मेरे एक और दोस्त ने आखिरकार ब्लॉग की दुनिया में कदम रख ही दिया। कानपुर के बिंदकी नामक कस्बे के निवासी नमित से मेरी दोस्ती कालेज के जमाने की है। नमित फिलहाल छत्तीसगढ़ भास्कर में कार्यरत हैं। नमित और मैने एक साथ माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता संस्थान से मास्टर डिग्री हासिल की है। दोस्तों की मंडली में ददा के नाम से प्रसिद्व नमित के ब्लॉग का लिंक यहां है। आप सभी से निवदेन है ब्लॉग की इस दुनिया में उसका स्वागत करें।
मुंबई यानि मायानगरी। मुंबई का नाम लेते ही हमारे जेहन में एक उस शहर की तस्वीर सामने आती हैं जहां हर रोज लाखों लोग अपने सपनों के संग आते हैं और फिर जी जान से जुट जाते हैं उन सपनों को साकार करने के लिए। मुंबई जानी जाती है कि हमेशा एक जागते हुए शहर में। वो शहर जो कभी नहीं सोता है, मुंबई सिर्फ जगमगाता ही है। लेकिन मुंबई में ही एक और भी दुनिया है जो कि हमें नहीं दिखती है। जी हां मैं बात कर रहा हूं बोरिवली के आसपास के जंगलों में रहने वाले उन आदिवासियों की जो कि पिछले दिनों राष्ट्रीय खबर में छाए रहे अपनी गरीबी और तंगहाली को लेकर। आप सोच रहे होंगे कि कंक्रीट के जंगलों में असली जंगल और आदिवासी। दिमाग पर अधिक जोर लगाने का प्रयास करना बेकार है। मुंबई के बोरिवली जहां राजीव गांधी के नाम पर एक राष्ट्रीय पार्क है। इस पार्क में कुछ आदिवासियों के गांव हैं, जो कि सैकड़ो सालों से इन जंगलों में हैं। आज पर्याप्त कमाई नहीं हो पाने के कारण इनके बच्चे कुपोषित हैं, महिलाओं की स्थिति भी कोई खास नहीं है। पार्क में आने वाले जो अपना झूठा खाना फेंक देते हैं, बच्चे उन्हें खा कर गुजारा कर लेते हैं। आदिवासी आदम
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