
मुंबई शहर ने कई हादसे देखें हैं इसीलिए इसे हादसों का शहर कहा जाता है। कभी यह शहर दंगों की आग में जलता है तो कभी बम विस्फोट से इस शहर के तानेबाने को बिगाड़ने का प्रयास किया जाता है। बरसात के दिनों में प्रकृति के कहर के रुप में यहां बाढ़ का प्रकोप देखने को मिलता है। लेकिन इन सब हादसों के बाद मुंबईकर यानि मुंबई के लोग मिलकर फिर से शहर को पहले जैसा शांति प्रिय और जिंदादिल बना देते हैं। जब बात मुंबईकर की होती है तो उसमें मुंबई के मराठी ही नहीं बल्कि दूर दराज से आए लोग भी शामिल हैं। मुंबईकर उप्र के दूर दराज गांव को कोई लड़का भी हो सकता है और दक्षिण भारत की कोई महिला भी। बशर्ते हो मुंबई में हो और मुंबई से प्यार करता हो। मुंबईकर का एक ही अर्थ है जिन्होंने मुंबई को अपना लिया है और मुंबई ने उन्हें, वही मुंबईकर हैं।
पिछले कुछ दिनों से एक बार फिर से यह शहर हादसे की चपेट में है। इस बार के हादसे के लिए जिम्मेदार करीब दो साल पहले बनी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के प्रमुख राज ठाकरे एंड पार्टी है। जिंदादिल शहर और केंद्र सरकार को सबसे अधिक टैक्स कर देने वाला शहर फिलहाल एक अजीब से तनाव से गुजर रहा है। लेकिन मुझे पूरी उम्मीद है कि इस शहर एक बार फिर पुरानी बातों को भूलकर अपने पुराने रंग में आ जाएगा।
मुंबई जहां एक ओर ठंड अपने सारे रिकार्ड खुद ही ध्वस्त कर रही है, वहीं दूसरी ओर महाराष्ट्र के कुछ राजनेता विचारों और मुद्वों को तिलांजलि देते हुए इतने नीचे स्तर पर आ गए हैं कि इस देश का भविष्य ही संकट में लगने लगता है। लेकिन चिंता उस समय अधिक बढ़ जाती है जब राज ठाकरे जैसे युवा नेता मुंबई को मराठी और गैर मराठियों के बीच बाटने की कोशिश करते हैं और कुछ हद तक वो उसमें सफल भी हो रहे हैं। लेकिन यदि इस पूरे मामले की गहराई में जाएं तो एक अजीब किंतु सच निकलकर सामने आता है । वो यह है कि राज ठाकरे एक महत्वकांक्षी राजनेता हैं और महाराष्ट्र में अपनी राजनैतिक जमीन को बढ़ाने के लिए मराठियों को लुभाने के लिए एक के बाद एक चाल रहे हैं। शहर को क्षेत्रवाद की आग में धकेलने वाले राज ठाकरे यह भूल रहे हैं कि मुंबई की अधिकांश जनता इस पूरे मामले के पीछे की राजनीति समझती है। लेकिन इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है मुंबई शहर में एक ऐसा तबका भी है जो मुंबई में उत्तर भारतीय की बढ़ती तादाद से डरता है। इस तबके को गुजरातियों, मारवाडियों और दक्षिण भारतीयों से डर नहीं लगता है। राज ठाकरे कहते हैं कि हमारी गुजरातियों, मारवाडियों और दक्षिण भारतीयों से कोई लड़ाई नहीं है क्योंकि वो मराठी बोलते हैं। ऐसे में राज ठाकरे से पूछना चाहिए जनाब यह गलत फहमी आपको कहां से होगी। इंसान कहीं भी हो, बोलता अपनी मातृ भाषा ही है।
