Skip to main content

हाथ छूटे, रिश्ते छूटे


कल तक मैं और तुम हम थे
कल तक हमारे सपने एक थे
कल तक हम दो जिस्म एक जान थे
कल तक तुम्हारी नजरों से मैं दुनिया देखता था
कल तक हम सिर्फ हम थे
कल तक पूरी दुनिया से हम अनजान थे
कल तक मुझमें तुम और तुममें मैं था

आज सबकुछ बदल गया
मैं मैं नहीं रहा, तुम तुम नहीं रही
सपने बिखरे, हाथ छूटे
कल तक जो हम थे
आज मैं और तुम हो गए
आज भी दुनिया देखता हूं
बस अपनी नजरों से
आज दुनिया अनजान नहीं रही
साथ छूटा, रिश्ता टूटा
हम में से तुम हट गई
तो हम मैं बन गया

Comments

Anonymous said…
I like it
rabindra said…
riston ka tootna aur unka shootna. ye zindge se hamere bandhan ko aur majboot banati hai. ye bhi zindgi ke behad aham pehlu hai.
rabindra said…
zindi me riston ka tootna aur unka shootna ye hame zindge ke aur kareeb le jaata.
zindgi me jitne khushiyan jaroore hain gam bhi utna he zaroore hai.
Anonymous said…
सोच को शब्द देने का सार्थक प्रयास - शुभकामनाएं

Popular posts from this blog

मै जरुर वापस आऊंगा

समझ में नहीं आ रहा कि शुरुआत क्‍हां से और कैसे करुं। लेकिन शुरुआत तो करनी होगी। मुंबई में दो साल हो गए हैं और अब इस श‍हर को छोड़कर जाना पड़ रहा है। यह मेरी सबसे बड़ी कमजोरी है कि मैं जहां भी रहता हूं उसके मोह में बंध जाता हूं। बनारस से राजस्‍थान आते भी ऐसा ही कुछ महसूस हुआ था। फिर जयपुर से भोपाल जाते हुए दिल को तकलीफ हुई थी। इसके बाद भोपाल से मुंबई आते हुए भोपाल और दोस्‍तों को छोड़ते हुए डर लग रहा था। और आज मुंबई छोड़ते हुए अच्‍छा नहीं लग रहा है। मैं बार बार लिखता रहा हूं कि मुंबई मेरा दूसरा प्‍यार है। और किसी भी प्‍यार को छोडते हुए विरह की अग्नि में जलना बड़ा कष्‍टदायक होता है। इस शहर ने मुझे बहुत कुछ दिया। इस शहर से मुझे एक अस्तिव मिला। कुछ वक्‍त उसके साथ गुजारने का मौका मिला, जिसके साथ मैने सोचा भी नहीं था। मुंबई पर कई लेख लिखते वक्‍त इस शहरों को पूरी तरह मैने जिया है। लेकिन अब छोड़कर जाना पड़ रहा है। बचपन से लेकर अब तक कई शहरों में जिंदगी बसर करने का मौका मिला। लेकिन बनारस और मुंबई ही दो ऐसे शहर हैं जो मेरे मिजाज से मेल खाते हैं। बाकी शहरों में थोड़ी सी बोरियत होती है लेकिन यहां ऐसा

मुंबई का कड़वा सच

मुंबई या‍नि मायानगरी। मुंबई का नाम लेते ही हमारे जेहन में एक उस शहर की तस्‍वीर सामने आती हैं जहां हर रोज लाखों लोग अपने सपनों के संग आते हैं और फिर जी जान से जुट जाते हैं उन सपनों को साकार करने के लिए। मुंबई जानी जाती है कि हमेशा एक जागते हुए शहर में। वो शहर जो कभी नहीं सोता है, मुंबई सिर्फ जगमगाता ही है। लेकिन मुंबई में ही एक और भी दुनिया है जो कि हमें नहीं दिखती है। जी हां मैं बात कर रहा हूं बोरिवली के आसपास के जंगलों में रहने वाले उन आदिवासियों की जो कि पिछले दिनों राष्‍ट्रीय खबर में छाए रहे अपनी गरीबी और तंगहाली को लेकर। आप सोच रहे होंगे कि कंक्रीट के जंगलों में असली जंगल और आदिवासी। दिमाग पर अधिक जोर लगाने का प्रयास करना बेकार है। मुंबई के बोरिवली जहां राजीव गांधी के नाम पर एक राष्ट्रीय पार्क है। इस पार्क में कुछ आदिवासियों के गांव हैं, जो कि सैकड़ो सालों से इन जंगलों में हैं। आज पर्याप्‍त कमाई नहीं हो पाने के कारण इनके बच्‍चे कुपो‍षित हैं, महिलाओं की स्थिति भी कोई खास नहीं है। पार्क में आने वाले जो अपना झूठा खाना फेंक देते हैं, बच्‍चे उन्‍हें खा कर गुजारा कर लेते हैं। आदिवासी आदम

बस में तुम्‍हारा इंतजार

हर रोज की तरह मुझे आज भी पकड़नी थी बेस्‍ट की बस। हर रोज की तरह मैंने किया आज भी तुम्‍हारा इंतजार अंधेरी के उसी बस स्‍टॉप पर जहां कभी हम साथ मिला करते थे अक्‍सर बसों को मैं बस इसलिए छोड़ देता था ताकि तुम्‍हारा साथ पा सकूं ऑफिस के रास्‍ते में कई बार हम साथ साथ गए थे ऑफिस लेकिन अब वो बाते हो गई हैं यादें आज भी मैं बेस्‍ट की बस में तुम्‍हारा इंतजार करता हूं और मुंबई की खाक छानता हूं अंतर बस इतना है अब बस में तन्‍हा हूं फिर भी तुम्‍हारा इंतजार करता हूं