Skip to main content

मेरा कुत्ता भी फेसबुक पर है

काम वाली बाई
एक दिन अचानक
काम पर नहीं आई
तो पत्नी ने फोन पर डांट लगाईं
अगर तुझे आज नहीं आना था
तो पहले बताना था

वह बोली -
मैंने तो परसों ही
फेसबुक पर लिख दिया था क़ि
एक सप्ताह के लिए गोवा जा रही हूँ
पहले अपडेट रहो
फिर भी पता न चले तो कहो

पत्नी बोली =
तो तू फेसबुक पर भी है
उसने जवाब दिया -
मै तो बहुत पहले से फेसबुक पर हूँ
साहब मेरे फ्रेंड हैं !

बिलकुल नहीं झिझकते हैं
मेरे प्रत्येक अपडेट पर
बिंदास कमेन्ट लिखते हैं
मेरे इस अपडेट पर
उन्होंने कमेन्ट लिखा
हैप्पी जर्नी, टेक केयर,
आई मिस यू, जल्दी आना
मुझे नहीं भाएगा पत्नी के हाथ का खाना

इतना सुनते ही मुसीबत बढ़ गयी
पत्नी ने फोन बंद किया
और मेरी छाती पर चढ़ गयी
गब्बर सिंह के अंदाज़ में बोली -
तेरा क्या होगा रे कालिया !
मैंने कहा -देवी !
मैंने तेरे साथ फेरे खाए हैं
वह बोली -
तो अब मेरे हाथ का खाना भी खा !

अचानक दोबारा फोन करके
पत्नी ने काम वाली बाई से
पूछा, घबराये-घबराए
तेरे पास गोवा जाने के लिए
पैसे कहाँ से आये ?

वह बोली- सक्सेना जी के साथ
एलटीसी पर आई हूँ
पिछले साल वर्माजी के साथ
उनकी कामवाली बाई गयी थी
तब मै नई-नई थी
जब मैंने रोते हुए
उन्हें अपनी जलन का कारण बताया
तब उन्होंने ही समझाया
क़ि वर्माजी की कामवाली बाई के
भाग्य से बिलकुल नहीं जलना
अगले साल दिसम्बर में
मैडम जब मायके जायगी
तब तू मेरे साथ चलना !

पहले लोग कैशबुक खोलते थे
आजकल फेसबुक खोलते हैं
हर कोई फेसबुक में बिजी है
कैशबुक खोलने के लिए कमाना पड़ता है
इसलिए फेसबुक ईजी है

आदमी कंप्यूटर के सामने बैठकर
रात-रातभर जागता है
बिंदास बातें करने के लिए
पराई औरतों के पीछे भागता है

लेकिन इस प्रकरण से
मेरी समझ में यह बात आई है
क़ि जिसे वह बिंदास मॉडल समझ रहा है
वह तो किसी की कामवाली बाई है
जिसने कन्फ्यूज़ करने के लिए
किसी जवान सुन्दर लड़की की फोटो लगाईं है
सारा का सारा मामला लुक पर है
और अब तो मेरा कुत्ता भी फेसबुक पर है

अज्ञात

Comments

कोई इस कविता के रचनाकार का नाम भी लेगा अथवा सब अपने अपने नाम से इसे लगाते रहेंगे और क्रेडिट लेते रहेंगे ? |

यदि रचनाकार का नाम पता नहीं हो तो भी कम से कम शीर्षक के नीचे "रचनाकार अज्ञात" तो लिखना ही चाहिए. नेट पर लिंक खंगाल कर देखें तो अमृतवाणी समूह पर यह २९ मई को व उससे पहले ११ मई १२ मई से पहले के भी रिकार्ड मिल जाएँगे | इस लिंक पर जाकर ज़रा इस रचना का इतिहास देखें -


http://www.google.co.uk/search?aq=f&sourceid=chrome&ie=UTF-8&q=%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%B0%E0%A4%BE+%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BE+%E0%A4%AD%E0%A5%80+%E0%A4%AB%E0%A5%87%E0%A4%B8%E0%A4%AC%E0%A5%81%E0%A4%95+%E0%A4%AA%E0%A4%B0+%E0%A4%B9%E0%A5%88
Swarajya karun said…
यह तो किसी सुरेन्द्र शर्मा का अधकचरा फूहड़ हास्य है, जो इस देश की करोड़ों दलित महिलाओं का भद्दा मजाक उड़ाकर उन्हें अपमानित करता है . है.देश की अधिकाँश काम वाली बाईयां अर्थात घरेलू नौकरानियां दलित -शोषित वर्गों से आती हैं .अपनी आर्थिक मजबूरियों के कारण उन्हें दूसरों के घरों के जूठे बर्तन मांजने -धोने पड़ते हैं. हास्य कविता के नाम पर इन मेहनतकश महिलाओं के चरित्र पर लांछन लगाने का घृणित कार्य इस तथाकथित रचना में किया गया है. यह इस वर्ष विगत २० मार्च को होली के दिन दैनिक भास्कर के रायपुर संस्करण में प्रकाशित हुई थी.उसमे कवि का नाम सुरेन्द्र शर्मा लिखा हुआ था और उसका एक अट्टहास करता फोटो भी उसमे लगा हुआ था. दलित-शोषित महिलाओं को अपमानित करने वाली इस प्रकार की किसी भी घटिया हरकत का तीव्र विरोध होना चाहिए .

