गुजरात में अगले महीने चुनाव है और इसी के साथ भगवा नेकर पहनकर कई सारे लोग बेनामी नाम से ब्लॉग की दुनिया में हंगामा बरपा रहे हैं. एक ऐसे ही बेनामी से मेरा भी पाला पड़ गया. मैं पूरा प्रयास करता हूँ कि जहाँ तक हो इन डरपोक और कायर लोगों से बचा जाए. सुनील ने मोदी और करण थापर को लेकर एक पोस्ट डाल दी और मैं उस पर अपनी राय, बस फिर क्या था. कूद पड़े एक साहेब भगवा नेकर पहन कर बेनामी नाम से. भाई साहब में इतना सा साहस नहीं कि अपने नाम से कुछ लिख सकें. और मुझे ही एक टुच्चे टाईप पत्रकार कह दिया. मन में था कि जवाब नहीं देना है लेकिन साथियों ने कहा कि ऐसे लोगों का जवाब देना जरूरी है. वरना ये लोग फिर बेनामी नाम से उल्टा सुलटा कहेंगे. सबसे पहले बेनामी वाले भाई साहब कि राय.... अपने चैनल के नंगेपन की बात नहीं करेंगे? गाँव के एक लड़के के अन्दर अमेरिकन वैज्ञानिक की आत्मा की कहानी....भूल गए?....चार साल की एक बच्ची के अन्दर कल्पना चावला की आत्मा...भूल गए?...उमा खुराना...भूल गए?....भूत-प्रेत की कहानियाँ...भूल गए?... सीएनएन आपका चैनल है!....आशीष का नाम नहीं सुना भाई हमने कभी...टीवी १८ के बोर्ड में हैं आप?...कौन सा...
Comments
खूब लिखते हो गुरु, लगे रहो
1999 में हम आठ दस दोस्त, बनारस मे एक मित्र के यहां विवाह के सिलसिले मे आठ दस दिन रहे। मजा आ गया था। सुबह से उठ कर गंगा स्नान और फ़िर सारा दिन पैदल ही शहर भटकना। शाम में शिव जी के प्रसाद से गला तर करना और फ़िर बनारसी पान मे भी प्रसाद मिलाकर लेना और फ़िर घर आकर ठूंस ठूंस के खाना।
वहां के हाथरिक्शे की सवारी जिस पे दो लोग मुश्किल से बैठें उसमें पांच लोग हम जाते थे कई बार।
लोहटिया से लेकर नाटी इमली, गदौलिया, लंका।
सब याद दिला दिया आपने।
अल्टीमेट शहर!!
अभी कुछ दिन पहले टीवी चैनल 'ईटीवी उर्दू' पर बनारस के बेनिया बाग में सम्पन्न एक मुशाइरा के मुख्य अंश देखे थे. एक शायरा ने पढा :
कोइ बताये इस ख्वाब की ताबीर है क्या
क्यों मुझे ख्वाब में आते हैं बनारस वाले ?
बाद में जब शायर डा. राहत इन्दोरी की बारी आई तो उन्होने इसी ज़मीन पर पूरी गज़ल ही सुना दी:
अपना किर्दार बनाने में जुटे रहते हैं
यूं तो साडी भी बना ते है बनारस वाले.
बाग की सैर तो बहाना है
तितलियां देखने जाते हैं बनारस वाले
दिन में कहते हैं सुधर जाओ मियां
रात में आके पिलाते हैं बनारस वाले
आसमां नाचता है और ज़मीं झूमती है
ऐसी शहनाई बजाते हैं बनारस वाले.
लेख अच्छा है. लिखते रहिये. शुभकामनायें.
http://bhaarateeyam.blogspot.com
जब तक बनारस मी रहा 'घर की मुर्गी' ..... वाली स्थिति रही .......अब जब भी बनारस का ज़िक्र आता है या कही देखने सुनने को मिलता है होम सिकनेस से जकड जाता हूँ.
छोटी सी ज़िंदगी का अनुभव यही कहता है की जीवन के हर आयाम से बनारस जैसा शहर और कोई नही हो सकता.
साधुवाद
लिखते रहिये
मुझे तो अस्सी घाट पर घूमना याद आ गया और अपने BHU के दिन
पर आशीष आपने कही भी BHU की चर्चा नही की
शायद करनी चाहिए
खैर बहुत अच्छा लगा