31 दिसंबर की देर रात मुंबई में जो दो महिलाओं के साथ सत्तर अस्सी लोगों की भीड़ ने जो कुछ किया, वह शर्मनाक था लेकिन इसी के साथ एक नई बहस छिड़ गई है। ब्लॉग की दुनिया में कई लोगों ने इस पर लिखा और कमेंट के रुप में कई लोगों ने अपनी अपनी राय। कुछ ने इसे शर्मसार करने वाली घटना बताई तो किसी ने संस्कृति के ठेकेदारों पर सवालिया निशान उठाया। किसी ने इन लड़कियों के बहाने पूरे समाज के सामने यह सवाल उठा दिया कि महिलाओं को देर रात सड़क पर नहीं निकलना चाहिए क्योंकि यह हमारी संस्कृति में नहीं है। खैर सब ने अपने अपने अनुसार अपनी राय दी। कुछ बातों से मैं सहमत हूं और कुछ से नहीं। लेकिन मैं सभी लोगों का तहेदिल से आभारी हूं कि इन्होंने पूरी ईमानदारी से अपनी राय दी। अरे मुंबई तूने यह क्या कर डाला नामक शीर्षक खबर के लिए यहां क्लिक करें
वाह मनी ब्लॉग के कमल शर्मा ने कहा कि भाई शहर सुरक्षित हो या असुरक्षित....रात में पौने दो बजे तो किसी के भी घूमने के लिए ठीक नहीं है। इन महिलाओं के साथ जो अभद्रता हुई वह शर्मनाक है और छेड़ने वालों को खोजकर कानूनी कारईवाई होनी चाहिए। लेकिन इन महिलाओं और इनके पुरुष मित्रों को भी यह सोचना चाहिए था कि यह किसी भी देश और शहर में घूमने का समय नहीं है। नव वर्ष की मस्ती में आजकल होता क्या है दारु और सेक्स।
जबकि अपना पन्ना के अनिल पांडेय का मानना है कि भाई इस पर मैं यही कहूंगा कि इन हिन्दुवादी संगठनों के लोग अब क्हां मर गए। अब इन्हें महिलाओं और संस्कृति की याद नहीं आई और बडे़ बड़े दावे करने वाली सरकार क्या बेहोश हो गई थी उस वक्त।
आलाप के राजेंद्र त्यागी कहते हैं कि घटना शर्मनाक है। इस प्रकार की घटनाएं महानगरो में पनप रही अपसंस्कृति के कारण हैं। सावाधन रहना होगा। साथ ही कहूंगा- लापरवाही आपकी गाली चोरों को? ... क्यों?
आवारा बंजारा के संजीत का कहना है कि यदि अपने आप को इस घटना में रखूं तो सोचता हूं कि क्या मै रात को दो बजे अपनी किसी महिला मित्र या घर की ही महिला के साथ इकत्तीस दिसंबर की रात ऐसे माहौल मे सड़क पर घूमने निकलूंगा? अगर निकलता हूं तो मेरी गलती पहले है, बदसलूकी करने वालों की तो गलती खैर है ही। दूसरी तरफ इस घटना के बारे मे पढ़कर या सुनकर यह भी लगता है कि क्या हमारे शहरों में कानून या प्रशासन नाम की कोई चीज या उसका भय ही नही है ऐसे लोगों में जो ऐसी बदसलूकी करने के मौके तलाशते रहते हैं। क्या हम अपने ही शहर में बेखौफ हो कर नही घूम सकते? क्या महिलाएं नए साल का जश्न हम जैसे ही घूमते हुए नही मना सकती? दोनो ही नज़रिए महत्वपूर्ण हैं!! खामियां दोनो तरफ हैं। पर प्रशासन का दायित्व है कि वह नागरिकों को बेखौफ़ जीने का माहौल दे। इसके अलावा शर्म हमें, हमारे समाज को भी आनी चाहिए। हम क्या बना रहे हैं अपने आप को या समाज को, जहां नारी अकेले दिखी वह सिर्फ़ भोग की वस्तु हो जाती है। क्यों है आखिर ऐसी मानसिकता। इसके लिए तो प्रशासन जिम्मेदार नही। एक नज़र से देखें तो अनिल पाण्डेय जी की बात से भी सहमत। आमची मुंबई तो शिवसेना की मुंबई है, जहां सरकार से ज्यादा शिवसेना का राज चलता है। क्या शिवसेना के राज में ऐसा अधर्म ही होगा। या उनकी नज़र में यह अधर्म ना होकर "युवावस्था का धर्म" ही है?
समय चक्र के महेंद्र मिश्रा की राय है कि यह बड़ी शर्मनाक घटना है इसकी जितनी निंदा की जावे कम है .पश्चात्य सभ्यता की खाल पहिनने वालो को इस तरह का ख़ामियाज़ा तो भुगतने पड़ेगे ।
स्वप्नदर्शी ब्लॉग के स्वप्नदर्शी कहते हैं कि मेरी अमूमन समझ रही है कि भीड मे सुरक्षा होती है, पर आसम और अब मुम्बई की इस घट्ना के बाद से ये भरोसा भी खत्म हो रहा है. अब हिन्दुस्तानी समाज एक सामूहिक उन्माद और समूहिक रूप से अपराधी प्रवरिती क होता जा रहा है. अगर रात के दो बज़े, 70-80 पुरुश सड्क पर घूम कर नये साल के उन्माद मे थे, तो सिर्फ महिलओ को भी ये हक है कि वो भी सडक पर निकल सके, बिना भयभीत हुये. अगर किसी को बन्द ही होना चहिये तो इन राक्षसो को बन्द करके कही पाताल मे धकेलना चाहिये.
