कल देर रात एक गाना सुनते हुए नींद कब लग गई, पता ही नहीं चला। बोल कुछ यूं थे: जिंदगी के सफर में गुजर जाते हैं जो मुकाम वो फिर नहीं आते। इस गाने की कशिश और जिंदगी का फलसफा बयान करने की तासीर अद्भुत है।
आपकी कसम फिल्म के इस गाने को याद कीजिए। राजेश खन्ना का चेहरा उस दर्द की दास्तान बन जाता है, जिससे हम और आप इस भागती दुनिया में चाहे-अनचाहे कभी न कभी रूबरू होते हैं। मौके पर अपनी बात न कह पाने का दर्द।
अपनी विगत जिंदगी पर नजर डालिए, आपको भी कभी न कभी किसी से कोई बात न कह पाने का गम आज भी सालता होगा। गाहेबगाहे वो दर्द किसी भी रूप में आज भी छलक आता होगा। लेकिन गुजरा मुकाम कभी लौटकर नहीं आता, हम ताकते रह जाते हैं। इस गाने का संदेश यही है। वक्त पर अपनी बात रख दीजिए, अन्यथा पछताते रहिए।
यह गाना आपकी और मेरी जिंदगी की एक सच्चई से रूबरू करवाता है। इसे हम मानें या नहीं, लेकिन यह सच है। जिंदगी के सफर में कई लोग आते हैं और चले जाते हैं, लेकिन जिंदगी पूरी रफ्तार के साथ चलती रहती है। यदि जिंदगी थम गई तो समझिए आप थम गए।
जो लोग हमसे बिछुड़ जाते हैं, उनकी सिर्फ यादें रह जाती हैं। लेकिन कई बार मिलने-बिछड़ने के इस खेल में हम ऐसी गलतियां कर जाते हैं, जो हमें जिंदगी भर पछताने के लिए छोड़ जाती हैं। वक्त की मार सबसे बेरहम होती है लेकिन वक्त ही मरहम भी लगाता है।
जैसे-जैसे समय गुजरता है, बिछड़े लोग और शिद्दत से याद आते हैं। दर्द कुछ कम होता है, लेकिन जिंदगी में कई बार ऐसे मोड़ आते हैं, जब यादों के बायोस्कोप की चलती-फिरती तस्वीरें हमारी आंखें के आगे तैरने लगती हैं। यह कोई भी हो सकता है।
यह आपके स्कूल की कोई टीचर हो सकती है, यह बचपन में आपके पड़ोस में रहने वाले रतन चाचा हो सकते हैं, यह परदेश में आपके लिए रोज नाश्ते-खाने का इंतजाम करने वाले शेख साहब हो सकते हैं या फिर वह आपका कोई दोस्त भी हो सकता है।
भारतीय दर्शन में मिलने-बिछुड़ने के लिए नदी-नाव संयोग जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया गया है। यह कुछ इस तरह है, जैसे एक नदी बह रही है। आप अपनी मंजिल तक पहुंचने के लिए नाव का सहारा लेते हैं और संयोग से आप इस नाव में कई लोगों से मिलते हैं। लेकिन मंजिल तक पहुंचने के बाद सबके रास्ते जुदा हो जाते हैं।
स्कूल के दिनों में कई दोस्त बने। जिंदगी को जीने लायक बनाने वाले शिक्षक मिले। लेकिन कॉलेज में आने के बाद स्कूल के दोस्त और सभी टीचर बिछुड़ गए। बचे सिर्फ कुछ ही। इसी तरह जब पत्रकारिता में आया तो कॉलेज के दोस्त भी बिछुड़ गए। लेकिन इस बार इनका बिछुड़ना इतना तकलीफ दायक नहीं था। क्योंकि जिंदगी ने दुनियादारी सिखा दी थी।
अक्सर हम जब ट्रेन और बसों में सफर करते हैं तो कई लोग हमारे सफर को आसान बना देते हैं। हाय-हैलो से शुरू हुई बात कई बार फोन नंबर के लेन-देन पर खत्म होती है। अक्सर सफर के मुसाफिर जिंदगी में नहीं मिल पाते हैं।
ऐसे न जाने कितने सफर की यादें जेहन में कुलबुला रही हैं। चाहे वह बनारस से अहमदाबाद का खूबसूरत सफर हो या मुंबई से दिल्ली तक राजधानी के सफर की मीठी यादें, आजमगढ़ के स्कूल में साथ पढ़ने वाले रुस्तम, अविनाश, दीपमाला हो या फिर अलवर के राजर्षि कॉलेज के पुराने दोस्त, जो अलवर छोड़ने के बाद आज तक नहीं मिल पाए।
वक्त बीता, यादें धुंधली पड़ती गईं लेकिन आज अचानक मैं अतीत में चला गया। जाते-जाते आपके लिए और खुद के लिए बस ये पंक्तियां: अब के बिछड़ें तो शायद ख्वाबों में मिलें, जैसे सूखे हुए फूल किताबों में मिलें। - दैनिक भास्कर, 17 जून 2011