Popular posts from this blog

मुंबई का कड़वा सच

मुंबई या‍नि मायानगरी। मुंबई का नाम लेते ही हमारे जेहन में एक उस शहर की तस्‍वीर सामने आती हैं जहां हर रोज लाखों लोग अपने सपनों के संग आते हैं और फिर जी जान से जुट जाते हैं उन सपनों को साकार करने के लिए। मुंबई जानी जाती है कि हमेशा एक जागते हुए शहर में। वो शहर जो कभी नहीं सोता है, मुंबई सिर्फ जगमगाता ही है। लेकिन मुंबई में ही एक और भी दुनिया है जो कि हमें नहीं दिखती है। जी हां मैं बात कर रहा हूं बोरिवली के आसपास के जंगलों में रहने वाले उन आदिवासियों की जो कि पिछले दिनों राष्‍ट्रीय खबर में छाए रहे अपनी गरीबी और तंगहाली को लेकर। आप सोच रहे होंगे कि कंक्रीट के जंगलों में असली जंगल और आदिवासी। दिमाग पर अधिक जोर लगाने का प्रयास करना बेकार है। मुंबई के बोरिवली जहां राजीव गांधी के नाम पर एक राष्ट्रीय पार्क है। इस पार्क में कुछ आदिवासियों के गांव हैं, जो कि सैकड़ो सालों से इन जंगलों में हैं। आज पर्याप्‍त कमाई नहीं हो पाने के कारण इनके बच्‍चे कुपो‍षित हैं, महिलाओं की स्थिति भी कोई खास नहीं है। पार्क में आने वाले जो अपना झूठा खाना फेंक देते हैं, बच्‍चे उन्‍हें खा कर गुजारा कर लेते हैं। आदिवासी आदम...

बेनामी जी आपके लिए

गुजरात में अगले महीने चुनाव है और इसी के साथ भगवा नेकर पहनकर कई सारे लोग बेनामी नाम से ब्लॉग की दुनिया में हंगामा बरपा रहे हैं. एक ऐसे ही बेनामी से मेरा भी पाला पड़ गया. मैं पूरा प्रयास करता हूँ कि जहाँ तक हो इन डरपोक और कायर लोगों से बचा जाए. सुनील ने मोदी और करण थापर को लेकर एक पोस्ट डाल दी और मैं उस पर अपनी राय, बस फिर क्या था. कूद पड़े एक साहेब भगवा नेकर पहन कर बेनामी नाम से. भाई साहब में इतना सा साहस नहीं कि अपने नाम से कुछ लिख सकें. और मुझे ही एक टुच्चे टाईप पत्रकार कह दिया. मन में था कि जवाब नहीं देना है लेकिन साथियों ने कहा कि ऐसे लोगों का जवाब देना जरूरी है. वरना ये लोग फिर बेनामी नाम से उल्टा सुलटा कहेंगे. सबसे पहले बेनामी वाले भाई साहब कि राय.... अपने चैनल के नंगेपन की बात नहीं करेंगे? गाँव के एक लड़के के अन्दर अमेरिकन वैज्ञानिक की आत्मा की कहानी....भूल गए?....चार साल की एक बच्ची के अन्दर कल्पना चावला की आत्मा...भूल गए?...उमा खुराना...भूल गए?....भूत-प्रेत की कहानियाँ...भूल गए?... सीएनएन आपका चैनल है!....आशीष का नाम नहीं सुना भाई हमने कभी...टीवी १८ के बोर्ड में हैं आप?...कौन सा...

प्यार, मोहब्बत और वो

आप यकिन कीजिए मुझे प्यार हो गया है. दिक्कत बस इतनी सी है कि उनकी उमर मुझसे थोडी सी ज्यादा है. मैं २५ बरस का हूँ और उन्होंने ४५ वा बसंत पार किया है. पेशे से वो डाक्टर हैं. इसी शहर में रहती हैं. सोचता हूँ अपनी मोहब्बत का इज़हार कर ही दूँ. लेकिन डर भी सता रहा है. यदि उन्होंने ना कर दिया तो. खैर यह उनका विशेषाधिकार भी है. उनसे पहली मुलाकात एक स्टोरी के चक्कर में हुई थी. शहर में किसी डाक्टर का कमेन्ट चाहिए था. सामने एक अस्पताल दिखा और धुस गया मैं अन्दर. बस वहीं उनसे पहली बार मुलाकात हुई. इसके बाद आए दिन मुलाकातें बढती गई. यकीं मानिये उनका साथ उनकी बातें मुझे शानदार लगती हैं. मैं उनसे मिलने का कोई बहाना नहीं छोड़ता हूँ. अब आप ही बताएं मैं क्या करूँ..