Skip to main content

किसने कहा कि सलमान महापुरुष हैं ?

कल मैंने सलमान खान को लेकर कुछ बातें लिखी थी। इसपर कुछ कमेंट भी आये। लोगों ने पूरी साफगोई से अपनी बात रखी। किसी ने कहा कि सही कहा जी आपने सलमान जैसे महापुरुष जो कि जीवन-मृत्यु के बंधन से लोगों को मुक्त कर चुके हों उनको इतनी बड़ी सजा देना सही नहीं।

मैंने काभी भी सलमान खान के उस अपराध को सही नहीं ठहराया हैं जो कि उन्होने किया हैं। यह कानून का काम हैं और उसे करने दीजिए। बात यहाँ पर मीडिया के द्वारा खलनायक बनाने की थी। हमें क्या हक हैं कि
हम अपने अख़बार और न्यूज़ चैनल को बेचने के लिए किसी को बलि का बकरा बनाए। उसने जो अपराध किया हैं उससे उसकी सज़ा मिलनी ही चाहिऐ।

रमा जी आपने बिल्कुल सही लिखा हैं अब हम अपराधी का महिमा मंडन करने लगेगे हैं। लेकिन यदि लोग यह नहीं देखना चाहते हैं तो क्यों नही एक पत्र या मेल लिख कर कहते हैं कि हमें यह नही देखना हैं। लेकिन रमा जी विश्वास मानिये , लोग यह देखना चाहते हैं। लेकिन एक ज़िम्मेदार नागरिक और पत्रकार होने के नाते तो मैं यहीं कहूँगा कि हमारी बिरादरी को इससे बचना चाहिऐ।

Comments

Ramashankar said…
महोदय आज की तारीख में पत्र लिखना तो लोग भूल चुके हैं. मेल के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं और फोन न. के बारे में चैनलों में कम ही बताया जाता है कि इस कार्यक्रम को पसंद न करने पर अपनी राय यहां भेजे. खैर यह चैनल या अखबार के अपने मामले हैं लेकिन जो कुछ मैने लिखा था उसके बारे में मुझे दर्शकों ने ही बताया था मैं स्वयं उस चैनल में सलमान की खबर नहीं देख पाया था... रही बात दर्शकों के पसंद और नापसंद की तो आप भी बेहतर जानते हैं कि किसी स्टोरी का प्रस्तुतिकरण उसे उस लायक बना देता है.
baat to aap ki sahi hain..lekin ab samay aa gaya hain ki public us khabar ka bahisakr kare jo unke kaam ke layak nahi hian

Popular posts from this blog

मै जरुर वापस आऊंगा

समझ में नहीं आ रहा कि शुरुआत क्‍हां से और कैसे करुं। लेकिन शुरुआत तो करनी होगी। मुंबई में दो साल हो गए हैं और अब इस श‍हर को छोड़कर जाना पड़ रहा है। यह मेरी सबसे बड़ी कमजोरी है कि मैं जहां भी रहता हूं उसके मोह में बंध जाता हूं। बनारस से राजस्‍थान आते भी ऐसा ही कुछ महसूस हुआ था। फिर जयपुर से भोपाल जाते हुए दिल को तकलीफ हुई थी। इसके बाद भोपाल से मुंबई आते हुए भोपाल और दोस्‍तों को छोड़ते हुए डर लग रहा था। और आज मुंबई छोड़ते हुए अच्‍छा नहीं लग रहा है। मैं बार बार लिखता रहा हूं कि मुंबई मेरा दूसरा प्‍यार है। और किसी भी प्‍यार को छोडते हुए विरह की अग्नि में जलना बड़ा कष्‍टदायक होता है। इस शहर ने मुझे बहुत कुछ दिया। इस शहर से मुझे एक अस्तिव मिला। कुछ वक्‍त उसके साथ गुजारने का मौका मिला, जिसके साथ मैने सोचा भी नहीं था। मुंबई पर कई लेख लिखते वक्‍त इस शहरों को पूरी तरह मैने जिया है। लेकिन अब छोड़कर जाना पड़ रहा है। बचपन से लेकर अब तक कई शहरों में जिंदगी बसर करने का मौका मिला। लेकिन बनारस और मुंबई ही दो ऐसे शहर हैं जो मेरे मिजाज से मेल खाते हैं। बाकी शहरों में थोड़ी सी बोरियत होती है लेकिन यहां ऐसा

मुंबई का कड़वा सच

मुंबई या‍नि मायानगरी। मुंबई का नाम लेते ही हमारे जेहन में एक उस शहर की तस्‍वीर सामने आती हैं जहां हर रोज लाखों लोग अपने सपनों के संग आते हैं और फिर जी जान से जुट जाते हैं उन सपनों को साकार करने के लिए। मुंबई जानी जाती है कि हमेशा एक जागते हुए शहर में। वो शहर जो कभी नहीं सोता है, मुंबई सिर्फ जगमगाता ही है। लेकिन मुंबई में ही एक और भी दुनिया है जो कि हमें नहीं दिखती है। जी हां मैं बात कर रहा हूं बोरिवली के आसपास के जंगलों में रहने वाले उन आदिवासियों की जो कि पिछले दिनों राष्‍ट्रीय खबर में छाए रहे अपनी गरीबी और तंगहाली को लेकर। आप सोच रहे होंगे कि कंक्रीट के जंगलों में असली जंगल और आदिवासी। दिमाग पर अधिक जोर लगाने का प्रयास करना बेकार है। मुंबई के बोरिवली जहां राजीव गांधी के नाम पर एक राष्ट्रीय पार्क है। इस पार्क में कुछ आदिवासियों के गांव हैं, जो कि सैकड़ो सालों से इन जंगलों में हैं। आज पर्याप्‍त कमाई नहीं हो पाने के कारण इनके बच्‍चे कुपो‍षित हैं, महिलाओं की स्थिति भी कोई खास नहीं है। पार्क में आने वाले जो अपना झूठा खाना फेंक देते हैं, बच्‍चे उन्‍हें खा कर गुजारा कर लेते हैं। आदिवासी आदम

बस में तुम्‍हारा इंतजार

हर रोज की तरह मुझे आज भी पकड़नी थी बेस्‍ट की बस। हर रोज की तरह मैंने किया आज भी तुम्‍हारा इंतजार अंधेरी के उसी बस स्‍टॉप पर जहां कभी हम साथ मिला करते थे अक्‍सर बसों को मैं बस इसलिए छोड़ देता था ताकि तुम्‍हारा साथ पा सकूं ऑफिस के रास्‍ते में कई बार हम साथ साथ गए थे ऑफिस लेकिन अब वो बाते हो गई हैं यादें आज भी मैं बेस्‍ट की बस में तुम्‍हारा इंतजार करता हूं और मुंबई की खाक छानता हूं अंतर बस इतना है अब बस में तन्‍हा हूं फिर भी तुम्‍हारा इंतजार करता हूं