आपकी कसम फिल्म के इस गाने को याद कीजिए। राजेश खन्ना का चेहरा उस दर्द की दास्तान बन जाता है, जिससे हम और आप इस भागती दुनिया में चाहे-अनचाहे कभी न कभी रूबरू होते हैं। मौके पर अपनी बात न कह पाने का दर्द।
अपनी विगत जिंदगी पर नजर डालिए, आपको भी कभी न कभी किसी से कोई बात न कह पाने का गम आज भी सालता होगा। गाहेबगाहे वो दर्द किसी भी रूप में आज भी छलक आता होगा। लेकिन गुजरा मुकाम कभी लौटकर नहीं आता, हम ताकते रह जाते हैं। इस गाने का संदेश यही है। वक्त पर अपनी बात रख दीजिए, अन्यथा पछताते रहिए।
यह गाना आपकी और मेरी जिंदगी की एक सच्चई से रूबरू करवाता है। इसे हम मानें या नहीं, लेकिन यह सच है। जिंदगी के सफर में कई लोग आते हैं और चले जाते हैं, लेकिन जिंदगी पूरी रफ्तार के साथ चलती रहती है। यदि जिंदगी थम गई तो समझिए आप थम गए।
जो लोग हमसे बिछुड़ जाते हैं, उनकी सिर्फ यादें रह जाती हैं। लेकिन कई बार मिलने-बिछड़ने के इस खेल में हम ऐसी गलतियां कर जाते हैं, जो हमें जिंदगी भर पछताने के लिए छोड़ जाती हैं। वक्त की मार सबसे बेरहम होती है लेकिन वक्त ही मरहम भी लगाता है।
जैसे-जैसे समय गुजरता है, बिछड़े लोग और शिद्दत से याद आते हैं। दर्द कुछ कम होता है, लेकिन जिंदगी में कई बार ऐसे मोड़ आते हैं, जब यादों के बायोस्कोप की चलती-फिरती तस्वीरें हमारी आंखें के आगे तैरने लगती हैं। यह कोई भी हो सकता है।
यह आपके स्कूल की कोई टीचर हो सकती है, यह बचपन में आपके पड़ोस में रहने वाले रतन चाचा हो सकते हैं, यह परदेश में आपके लिए रोज नाश्ते-खाने का इंतजाम करने वाले शेख साहब हो सकते हैं या फिर वह आपका कोई दोस्त भी हो सकता है।
भारतीय दर्शन में मिलने-बिछुड़ने के लिए नदी-नाव संयोग जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया गया है। यह कुछ इस तरह है, जैसे एक नदी बह रही है। आप अपनी मंजिल तक पहुंचने के लिए नाव का सहारा लेते हैं और संयोग से आप इस नाव में कई लोगों से मिलते हैं। लेकिन मंजिल तक पहुंचने के बाद सबके रास्ते जुदा हो जाते हैं।
स्कूल के दिनों में कई दोस्त बने। जिंदगी को जीने लायक बनाने वाले शिक्षक मिले। लेकिन कॉलेज में आने के बाद स्कूल के दोस्त और सभी टीचर बिछुड़ गए। बचे सिर्फ कुछ ही। इसी तरह जब पत्रकारिता में आया तो कॉलेज के दोस्त भी बिछुड़ गए। लेकिन इस बार इनका बिछुड़ना इतना तकलीफ दायक नहीं था। क्योंकि जिंदगी ने दुनियादारी सिखा दी थी।
अक्सर हम जब ट्रेन और बसों में सफर करते हैं तो कई लोग हमारे सफर को आसान बना देते हैं। हाय-हैलो से शुरू हुई बात कई बार फोन नंबर के लेन-देन पर खत्म होती है। अक्सर सफर के मुसाफिर जिंदगी में नहीं मिल पाते हैं।
ऐसे न जाने कितने सफर की यादें जेहन में कुलबुला रही हैं। चाहे वह बनारस से अहमदाबाद का खूबसूरत सफर हो या मुंबई से दिल्ली तक राजधानी के सफर की मीठी यादें, आजमगढ़ के स्कूल में साथ पढ़ने वाले रुस्तम, अविनाश, दीपमाला हो या फिर अलवर के राजर्षि कॉलेज के पुराने दोस्त, जो अलवर छोड़ने के बाद आज तक नहीं मिल पाए।
वक्त बीता, यादें धुंधली पड़ती गईं लेकिन आज अचानक मैं अतीत में चला गया। जाते-जाते आपके लिए और खुद के लिए बस ये पंक्तियां: अब के बिछड़ें तो शायद ख्वाबों में मिलें, जैसे सूखे हुए फूल किताबों में मिलें। - दैनिक भास्कर, 17 जून 2011
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