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क्यों पानी पी पी कर चैनलों को गरिया रहे हो

जिसको देखो वही न्यूज़ चैनलों को पानी पी कर गरिया रहा है. यह कुछ ऐसा ही जैसा कि इस देश के नेताओं और यहाँ की राजनीति को लोग आए दिन कोसते रहते हैं. लेकिन भइया आपने किया क्या है. दुनिया में दो तरह के लोग होते हैं..एक जो कुछ नहीं करते हैं..ऐसे लोगों से गलती हो ही नहीं सकती है और दूसरे वो लोग होते हैं जो अपने अपने स्तर पर लड़ते हैं एक बेहतर समाज और देश के लिए.

मीडिया में बहुत बड़ी तादाद दूसरे किस्म के लोगों की है..कुछ लोगों पहले किस्म के भी हैं. लेकिन इसके बावजूद अधिक निराश होने की जरुरत नहीं है. किसी ने कहा है कि खून तो खून है..गिरेगा तो जम जाएगा, जुर्म तो जुर्म है..बढेगा तो मिट जाएगा..बस ऐसा ही कुछ मेरा मानना है. चैनलों की दुनिया में बड़ी तेजी से बदलाव आ रहा है. लेकिन जो बेहतर चैनल हैं, उन्हें आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है..क्यूंकि लोग उसे देखते नहीं हैं. और जो चैनल भूत प्रेत, जादू टोना, बन्दर बिल्ली, सेक्स और पता नहीं क्या क्या दिखाते हैं उनका बैंक बैलेंस बढता जा रहा है. और यह आय टीआरपी के माध्यम से बदती है. जिसकी टीआरपी सबसे अधिक उसे सबसे अधिक एड मिलते हैं. और टीआरपी यानी किस चैनल को सबसे अधिक लोग देखते हैं. लेकिन टीआरपी पर भी अब सवालिया निशान उठना शुरू हो गए हैं. सही भी है..एक अरब की आबादी वाले इस देश में करीब दस हज़ार टीआरपी के बक्से से कैसे पूरे देश की नब्ज़ मापी जा सकती है. लेकिन फिर भी निराश होने की जरुरत नहीं है..चीजे बड़ी तेजी से बदल रहीं हैं...

जब टीआरपी के आधार पर कहते हैं कि हम वही दिखाते हैं जो लोग देखना चाहते हैं..तो कुछ लोग कहते हैं कि बन्धू लोग तो ब्लू फिल्मे भी देखना चाहते है, क्या दिखाओगे ? लोग कहते हैं कि साहस दिखाते हुए अंधविश्वास का परदाफास करो, जनता उसे भी पसन्द करेगी. हाँ उसमें मेहनत ज्यादा है. लोग सही कह रहे हैं लेकिन हम यह इतनी जल्दी कैसे भूल जाते हैं कि जेसिका हत्या कांड हो या अन्य कई मामले, जिसमे सती, भूर्ण हत्या, नेताओं की पोल चैनलों ने ही खोली थी. यदि एक दो ग़लत न्यूज़ जाती है तो उससे कई गुना अधिक न्यूज़ से देश और समाज का भला ही होता है. हाँ यह भी सही है कि एक भी ग़लत न्यूज़ नहीं जानी चाहिए.

और अन्तिम बात..जो लोग मीडिया के भीतर नहीं हैं, वो शायद कभी भी यह नहीं समझ पाएंगे कि यहाँ कितने दवाब में काम होता हैं..और हाँ बाहर से किसी को भी पानी पी पी कर गरियाना सबसे सरल है.

Comments

बॉस बात तो सही है आपकी

पर कही आपने मुझे तो लपेटे में नहीं ले लिया।
http://shuruwat.blogspot.com/2007/10/170.html
ye to saab ap ko bhi pata nahi chal paya ki patrkarita hi kar rahe hain ya kuchh aur....

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