यह जिन्दगी भी अजीब है। कब चलते चलते थकाऊ बन जाए? कुछ नहीं पता. लेकिन जिन्दगी है तो इसका साथ भी निभाना पड़ेगा. यही सोचते सोचते कब उसकी आँख लग दी? पता ही नहीं चला. उसकी ज़िंदगी में जब वो पहली दफा आई थी तो सब कुछ बदल चुका था. उसे पहली नजर में ही उससे प्यार हो गया था. हाँ जी प्यार. वही प्यार जो उस उमर में अच्छे अच्छे को हो जाता है. उसे भी हो गया था. परियों से भी अधिक खूबसूरत थी वो. उसकी बड़ी बड़ी आंखों में सिर्फ़ और सिर्फ़ हसीं सपने के. एक खूबसूरत राजकुमार का और सुखद भविष्य का. जबकि अमित की नज़रे रेगिस्तान की तरह सुनसान और बंजर थी. सपने तो यहाँ भी थे. लेकिन उसकी आँखों में दिखते नहीं थे.
वों बंजर रेगिस्तान से आता था, जहाँ हजारों की तादाद में रहस्य छिपे रहते हैं. जबकि वो उस मिटटी से आती थी जहाँ गंगा बहती थी. ऐसे में रेगिस्तान और गंगा का संगम कहाँ हो सकता है, लेकिन अमित ने पूरा प्रयास किया कि यह संगम हो. लेकिन गंगा तो भगवान के चरणों के लिए बनी है, हजारों सालों की परम्परा पल में थोड़े ही ध्वस्त होती है. रेगिस्तान की बंजर भूमि का कभी गंगा का निर्मल जल नहीं मिलता. फिर भी हजारों सालों से रेगिस्तान को गंगा का इंतजार है। इंतजार पहले दिन में और फिर सालों में बदल चुका हैं। लेकिन बंजर भूमि आज भी बंजर ही है।
जारी .............
वों बंजर रेगिस्तान से आता था, जहाँ हजारों की तादाद में रहस्य छिपे रहते हैं. जबकि वो उस मिटटी से आती थी जहाँ गंगा बहती थी. ऐसे में रेगिस्तान और गंगा का संगम कहाँ हो सकता है, लेकिन अमित ने पूरा प्रयास किया कि यह संगम हो. लेकिन गंगा तो भगवान के चरणों के लिए बनी है, हजारों सालों की परम्परा पल में थोड़े ही ध्वस्त होती है. रेगिस्तान की बंजर भूमि का कभी गंगा का निर्मल जल नहीं मिलता. फिर भी हजारों सालों से रेगिस्तान को गंगा का इंतजार है। इंतजार पहले दिन में और फिर सालों में बदल चुका हैं। लेकिन बंजर भूमि आज भी बंजर ही है।
जारी .............
Comments
ऐस ही परस्पर विरोधी चीजों के साथ आने से आता है रचना में सौंदर्यबोध और कसक। लिखते रहिए। अगली कड़ी का इंतजार है।
घुघूती बासूती
अगली कड़ी का बेसब्री से इंतज़ार है...
शुभकामनाएँ