Skip to main content

दिबांग और आजतक


खबर हैं कि दिबांग (यदि आप दिबांग को नहीं जानते हैं तो यह खबर आपके लिए नही हैं) इन दिनों लंबी छुट्टी पर हैं और जल्दी ही सबसे तेज चैनल आजतक मे कदम रखने वाले हैं। खबर कितनी सच हैं अभी यह कहना सही नहीं होगा लेकिन देल्ही और बोम्बे के मीडिया जगत मे यह चर्चा आम है। कुछ दिनों पहले खबर आई थी कि दिबांग को एनडीटीवी से हटा दिया गया हैं। जिसके बाद वोह लंबी छुट्टी पर चले गए हैं। लेकिन इस संभावना से इंकार नही किया जा सकता हैं कि उन्होने आजतक का साथ पकड़ लिया हो।


Comments

एनडीटीवी से विदाई के समय सुना गया था कि वे अपनी टीम के साथ सहारा समय में जा रहे हैं। आप बता रहे हैं कि वे आज तक में जा सकते हैं। किसी भी चैनल में जाएं या खुद का चैनल लाएं अथवा कारोबार करें, लेकिन सुखी रहें।
Anonymous said…
journalist hamesha journalist hi rahta hai, chahe wo kisi bhi news group se juraa ho.
aur ek sach ye bhi hai ki na to journalist ke hatne se chanel ya akhbaar band hote hain, aur na hi akhbar ya chanel se nikale jane wale journalist bhookho marte hain.
agar aap ki khabar sahi hai, to dibang ko dhero shubhkamnaye.aur jald hi hame dibang ko NDTV ki jagah AAJ TAK par dekhne ki aadat bhi ho jaegi.
Kartikey Swami said…
Pahle se hi mauzood Do maharathiyon ke sath tisre ki upasthi ko Aajtak kaise pacha sakega.
mamta said…
पहले भी तो देबांग आज तक मे ही थे। ये लोग भी जॉब हौप्पिंग करते ही रहते है। आज यहां तो कल वहां।
Anonymous said…
Bahut Achha laga yaar blog....mera bhi ek article daal dena.
journalist itni charch kyon karte rehete hai. Aur haa debang kya kar raha hai, yeh jaankar, kya karu mein !

Popular posts from this blog

मै जरुर वापस आऊंगा

समझ में नहीं आ रहा कि शुरुआत क्‍हां से और कैसे करुं। लेकिन शुरुआत तो करनी होगी। मुंबई में दो साल हो गए हैं और अब इस श‍हर को छोड़कर जाना पड़ रहा है। यह मेरी सबसे बड़ी कमजोरी है कि मैं जहां भी रहता हूं उसके मोह में बंध जाता हूं। बनारस से राजस्‍थान आते भी ऐसा ही कुछ महसूस हुआ था। फिर जयपुर से भोपाल जाते हुए दिल को तकलीफ हुई थी। इसके बाद भोपाल से मुंबई आते हुए भोपाल और दोस्‍तों को छोड़ते हुए डर लग रहा था। और आज मुंबई छोड़ते हुए अच्‍छा नहीं लग रहा है। मैं बार बार लिखता रहा हूं कि मुंबई मेरा दूसरा प्‍यार है। और किसी भी प्‍यार को छोडते हुए विरह की अग्नि में जलना बड़ा कष्‍टदायक होता है। इस शहर ने मुझे बहुत कुछ दिया। इस शहर से मुझे एक अस्तिव मिला। कुछ वक्‍त उसके साथ गुजारने का मौका मिला, जिसके साथ मैने सोचा भी नहीं था। मुंबई पर कई लेख लिखते वक्‍त इस शहरों को पूरी तरह मैने जिया है। लेकिन अब छोड़कर जाना पड़ रहा है। बचपन से लेकर अब तक कई शहरों में जिंदगी बसर करने का मौका मिला। लेकिन बनारस और मुंबई ही दो ऐसे शहर हैं जो मेरे मिजाज से मेल खाते हैं। बाकी शहरों में थोड़ी सी बोरियत होती है लेकिन यहां ऐसा

मुंबई का कड़वा सच

मुंबई या‍नि मायानगरी। मुंबई का नाम लेते ही हमारे जेहन में एक उस शहर की तस्‍वीर सामने आती हैं जहां हर रोज लाखों लोग अपने सपनों के संग आते हैं और फिर जी जान से जुट जाते हैं उन सपनों को साकार करने के लिए। मुंबई जानी जाती है कि हमेशा एक जागते हुए शहर में। वो शहर जो कभी नहीं सोता है, मुंबई सिर्फ जगमगाता ही है। लेकिन मुंबई में ही एक और भी दुनिया है जो कि हमें नहीं दिखती है। जी हां मैं बात कर रहा हूं बोरिवली के आसपास के जंगलों में रहने वाले उन आदिवासियों की जो कि पिछले दिनों राष्‍ट्रीय खबर में छाए रहे अपनी गरीबी और तंगहाली को लेकर। आप सोच रहे होंगे कि कंक्रीट के जंगलों में असली जंगल और आदिवासी। दिमाग पर अधिक जोर लगाने का प्रयास करना बेकार है। मुंबई के बोरिवली जहां राजीव गांधी के नाम पर एक राष्ट्रीय पार्क है। इस पार्क में कुछ आदिवासियों के गांव हैं, जो कि सैकड़ो सालों से इन जंगलों में हैं। आज पर्याप्‍त कमाई नहीं हो पाने के कारण इनके बच्‍चे कुपो‍षित हैं, महिलाओं की स्थिति भी कोई खास नहीं है। पार्क में आने वाले जो अपना झूठा खाना फेंक देते हैं, बच्‍चे उन्‍हें खा कर गुजारा कर लेते हैं। आदिवासी आदम

बस में तुम्‍हारा इंतजार

हर रोज की तरह मुझे आज भी पकड़नी थी बेस्‍ट की बस। हर रोज की तरह मैंने किया आज भी तुम्‍हारा इंतजार अंधेरी के उसी बस स्‍टॉप पर जहां कभी हम साथ मिला करते थे अक्‍सर बसों को मैं बस इसलिए छोड़ देता था ताकि तुम्‍हारा साथ पा सकूं ऑफिस के रास्‍ते में कई बार हम साथ साथ गए थे ऑफिस लेकिन अब वो बाते हो गई हैं यादें आज भी मैं बेस्‍ट की बस में तुम्‍हारा इंतजार करता हूं और मुंबई की खाक छानता हूं अंतर बस इतना है अब बस में तन्‍हा हूं फिर भी तुम्‍हारा इंतजार करता हूं