वाह मनी ब्लॉग के कमल शर्मा ने कहा कि भाई शहर सुरक्षित हो या असुरक्षित....रात में पौने दो बजे तो किसी के भी घूमने के लिए ठीक नहीं है। इन महिलाओं के साथ जो अभद्रता हुई वह शर्मनाक है और छेड़ने वालों को खोजकर कानूनी कारईवाई होनी चाहिए। लेकिन इन महिलाओं और इनके पुरुष मित्रों को भी यह सोचना चाहिए था कि यह किसी भी देश और शहर में घूमने का समय नहीं है। नव वर्ष की मस्ती में आजकल होता क्या है दारु और सेक्स।
जबकि अपना पन्ना के अनिल पांडेय का मानना है कि भाई इस पर मैं यही कहूंगा कि इन हिन्दुवादी संगठनों के लोग अब क्हां मर गए। अब इन्हें महिलाओं और संस्कृति की याद नहीं आई और बडे़ बड़े दावे करने वाली सरकार क्या बेहोश हो गई थी उस वक्त।
आलाप के राजेंद्र त्यागी कहते हैं कि घटना शर्मनाक है। इस प्रकार की घटनाएं महानगरो में पनप रही अपसंस्कृति के कारण हैं। सावाधन रहना होगा। साथ ही कहूंगा- लापरवाही आपकी गाली चोरों को? ... क्यों?
आवारा बंजारा के संजीत का कहना है कि यदि अपने आप को इस घटना में रखूं तो सोचता हूं कि क्या मै रात को दो बजे अपनी किसी महिला मित्र या घर की ही महिला के साथ इकत्तीस दिसंबर की रात ऐसे माहौल मे सड़क पर घूमने निकलूंगा? अगर निकलता हूं तो मेरी गलती पहले है, बदसलूकी करने वालों की तो गलती खैर है ही। दूसरी तरफ इस घटना के बारे मे पढ़कर या सुनकर यह भी लगता है कि क्या हमारे शहरों में कानून या प्रशासन नाम की कोई चीज या उसका भय ही नही है ऐसे लोगों में जो ऐसी बदसलूकी करने के मौके तलाशते रहते हैं। क्या हम अपने ही शहर में बेखौफ हो कर नही घूम सकते? क्या महिलाएं नए साल का जश्न हम जैसे ही घूमते हुए नही मना सकती? दोनो ही नज़रिए महत्वपूर्ण हैं!! खामियां दोनो तरफ हैं। पर प्रशासन का दायित्व है कि वह नागरिकों को बेखौफ़ जीने का माहौल दे। इसके अलावा शर्म हमें, हमारे समाज को भी आनी चाहिए। हम क्या बना रहे हैं अपने आप को या समाज को, जहां नारी अकेले दिखी वह सिर्फ़ भोग की वस्तु हो जाती है। क्यों है आखिर ऐसी मानसिकता। इसके लिए तो प्रशासन जिम्मेदार नही। एक नज़र से देखें तो अनिल पाण्डेय जी की बात से भी सहमत। आमची मुंबई तो शिवसेना की मुंबई है, जहां सरकार से ज्यादा शिवसेना का राज चलता है। क्या शिवसेना के राज में ऐसा अधर्म ही होगा। या उनकी नज़र में यह अधर्म ना होकर "युवावस्था का धर्म" ही है?
समय चक्र के महेंद्र मिश्रा की राय है कि यह बड़ी शर्मनाक घटना है इसकी जितनी निंदा की जावे कम है .पश्चात्य सभ्यता की खाल पहिनने वालो को इस तरह का ख़ामियाज़ा तो भुगतने पड़ेगे ।
स्वप्नदर्शी ब्लॉग के स्वप्नदर्शी कहते हैं कि मेरी अमूमन समझ रही है कि भीड मे सुरक्षा होती है, पर आसम और अब मुम्बई की इस घट्ना के बाद से ये भरोसा भी खत्म हो रहा है. अब हिन्दुस्तानी समाज एक सामूहिक उन्माद और समूहिक रूप से अपराधी प्रवरिती क होता जा रहा है. अगर रात के दो बज़े, 70-80 पुरुश सड्क पर घूम कर नये साल के उन्माद मे थे, तो सिर्फ महिलओ को भी ये हक है कि वो भी सडक पर निकल सके, बिना भयभीत हुये. अगर किसी को बन्द ही होना चहिये तो इन राक्षसो को बन्द करके कही पाताल मे धकेलना चाहिये.
Comments
लड़कियों को इस घटना से जरा भी डरने की जरूरत नहीं। हां पर वे कुछ सावधानियों को जरूर ध्यान में रखें और इन तरह गुंडों से मुकाबला करने में संकोच न करें।
सुमित सिंह, (अपना अपना आसमां)