यह हमारा दुर्भाग्य है कि जिस राज्य ने देश को बाबा साहब आंबेडकर के रुप में सविंधान निर्माता दिया है, उसी राज्य में उनके सविंधान की धज्जिया उड़ाई जा रही है । सविंधान के अनुच्छेद 25 के तहत भारत से सभी नागरिकों को यह अधिकार दिया गया है कि वो अपनी मर्जी से अपने धर्म, पंत व जाति के अनुसार धार्मिक पर्व और त्योहार मना सकते हैं । लेकिन राज ठाकरे को यह बात अच्छी नहीं लगती है । तभी तो राज ठाकरे कहते हैं कि उत्तर भारतीयों को मुंबई में रहने के लिए हमारी (मराठियों की) इजाजत लेनी होगी। यह वहीं राज ठाकरे हैं जो माइकल जैक्सन को बुलाकर मुंबई में नचवाते हैं लेकिन छठ पूजा पर अपनी नजर ढेड़ी करते हुए कहते हैं कि यह छठ पूजा का क्या नाटक यहां शुरु हो गया है । तरस आती है राज ठाकरे पर । राज ठाकरे शुरु से ही अति महत्वाकांक्षी रहे हैं। शिवसेना के संग पले बढ़े राज ठाकरे केवल शिवसेना को इस लिए छोड़ देते हैं क्योंकि उनकी जगह उनके चचेरे भाई और बाल ठाकरे के पुत्र को शिवसेना को प्रमुख बना दिया जाता है । राज ठाकरे के सामने अब खुद के अस्तिव का खतरा है । पिछले चुनावों में मुंह की खाने के बाद अब ठाकरे को लगता है कि यदि वो सिर्फ मराठी वोटों को अपने पक्ष में कर लें तो उनकी राजनैतिक छवि मजूबत हो सकती है। कल तक सुपर स्टार अमिताभ बच्चन के फैन रहे राज ठाकरे को अचानक यह क्या हो जाता है कि वो अपने ही स्टार पर हमले शुरु कर देते हैं। यह वही राज ठाकरे हैं जो कि एक जमाने पर अपनी टेबल पर अमिताभ और जया बच्चन की तस्वीर रखते थे। ठाकरे परिवार में यदि कोई अमिताभ के सबसे करीब था तो वो बाल ठाकरे के बाद राज ठाकरे ही थे । यहां तक की अपने बेटा का नाम भी वो अमिताभ बच्चन के नाम पर अमित रखे हुए हैं।
खैर यदि मुंबई के राजनैतिक समीकरण पर एक नजर दौड़ाएं तो यह साफ हो जाएगा कि आखिर क्यों उत्तर भारतीय पहले शिवसेना को और अब राज ठाकरे को डराते हैं और अन्य दलों को लुभाते हैं। मुंबई की सवा करोड़ की आबादी में उत्तर भारतीयों की तादाद करीब 30 फीसदी है। यानि तीस से चालीस लाख के बीच उत्तर प्रदेश और बिहार के लोग यहां रोजी रोटी की तलाश में आए हुए हैं। यदि इसमें बाकी राज्यों के लोगों की संख्या को जोड़ दें तो मुंबई में बाहरी राज्यों से आए लोगों का प्रतिशत बहुत बढ़ जाता है। मुंबई के एक वरिष्ठ पत्रकार से जब पूरे मामले पर बात हो रही थी कि तो उन्होंने बड़े सरल ढंग से पूरी गणित समझाई। इनका कहना है कि मुंबई की कुल आबादी में एक बड़ा हिस्सा उत्तर प्रदेश और बिहार से आने वाले लोगों का है। और इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि ये लोग न सिर्फ राजनैतिक रुप से मजबूत होते हैं बल्कि जहां भी जाते हैं, सत्ता के केंद्र में रहते हैं। यही कारण्ा है कि आज मुंबई की राजनीति में उत्तर भारतीय की भूमिका निर्णायक स्वरुप में होती है। बस यही बात पहले शिवसेना का और अब राज ठाकरे को खटकती है।
