मैं सबसे पहले यह बता दूं की मैं सलमान खान का प्रशंसक नहीं हूँ। लेकिन इसके बाद मैं बस यही कहना चाहूँगा कि मैं जिस फिल्ड में हूँ, उसी ने सलमान को एक विलेन कि तरह पेश किया हैं। हालांकि मैं भी मीडिया में हूँ तो एक बात जरूर कहूँगा कि सलमान को जो सज़ा मिल रही हैं उसके लिए उनका एक सफल अभिनेता होना ज़िम्मेदार हैं। कुछ लोग कहते हैं कि सलमान के मन में किसी के प्रति ना तो इज़्ज़त है और ना ही वे परवाह करते हैं कि कौन क्या सोच रहा है। हाँ सलमान इस दुनिया की और इसी दुनिया की बातो की परवाह नही करते हैं? क्या यह गलत करते हैं? मुझे नही लगता हैं। आख़िर वो इस दुनिया कि परवाह क्यों करें। उन्हें जिनकी परवाह करनी चाहिऐ उनकी परवाह वो करते हैं। सलमान अपने भाई- बहनों से उन्हें असीम प्यार करते हैं। इसके अलावा अपने दोस्तो की भी वे परवाह करते हैं। हम प्रेस वाले बड़ी जल्दी ही अपनी औकात भूल जाते हैं और माइक या कलम हाथ में आते ही मान अपने आपको तोप मानने लगते हैं. इसे में यदि सामने वाला हमारे सवालों का जवाब नही देता हैं तो हम प्रेस वाले उसे खलनायक, बदतमीज़ और ना जाने कैसे कैसे शब्दो से नवाज़ाने लगते हैं. हम भूल जाते हैं अपनी ज़िमेदारी. बस मैं तो इतना ही कहना चाहूँगा की दूसरो पर अंगुली उठाने से पहले हमें अपने गिरेबान में झांक लेना चाहिए. पिछले दिनों सलमान जयपुर में विकलांग बच्चों के एक स्कूल में आए थे.. अब पाठक निर्णय ले की सलमान वाकई में बदतमीज़ हैं?
मुंबई यानि मायानगरी। मुंबई का नाम लेते ही हमारे जेहन में एक उस शहर की तस्वीर सामने आती हैं जहां हर रोज लाखों लोग अपने सपनों के संग आते हैं और फिर जी जान से जुट जाते हैं उन सपनों को साकार करने के लिए। मुंबई जानी जाती है कि हमेशा एक जागते हुए शहर में। वो शहर जो कभी नहीं सोता है, मुंबई सिर्फ जगमगाता ही है। लेकिन मुंबई में ही एक और भी दुनिया है जो कि हमें नहीं दिखती है। जी हां मैं बात कर रहा हूं बोरिवली के आसपास के जंगलों में रहने वाले उन आदिवासियों की जो कि पिछले दिनों राष्ट्रीय खबर में छाए रहे अपनी गरीबी और तंगहाली को लेकर। आप सोच रहे होंगे कि कंक्रीट के जंगलों में असली जंगल और आदिवासी। दिमाग पर अधिक जोर लगाने का प्रयास करना बेकार है। मुंबई के बोरिवली जहां राजीव गांधी के नाम पर एक राष्ट्रीय पार्क है। इस पार्क में कुछ आदिवासियों के गांव हैं, जो कि सैकड़ो सालों से इन जंगलों में हैं। आज पर्याप्त कमाई नहीं हो पाने के कारण इनके बच्चे कुपोषित हैं, महिलाओं की स्थिति भी कोई खास नहीं है। पार्क में आने वाले जो अपना झूठा खाना फेंक देते हैं, बच्चे उन्हें खा कर गुजारा कर लेते हैं। आदिवासी आदम
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Galatiyan kisi se ho sakti hain
---बिल्कुल सत्य वचन. वरना तो कितने ही इन्सानों का खून करके खुलेआम घूम रहे हैं.