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गुलाबी नगर का वो कॉफी हाउस

शहर के उस नामचीन कॉफी हाऊस में आज थोड़ी खामोशी फैली हुई थी। ठंड के दिनों में गरमा गरम कॉफी के साथ नई किताबों को खोजते कई जोड़े दिन में कम से कम एक बार तो उधर से गुजर ही जाते थे। लेकिन आज माहौल थोड़ा बदला बदला था। आज पूरे कॉफी हाऊस में एक केवल दो ही लोग थे। एक उस कॉफी हाऊस का मालिक अमित और दूसरा एक कस्‍टमर, जो कि सबसे कोने वाले सीट पर बैठ कर गरमा गरम कॉफी के साथ कोई किताब पढ़ रहा था। आज शाम कुछ अधिक ही ठंड़ी थी। लेकिन अंदर का माहौल पूरी तरह शांत और बड़ा सकून देने वाला था। गुलाबी नगर में आज से करीब बारह साल पहले यह कॉफी हाऊस खुला था। कॉफी हाऊस का मालिक अमित एक बड़े समाचार पत्र में स्‍थानीय संपादक है। दिन में एक बार अमित अपनी बेटी के संग जरुर अपने कॉफी हाऊस को देखने आ जाया करता है। बाकी समय कॉफी हाऊस का मैनेजर जॉन ही इसे संभालता है।

दूसरी ओर, आज न जाने क्‍यों अमित का मन अपने ऑफिस में नहीं लग रहा था और उसने कॉफी हाऊस की ओर ही जाना बेहतर समझा। ऑफिस से निकलते हुए आज कई सालों बाद वो पुरानी बातें याद आ रही थी कि अब उसके दिमाग में पहली बार इस कॉफी हाऊस को बनाने का प्‍लान दिमाग में आया था। गाड़ी बड़ी तेजी से कॉफी हाऊस जाने वाली सड़क पर दौड़ रही थी और अमित का दिमाग कई साल पहले जा रहा था। बात उस समय की है जब वो पहले बार एक चैनल में काम करता था और वहीं उसकी मुलाकात परुनिशा से हुई थी। मुलाकात पहले मोहब्‍बत में बदली और फिर मोहब्‍बत शादी में लेकिन शादी के बाद दोनों में गलतफहमिया बढ़ती गई और दूरियां भी। लेकिन अमित चाहकर भी उसे भूल नहीं पाया था। बस उसी के नाम पर उसने गुलाबी नगर में यह कॉफी हाउस खोला।

सड़क पर भीड़ बढ़ती जा रही थी और अचानक एक जोरदार धमाका। चारों ओर खून ही खून। अमित की गाड़ी का एक्‍सीडेंट हो चुका था। तमाशाबीन खड़े होकर उसके मरने का इंतजार कर रहे थे लेकिन भीड में एक नौजवान युवक निकलकर अमित को किसी तरह अस्‍पताल पहुंचा देता है। लेकिन किस्‍मत को कुछ और ही मंजूर था।

Comments

Anita kumar said…
अच्छी कहानी है पर अंत बहुत दुखी करने वाला है , ये परुनिशा नाम तुम्हारी पोस्ट में अक्सर दिख्ता है……।:)
अनिता जी मेरी हर कहानी में अमित और परुनिशा आपको मिलते रहेंगे
Anonymous said…
भाईजान मान गए तुमको, बस ऐसे ही कहानी लिखते रहो, कहां पत्रकारिता में पड़े हुए,

अनूप
बंधु इसे और विस्तार देने की गुंजाईश है, जल्दबाजी में समेटा जा रहा है ऐसा प्रतीत होता है।
संजीत बाबू, बात तो आपकी सही है लेकिन यदि आप बेटी का जन्‍मदिन पढ़ेंगे तो कहानी और समझ में आएगी, और यह कहानी अभी खत्‍म नहीं हुई बय मै जानबूझ कर ऐसा लिख रहा हूं कि यदि किसी कारण मैं नहीं रहूं तो कहानी अधूरी नहीं लगे, बस आप अपनी राय जरुर दें
मेरी पत्नी कह रही है। अमित वापस आएगा।
दिनेश जी बड़ों की बात माननी ही होगी, लेकिन आगे क्‍या होने वाला है यह तो मुझे भी नहीं पता
mamta said…
ये तो धारावाहिक कहानी हो गई है।

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