Skip to main content

ऊंटनी का दूध...और मेरा अनुभव

क्या आपने कभी ऊंटनी का दूध पीया है ? उम्मीद है जवाब होगा नही. खैर मैंने भी अपनी छोटी सी जिंदगी में एक ही बार ऊंटनी का दूध पीया और उसके बाद कभी पीने का साहस नहीं जुटा पाया. बात करीब आज से चार-पाँच साल पहले की है जब मैं जयपुर में रहा करता था. उसी दौरान जिले के एक शख्स की मेहरबानी से मैंने पहली बार ऊंटनी का दूध पीया था. गाँव के उस बुजुर्ग ने इतने प्यार से और इतनी दूर से यह दूध लाये थे कि मैं चाह कर पीने से मना नहीं कर पाया. खैर किसी तरह पी तो लिया लेकिन उसके बाद मैंने तय किया कि कभी भी ऊंटनी का दूध नहीं पियूँगा। आज एक ख़बर पड़ी की ऊंटनी का दूध काफी फायदेमंद होता तो अचानक उन दिनों की याद आ गई.

ख़बर यह है की ऊंटनी के दूध में कैल्शियम, विटामिन बी और सी बड़ी मात्रा में होते हैं और इसमें लौह तत्व गाय के दूध की अपेक्षा दस गुना होता है. इसके अलावा इसमें रोग प्रतिकारक तत्व होते हैं जो कैंसर, ऐचआईवी एड्स, अल्ज़ाइमर्स और हैपेटाइटिस सी जैसे रोगों से लड़ने की क्षमता पैदा करते हैं. इस दूध को लम्बे समय तक चलाने के लिए अति उच्च तापमान से गुज़ारना पड़ता है जबकि ऊंटनी का दूध इसे बर्दाश्त नहीं कर पाता. वहीं ऊंटनी का दूध, गाय या भैंस के दूध के मुक़ाबले कुछ ज़्यादा नमकीन होता है जिसे पीना सबके बस की बात नहीं है. कम से कम मेरे बस की तो बात नहीं है. यदि आप कभी राजस्थान आयें और ऊंटनी के दूध पीना चाहे तो मुझे जरूर बतायें.

Comments

Udan Tashtari said…
यह एक नई जानकारी है. हमने बिल्कुल उल्टा सुना था कि ऊंटनी का दूध इतना अधिक मीठा होता है कि दुहते ही उसमें कीड़े लग जाते हैं, इसलिये उसे दुहते हुये ही पीना पड़ता है.

हमारे पास सुनी कथा और आपके पास देखी कथा-आपकी ही बात सही है. हम अपनी जानकारी सुधारे लेते हैं.
वाह
क्‍या बात है
ऊँटनी का दूध पीना हो तो दुबई आइए , अब तो इस दूध की आइसक्रीम भी यहाँ के बाज़ार मे आ गई है.लेकिन सच है कि एक बार घर ले आओ तो दो ही दिन में खत्म करना पड़ता है.

Popular posts from this blog

मुंबई का कड़वा सच

मुंबई या‍नि मायानगरी। मुंबई का नाम लेते ही हमारे जेहन में एक उस शहर की तस्‍वीर सामने आती हैं जहां हर रोज लाखों लोग अपने सपनों के संग आते हैं और फिर जी जान से जुट जाते हैं उन सपनों को साकार करने के लिए। मुंबई जानी जाती है कि हमेशा एक जागते हुए शहर में। वो शहर जो कभी नहीं सोता है, मुंबई सिर्फ जगमगाता ही है। लेकिन मुंबई में ही एक और भी दुनिया है जो कि हमें नहीं दिखती है। जी हां मैं बात कर रहा हूं बोरिवली के आसपास के जंगलों में रहने वाले उन आदिवासियों की जो कि पिछले दिनों राष्‍ट्रीय खबर में छाए रहे अपनी गरीबी और तंगहाली को लेकर। आप सोच रहे होंगे कि कंक्रीट के जंगलों में असली जंगल और आदिवासी। दिमाग पर अधिक जोर लगाने का प्रयास करना बेकार है। मुंबई के बोरिवली जहां राजीव गांधी के नाम पर एक राष्ट्रीय पार्क है। इस पार्क में कुछ आदिवासियों के गांव हैं, जो कि सैकड़ो सालों से इन जंगलों में हैं। आज पर्याप्‍त कमाई नहीं हो पाने के कारण इनके बच्‍चे कुपो‍षित हैं, महिलाओं की स्थिति भी कोई खास नहीं है। पार्क में आने वाले जो अपना झूठा खाना फेंक देते हैं, बच्‍चे उन्‍हें खा कर गुजारा कर लेते हैं। आदिवासी आदम

प्यार, मोहब्बत और वो

आप यकिन कीजिए मुझे प्यार हो गया है. दिक्कत बस इतनी सी है कि उनकी उमर मुझसे थोडी सी ज्यादा है. मैं २५ बरस का हूँ और उन्होंने ४५ वा बसंत पार किया है. पेशे से वो डाक्टर हैं. इसी शहर में रहती हैं. सोचता हूँ अपनी मोहब्बत का इज़हार कर ही दूँ. लेकिन डर भी सता रहा है. यदि उन्होंने ना कर दिया तो. खैर यह उनका विशेषाधिकार भी है. उनसे पहली मुलाकात एक स्टोरी के चक्कर में हुई थी. शहर में किसी डाक्टर का कमेन्ट चाहिए था. सामने एक अस्पताल दिखा और धुस गया मैं अन्दर. बस वहीं उनसे पहली बार मुलाकात हुई. इसके बाद आए दिन मुलाकातें बढती गई. यकीं मानिये उनका साथ उनकी बातें मुझे शानदार लगती हैं. मैं उनसे मिलने का कोई बहाना नहीं छोड़ता हूँ. अब आप ही बताएं मैं क्या करूँ..

बेनामी जी आपके लिए

गुजरात में अगले महीने चुनाव है और इसी के साथ भगवा नेकर पहनकर कई सारे लोग बेनामी नाम से ब्लॉग की दुनिया में हंगामा बरपा रहे हैं. एक ऐसे ही बेनामी से मेरा भी पाला पड़ गया. मैं पूरा प्रयास करता हूँ कि जहाँ तक हो इन डरपोक और कायर लोगों से बचा जाए. सुनील ने मोदी और करण थापर को लेकर एक पोस्ट डाल दी और मैं उस पर अपनी राय, बस फिर क्या था. कूद पड़े एक साहेब भगवा नेकर पहन कर बेनामी नाम से. भाई साहब में इतना सा साहस नहीं कि अपने नाम से कुछ लिख सकें. और मुझे ही एक टुच्चे टाईप पत्रकार कह दिया. मन में था कि जवाब नहीं देना है लेकिन साथियों ने कहा कि ऐसे लोगों का जवाब देना जरूरी है. वरना ये लोग फिर बेनामी नाम से उल्टा सुलटा कहेंगे. सबसे पहले बेनामी वाले भाई साहब कि राय.... अपने चैनल के नंगेपन की बात नहीं करेंगे? गाँव के एक लड़के के अन्दर अमेरिकन वैज्ञानिक की आत्मा की कहानी....भूल गए?....चार साल की एक बच्ची के अन्दर कल्पना चावला की आत्मा...भूल गए?...उमा खुराना...भूल गए?....भूत-प्रेत की कहानियाँ...भूल गए?... सीएनएन आपका चैनल है!....आशीष का नाम नहीं सुना भाई हमने कभी...टीवी १८ के बोर्ड में हैं आप?...कौन सा