यह पोस्ट मैं एक खास उद्देश्य से लिख रहा हूँ। जहाँ तक मेरी जानकारी है इस तरह की पोस्ट पहले कभी नहीं लिखी गई होगी। कह सकते हैं कि यह एक सकारात्मक पोस्ट हैं। और शायद मेरे इस प्रयास से मेरे उन कई साथियों को नौकरी मिल सकती है जो दिल्ली में नौकरी की तलाश में भटक रहे हैं। चलिए मैं अपनी बात शुरू करता हूं मेरे कई दोस्त जो इस समय दिल्ली और भोपाल में हैं, उन्हें मीडिया में नौकरी की तलाश है। मेरे इन दोस्तों ने माखन लाल पत्रकारिता विश्वविधालय से पत्रकारिता में दो साल की मास्टर डिग्री ली हैं। ये सभी नौजवान हैं और मीडिया के माध्यम से कुछ करना चाहते हैं, इसमें से कई हालांकि किसी न किसी प्रैस या चैनल से जुड़े हुए हैं। यदि आपके संस्थान में इन्हें एक मौका मिले तो ये पत्रकारिता जगत को काफी कुछ नयापन दे सकते हैं और शायद आज इस तरह के ही पत्रकारों की जरूरत हैं जो आइडिया से भरे हुए हों। यदि अपके संस्थान को अच्छे लोगों की जरूरत हैं तो आप मुझे ९८६७५-७५१७६ या ashish.maharishi@gmail.com पर मेल भी कर सकता हैं.
आशीष महर्षि सतपुड़ा से लेकर रणथंभौर के जंगलों से बुरी खबर आ रही है। आखिर जिस बात का डर था, वही हुआ। इतिहास में पहली बार मानसून में भी बाघों के घरों में इंसान टूरिस्ट के रुप में दखल देंगे। ये सब सिर्फ ज्यादा से ज्यादा पैसे कमाने के लिए सरकारें कर रही हैं। मप्र से लेकर राजस्थान तक की भाजपा सरकार जंगलों से ज्यादा से ज्यादा कमाई करना चाहती है। इन्हें न तो जंगलों की चिंता है और न ही बाघ की। खबर है कि रणथंभौर के नेशनल पार्क को अब साल भर के लिए खोल दिया जाएगा। इसी तरह सतपुड़ा के जंगलों में स्थित मड़ई में मानसून में भी बफर जोन में टूरिस्ट जा सकेंगे। जब राजस्थान के ही सरिस्का से बाघों के पूरी तरह गायब होने की खबर आई थी तो तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सरिस्का पहुंच गए थे। लेकिन क्या आपको याद है कि देश के वजीरेआजम मोदी या राजस्थान की मुखिया वसुंधरा या फिर मप्र के सीएम शिवराज ने कभी भी बाघों के लिए दो शब्द भी बोला हो? लेकिन उनकी सरकारें लगातार एक के बाद एक ऐसे फैसले करती जा रही हैं, जिससे बाघों के अस्तिव के सामने खतरा मंडरा रहा है। चूंकि सरकारें आंकड़ों की बाजीगरी में उ...
Comments
आशा है आप अन्यथा नहीं लेंगे.