं और मुंबई की खाक छानता हूं अंतर बस इतना है अब बस में तन्‍हा हूं फिर भी तुम्‍हारा इंतजार करता हूं