अब काले कौवे नहीं दिखते हैं साख पर
संसद में उनकी आवाजाही बढ़ गई है
खादी की टोपी से लेकर नेकर तक
कौवे कांव कांव कर रहे हैं संसद में
किसी के लिए राम जरुरी है
किसी के लिए जरुरी है गरीबों का हाथ
फिर भी कौवे कांव कांव कर रहे हैं
कोई कहता है कि वे गायब हो रहे हैं
तो कोई कहता है कि संसद निगल रही है उनको
गली से लेकर संसद के गलियारों तक में
कौवे कांव कांव कर रहे हैं
मुंबई, 18 जनवरी 2008
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