Skip to main content

अलविदा..अलविदा..अलविदा..


अमित के मन में कुछ था, जिसे वह सब से छिपा रहा था। अपनी मां, पिता, बहन, दोस्त सबसे। उस रात जब वह अपने दोस्त रबींद्र के घर ठहरा हुआ था तो उसने रबींद्र से एक कागज देने को कहा था। इस कागज पर उसने कुछ लिखा। जब रबींद्र ने उसे दिखाने को कहा तो उसने इससे मना कर दिया। रात को सोते समय उसने रबींद्र से पूछा अगर कोई अपने ऑफिस की चौथी मंजिल से छलांग लगा दे तो क्या वह बच पाएगा? इस पर रबींद्र से उसे चुप कराते हुए सोने को कहा।

एक मध्यवर्गीय दंपती के 27 साल के बेटे अमित ने अपने दफ्तर की चौथी मंजिल से कूद कर सुसाइड कर लिया था। अगले दिन अमित का अंतिम संस्कार कर दिया गया।

उधर दूसरी ओर पूरा दफ्तर परेशान था कि आखिर ऐसा कैसे हो गया? ऑफिस में यह भी चर्चा है कि अमित इमोशनल स्ट्रेस में था। माना जा रहा है कि अपने माता-पिता से दूर रहने के कारण उसके मन में यह स्ट्रेस था, जिसने उसे सुसाइड के लिए प्रेरित किया।

अमित के बैग से पुलिस को जो सुसाइड नोट मिला है, उसमें उसने चार लोगों को संबोधित करते हुए कुछ बातें कही हैं। उसने अपनी मां को लिखा है कि वह एक नई दुनिया में कदम रखने जा रहा है। वह आशा करता है कि उसकी मां अपना खुद का ध्यान रखेगी। उसने बहन से कहा कि वह इस संसार में सबसे अच्छी बहन है और आशा करती है कि वह मां का ध्यान रखेगी। दोस्त रवींद्र को लिखा है। उसने रबींद्र को सबसे अच्छा दोस्त बताते हुए कहा है कि वह उसे बहुत याद किया करेगा। चौथे नंबर पर उसने अपने एक महिला दोस्त के बारे में लिखा है। उसके मुताबिक, ‘वह आशा करता है कि वह हमेशा खुश रहेगी और उसे माफ कर देगी।

(ये मेरी एक कहानी के बीच की कुछ लाइनें हैं)

Comments

rabindra said…
very nice ashish
rabindra said…
very nice ashish

Popular posts from this blog

बाघों की मौत के लिए फिर मोदी होंगे जिम्मेदार?

आशीष महर्षि  सतपुड़ा से लेकर रणथंभौर के जंगलों से बुरी खबर आ रही है। आखिर जिस बात का डर था, वही हुआ। इतिहास में पहली बार मानसून में भी बाघों के घरों में इंसान टूरिस्ट के रुप में दखल देंगे। ये सब सिर्फ ज्यादा से ज्यादा पैसे कमाने के लिए सरकारें कर रही हैं। मप्र से लेकर राजस्थान तक की भाजपा सरकार जंगलों से ज्यादा से ज्यादा कमाई करना चाहती है। इन्हें न तो जंगलों की चिंता है और न ही बाघ की। खबर है कि रणथंभौर के नेशनल पार्क को अब साल भर के लिए खोल दिया जाएगा। इसी तरह सतपुड़ा के जंगलों में स्थित मड़ई में मानसून में भी बफर जोन में टूरिस्ट जा सकेंगे।  जब राजस्थान के ही सरिस्का से बाघों के पूरी तरह गायब होने की खबर आई थी तो तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सरिस्का पहुंच गए थे। लेकिन क्या आपको याद है कि देश के वजीरेआजम मोदी या राजस्थान की मुखिया वसुंधरा या फिर मप्र के सीएम शिवराज ने कभी भी बाघों के लिए दो शब्द भी बोला हो? लेकिन उनकी सरकारें लगातार एक के बाद एक ऐसे फैसले करती जा रही हैं, जिससे बाघों के अस्तिव के सामने खतरा मंडरा रहा है। चूंकि सरकारें आंकड़ों की बाजीगरी में उ...

