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तमीज और तहजीब की जरूरत है दिल्ली की मेट्रो को


फ़र्श खाली देखा नहीं कि पसर गए। लगता है मेट्रो के साथ साथ जिस तमीज और तहजीब की जरूरत है, राजधानी और उसके आसपास के लोग अभी उससे कोसों दूर हैं। मेट्रो में आजकल आए दिन इसका प्रमाण मिल जाता है। शुक्रवार को तो एक ट्रेन के कोच में लोग फर्श पर सोते भी पाए गए। वह भी सुबह सुबह, पीक ऑवर्स में। देहाती, शहरी, अनपढ़-गंवार और पढ़े लिखे, इस सिलसिले में सब एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं। ये लोग मनचाहे तरीके से जगह घेर कर बैठ जाते हैं और लोगों को परेशान करते हैं। इस वजह से तू-तू मैं-मैं भी हो जाती है। फर्श पर बैठने के लिए भी मारामारी होती है। कल सुबह जब फर्श पर सो रहे एक शख्स को कुछ लोगों ने उठने के लिए कहा तो उसने तबीयत खराब होने का बहाना बना दिया। उसके साथ चार-पांच लोगों के होने के कारण आवाज उठाने वाले भी चुप हो गए। मेट्रो में दिन प्रति दिन गंभीर होती जा रही इस समस्या को सबसे पहले अगस्त के महीने में सांध्य टाइम्स ने ही मेट्रो को खटारा बना दिया, बैठते हैं ऐंठते हैं, खबर के जरिए उजागर किया था, इसके बावजूद मेट्रो इस समस्या से निबटने में नाकाम रही है। पहले इस संबंध में कम से कम बार बार एनाउंसमेंट की जाती थी, लेकिन अब एनाउंसमेंट भी कम सुनने को मिलते हैं।


(इस खबर का स्त्रोत नवभारत है )

Comments

Shraddha said…
Sahi kaha delhi walo ko bhi tehzeeb sikhni padegi they dont have respect while they speak ...
Udan Tashtari said…
नियमों का थोड़ा कठोरता से पालन करवाना होगा, वरना तो हालात बिगड़ते ही जायेंगे. फिर लोग इसे हक मानने लगेंगे.

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