कल तक दूसरे राज्यों के निवासियों पर हमले करने वाली शिवसेना ने इस बार अपनी रणनीति में काफी बदलाव किया है। या कहें कि राज ठाकरे ने शिवसेना से इस मुद्वे को छीन लिया है। जिसके कारण अब शिवसेना न सिर्फ उत्तर भारतीयों को साथ लेकर चलने की बात कर रही है बल्कि मनोज छठ पूजा जैसे त्योहारों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराती है ।
समाजवादी पार्टी के नेता मुंबई में आकर डंडे बांटने की बात करते हैं और राज ठाकरे तलवार से डंडे का जवाब देने की बात कर रहें है। जिसके कारण माहौल काफी तनावपूर्ण हो गया है और निशाने पर वो गरीब, मजदूर तबके के लोग हैं जो अपना गांव शहर छोड़कर इस शहर में दो रोटी के जुगाड़ में आए हुए हैं।
देश की आर्थिक राजधानी में जहां एक ओर बाहरी निवेशकों को अधिक से अधिक लुभाने का प्रयास किया जाता है, वहीं दूसरी ओर अपने ही देश के नागरिकों के साथ सिर्फ इस लिए इस शहर में निशाना बनाया जा रहा है क्योंकि वो उत्तर भारतीय हैं। यह न सिर्फ इस देश का दुर्भाग्य है बल्कि हर उस नागरिक को सोचने पर विवश करता है कि आखिर कब तक हम क्षेत्रवाद, जातिवाद और धर्म के नाम पर खुद को बांटते रहेंगे ।
Comments
तो आप को एक बार भी ऎसा नही लगा की इस बात को भी सोचना चाहीये की उनको रोटी के लिये अपने घरबार छोडकर क्यो जाना पडता है? वास्तव ये है की उनको अपने राज्य मे रोटी नही मिलती| वहा अत्यंत निकम्मे लोग आजतक राज करते आये है | देश मे सबसे ज्यादा उपजाऊ जमिन है, गंगामैयाकी वजह से पानी की कमी नही है, बिहार मे खनिजसंपत्ती बडी मात्रा मै है लेकीन सब कुछ होते हुए भी नौकरी नही है | नौकरी के लिये मुंबई जाकर वहा के फुटपाथपर उन्हे रहना पडता है | आप ने इन नेताओं को तो जैसे क्लीन चीट दे दी है, आप की असली दुर्दशा का कारण वही लोग है, राज ठाकरे नही |
दुसरी बात आती है सद्भाव की, भैया लोगो के मन मे मराठी को कोई स्थान नही है | वो हमारी भाषा का सम्मान नही करते | मराठी सिखना कोई कठीण काम नही है बल्की करीब ३०-४०% शब्द हिंदी और मराठी मे समान है | मेरा खुद का अनुभव है की मराठी समझते हुए भी वो आपके मराठी प्रश्न का उत्तर नही देते |
तिसरी बात मुंबई की, मै दावे के साथ कहता हूं की आप इस बात से इन्कार नही कर सकते की मुंबई लोग समानेकी अपनी चरमसीमा पर पहोच चुकी है | वहा अब रहने के लिये जगह नही है, लोकल ट्रेन मे जगह नही है, पानी का प्रश्न बिकट है, पोल्युशन है, शहर की क्षमता खत्म हो चुकी है | ऎसेही बाहर से लोग आते रहे तो नागरी सुविधाओंका होगा क्या?
इन प्रश्नोंपर आप के विचार समझना चाहूंगा | क्या राज ठाकरे को अपने राज्य से प्यार नही होगा? वो कानपूर या पटना जाकर तो ऎसा नही कह रहे | मुंबई मे रहकर आझमगढ से आदमी लाने की भाषा करने वाला ये अबू आझमी होता कौन है | उसे आप अपना नेता मानते है, गजब!!! और शब्द के लिये क्षमा चाहूंगा लेकीन - लानत है|
अगर भविष्यमे कभी युपी बिहार सुधर गये तो उसका श्रेय राज ठाकरे को देना |
अमित