मेरे लिए पत्रकारिता की पाठशाला हैं पी साईनाथ

देश के जाने माने पत्रकार पी साईनाथ को मैग्‍ससे पुरस्‍कार मिलना यह स‍ाबित करता है कि देश में आज भी अच्‍छे पत्रकारों की जरुरत है। वरना वैश्विककरण और बाजारु पत्रकारिता में अच्‍छी आवाज की कमी काफी खलती है। लेकिन साईनाथ जी को पुरस्‍कार मिलना एक सार्थक कदम है। देश में कई सालों बाद किसी पत्रकार को यह पुरस्‍कार मिला है। साईनाथ जी से मेरे पहली मुलाकात उस वक्‍त हुई थी जब मैं जयपुर में रह कर अपनी पढ़ाई कर रहा था। पढ़ाई के अलावा मैं वहां के कई जनआंदोलन से भी जुड़ा था। पी साईनाथ्‍ा जी भी उसी दौरान जयपुर आए हुए थे। कई दिनों तक हम लोग साथ थे। उस दौरान काफी कुछ सीखने को मिला था उनसे। मुझे याद है कि मै और मेरे एक दोस्‍त ने साईनाथ जी को राजधानी के युवा पत्रकारों से मिलाने के लिए प्रेस क्‍लब में एक बैठक करना चाह रहे थे। लेकिन इसे जयपुर का दुभाग्‍य ही कहेंगे कि वहां के पत्रकारों की आपसी राजनीति के कारण हमें प्रेस क्‍लब नहीं मिला। लेकिन हम सबने बैठक की। प्रेस क्‍लब के पास ही एक सेंट्रल पार्क है जहां हम लोग काफी देर तक देश विदेश के मुददों से लेकर पत्रकारिता के भविष्‍य तक पर बतियाते रहे। उस समय साईनाथ किसी स...

बेनामी जी आपके लिए

गुजरात में अगले महीने चुनाव है और इसी के साथ भगवा नेकर पहनकर कई सारे लोग बेनामी नाम से ब्लॉग की दुनिया में हंगामा बरपा रहे हैं. एक ऐसे ही बेनामी से मेरा भी पाला पड़ गया. मैं पूरा प्रयास करता हूँ कि जहाँ तक हो इन डरपोक और कायर लोगों से बचा जाए. सुनील ने मोदी और करण थापर को लेकर एक पोस्ट डाल दी और मैं उस पर अपनी राय, बस फिर क्या था. कूद पड़े एक साहेब भगवा नेकर पहन कर बेनामी नाम से. भाई साहब में इतना सा साहस नहीं कि अपने नाम से कुछ लिख सकें. और मुझे ही एक टुच्चे टाईप पत्रकार कह दिया. मन में था कि जवाब नहीं देना है लेकिन साथियों ने कहा कि ऐसे लोगों का जवाब देना जरूरी है. वरना ये लोग फिर बेनामी नाम से उल्टा सुलटा कहेंगे. सबसे पहले बेनामी वाले भाई साहब कि राय.... अपने चैनल के नंगेपन की बात नहीं करेंगे? गाँव के एक लड़के के अन्दर अमेरिकन वैज्ञानिक की आत्मा की कहानी....भूल गए?....चार साल की एक बच्ची के अन्दर कल्पना चावला की आत्मा...भूल गए?...उमा खुराना...भूल गए?....भूत-प्रेत की कहानियाँ...भूल गए?... सीएनएन आपका चैनल है!....आशीष का नाम नहीं सुना भाई हमने कभी...टीवी १८ के बोर्ड में हैं आप?...कौन सा...